Saturday, December 31, 2011

लगातार कोशिश भी ....कमजोर पड जाती है जब प्रतिउत्तर मैं कुछ चालाकी का अनुभव हो !

साल कोई २००५ या २००६ रहा होगा ...मैं अपने अधिकारिक कार्य से पुदुचेरी के प्लांट मैं जाने की तयारी कर रहा था .....अचानक ये ख़याल आया की इस बार क्यों ना कुछ घूमना भी किया जाए ...तो अपना केमरा भी साथ रख लिया ...! शाम की किंग फिशर की उड़ान थी ... मुंबई से उड़े और चेन्नई के कामराज एअरपोर्ट पर उतर गए ...!

गाडी आगई थे हमें लेने के लिए चेन्नई से पुदुचेरी कुछ २ से २.३० घंटो का सफ़र है ...कार से....अद्भुद सफ़र होता है ..सही मैं , कई बार किया है ... रात के वक़्त तो और भी अनोखा हो जाता है... ई सी आर से ...इस्ट कोस्ट रोड ... हाँ तो हम एअरपोर्ट से निकले ... तिन्दिवानाम होते हुए...रात के कुछ ११ बज रहे थे और सफ़र २ घंटों का था ... हम चले.. ....वैसे तो हवाई जहाज मैं खाना मिला था किन्तु ...मेरे आकार प्रकार के लिए वो कम था... मुझे भूख लग रही थी... लिकिन अब तो हम एअरपोर्ट से निकल चुके थे... तो खाने को भी कुछ नहीं मिलता ...

मैंने ड्राइवर से कहा " भाई कहीं कुछ मिले तो खिला देना ! "
१ घंटा चलने के बाद एक छोटी सी सड़क के किनारे झोपड़ी दिखाई दी... एक कम रौशनी की किरने आ रही थीं ....कुछ लोग भी दिखाई दे रहे थे... घुप अँधेरा ..हमारी गाड़ी किनारे पर खाड़ी कर के ड्राइवर ने तमिल मैं दूकान वाले से पुछा और मुझे कहा सर आइये डोसा , इडली और उत्तपम है यहाँ विथ टी !! मैं खुश ....उतरा ..और हैण्ड वश कर के ..टेबल पर बैठ गया ... कुछ समझ नहीं आ रहा था ..सब तमिल मैं बात कर रहे थे ...और हम इस भाषा को आज तक नहीं समझ पाए ...!
मेरे ड्राइवर ने मुझ से इंग्लिश मैं पूछ कर चार डोसा आर्डर किया .. और मेरे कहे अनुसार एक एक कर के देने को कहा ...बस आदेश मिलने के बाद ...मोटे लोहे के तवे पर नारियल की रेशों से बने एक देसी ब्रश से पानी और नारियल के तेल की छींट मार कर डोसा बनाया जाने लगा ... भाई सच बोलता हूँ ...कुछ चीज़ों का बनाना इतना कलात्मक होता है की उसको खाने से ज़यादा उसको बनते देखने से संतुष्टि मिलती है.... चाहे हमारे गाज़ियाबाद के शर्मा जी की चाट हो या फिर ये डोसा ... बस कुछ देर मैं डोसा , संभार , चटनी , केले के पत्ते पर मेरे सामने थी , और चाय भी .... मेरे साथी ड्राइवर ने इडली मंगवाई अपने लिए ... ...मैंने थीं दोसे खाए ... बस मैं कुछ नहीं समझ पा रहा था की काया बातें कर रहे हैं सब... जब कुछ चाहिए होता था तो इशारा कर के बता देता था ...हाँ मेरा ड्राइवर मेरी मदद कर रहा था ... सज्जन होते हैं ये लोग....वरना तो हम भूखे रह जाएँ इसी जगह पर...  ..........मैंने अपने दोसे ख़तम किये और चाय की चुस्की लेता हुआ झोपड़ी से बहार निकल कर रोड पर गुजरते हुए ट्रक और दुसरे वाहनों को देखने लगा ...सच मानिए ...ये अनोखा अनुभव है ...रात के १२ बजे ...सुदूर दक्षिण मैं एक अँधेरी रात मैं आप डोसा खा कर चाय पी रहे हों ...जहाँ आप किसी से बात नहीं सकते ...क्यों की कोई आपकी भाषा नहीं समझता ... मैं ये सब सोच ही रहा था की अचानक मेरे कानों मैं कुछ जाने पहचाने से शब्द पड़े ..... शब्द थे " यार ये चेप्टर तो कल ही ख़तम कर लेने की बात थी ना ? " .....मुझे लगा भाई यहाँ हिंदी कौन बोल रहा है... देखा तो दो लडके आपस मैं बात कर रहे थे.... मैं लपक के उनके पास गया और पूछा ...कौन है आप और यहाँ क्या कर रहे हो ? वो दोनों वहीँ के पास के एक उनिवेर्सित्य एस आर एम् के पढ़ने वाले थे ... एन्गिनियारिंग कर रहे थे... प्रणव नाम था उस लड़के का ....दुसरे का नाम नहीं याद अभी ...कुछ सालों तक प्रणव से संपर्क था ..आजकल कुछ बात नहीं होती... ये पता है की वो दिल्ली मैं है ...पर संपर्क नहीं है .... ....

हाँ उस मुलाकात के बाद मैं पुद्दुचेरी पहुंचा लगभग १ : ३० बजे ...वहां के मशहूर होटल मैं रुका ...गाँधी बीच के पास ही है ...बस फिर काम शुरू... ये लेख इस लिए लिखा ...दोस्ती हो जाती है ...करी नहीं जाती ...सम्बन्ध जीवित रखे जाते हैं ...रहते नहीं हैं.... लेकिन ये निर्भर करता है ....दोनों पर...किसी एक की लगातार कोशिश भी ....कमजोर पड जाती है जब प्रतिउत्तर मैं कुछ चालाकी का अनुभव हो.....किन्तु ख़तम नहीं होती...
लेकिन हम नहीं बदलेंगे ....दोस्ती करने का सिलसिला चलता रहेगा .....तभी तो मैं हूँ.... जिंदा... सब के लिए सिर्फ अपने लिए नहीं .... 

.... तुम, से आप हो गयी है समय की वाणी,

बचपन मैं खूब पढ़ी किताबें ...अब कहाँ हैं, लगता है की ....हम बड़े हो गए .....

" डायमंड के चाचा,रमन, साबू के फ़साने ,
  चंपक की थपथपी , नंदन  सिरहाने !
  डिबरी के प्रकाश मैं , पिंकी का तराना ,
  विक्रम - बैताल संग आते चंदामामा !! "

 "बीत गए पल - छिन वो, शंखनाद जैसे,
  पुस्तकों से होता नहीं हैं , संवाद वैसे !
  तुम, से आप हो  गयी है समय की वाणी,
  मैं नहीं , तुम भी नहीं हैं ,अपवाद जैसे !! "

Tuesday, December 27, 2011

बन्धनों का शोध है हम, बन्धनों को चाहते हैं !

" बन्धनों से मुक्त होना है,  हमें स्वीकार्य फिर भी,
  बन्धनों का शोध है हम,    बन्धनों को चाहते हैं !
  रिक्तियों से कुछ कभी, आलोक सा मिलता नहीं है,
  जी.., तभी तो सृष्टि के संग, बन्धनों को ब्याहते हैं !! "

 रात बहुत हो चुकी ...अब निंद्रा से बंधन बांधिए ,ताकि स्वप्न आकर्षित हों !
..................... शुभरात्री !!

 

Sunday, December 25, 2011

और पहचान अधूरी !!

 " हमेशा किसी न किसी तरह से पहचाने जाने की भूख , सिर्फ आपको भूखा रखती है ...संतुष्टि नहीं देती ...आप हमेशा भूखे रहते है और पहचान अधूरी !! "

" आज बड़ी है , बड़ा है दिन !! "

" ले के सारे दिन की खुशबू ,
  तिनका-तिनका चन्दन सा !
  सतरंगी अब  रात हो गई ,
  सन्नाटा अभिनन्दन सा !!
  आज के बीते दिन से पनपे ,
  कल की किरणे, इनसे दिन !
  जाते वर्ष की नन्ही आशा ,
  आज बड़ी है , बड़ा है दिन !! "

MARRY CHRISTMAS .... बड़ा दिन मुबारक हो ......!!

Friday, December 23, 2011

तेरी खुशबू है , मैं ....हूँ , उमीदें हैं !!

" तेरी खुशबू है , मैं  ....हूँ , उमीदें हैं ,
  फिर वो ही ख़वाब, सजाने को नींदें हैं !!
  छोड़ कर जिनका  साथ, कुछ दूर चले ,
  रहनुमा पंख हुए आज , मन  परिंदे हैं !! "

शुभ एवं उत्साह भरी सुबह की आशा सहित ....सुप्रभात !!

Monday, December 19, 2011

२०१२ - नव वर्ष की शुरुआत !!

" २०१२ - नव वर्ष की शुरुआत , इस बार हरिद्वार मैं माँ गंगा की गोद से करने की योजना है ....!! "
" आपका स्नेहाशीष अपेक्छित है ....किन्तु सानिध्य गरिमामय होगा !! "

Saturday, December 17, 2011

जुड़ते-जुड़ते जुड़ती है सब, कड़ियाँ-कड़ियाँ साँसों की !

" मिलने की जिद,और बिछड़ना, दोनों कैसे साथ चलें !
जब चाहूं मैं, साथ रहो तुम, और चाहूं जब दूर भले !!
जुड़ते-जुड़ते जुड़ती है सब, कड़ियाँ-कड़ियाँ साँसों की,
इनके जुड़ने से ही हमदम, रिश्तों के सब दीप जलें !! "

लाइफ इज हप्पिनेस - हमेशा खुश रहिये और ख़ुशी बांटिये !!

गुड मोर्निंग !!

Thursday, December 15, 2011

अच्छी दोस्ती का अर्थ रोज़ रोज़ बतियाना नहीं .... समय समय पर होना है !! "

एक विचार : " जैसे कार की बत्तियों से कुछ मीटर तक ही दिखाई देता है लेकिन हम उनके साथ साथ कई कई किलोमीटर का सफ़र तय कर लेते हैं ... एक शहर से दुसरे शहर .....  ऐसे ही हमारे दोस्त है ....भले वो हमारे साथ व्यक्तिगत रूप से उपस्थित न  तक रहे किन्तु उनके होने का आभास और विशवास हमें एक के बाद एक सफलताओं के सोपानो पर अग्रसर रखता है !" अच्छी दोस्ती का अर्थ रोज़ रोज़ बतियाना नहीं .... समय समय पर उपस्थित होना है ,चाहे किसी रूप मैं हो , होना है !! "

गुड मोर्निंग - सुप्रभात !!

हम भी सलवट सुलझाएं ,............धीरे धीरे सो जाएँ !

" पौण्डी  की सड़कों का धुलना ,
टाटानगर की चहल पहल !
रात के सन्नाटे की उलझन,
झोपड़पट्टी , महल महल !!
स्टेशन पर भी चेहरों से अब ,
उत्साह की लाली ढलती है !
पथ सूने अब, चौराहे सुम ,
बस ,  नारंगी लौ जलती है !!
सबने अपने कोने पकडे,
हम भी सलवट सुलझाएं ,
............धीरे धीरे सो जाएँ !"

पौण्डी = पौण्डिचेरी , जहाँ आज भी सड़कों के सफाई रात के वक़्त नगर निगम करता है ! हर रोज़ सुबह सड़कें साफ़ मिलती हैं !!

Wednesday, December 14, 2011

........लिपटे फूल पलाश के !!

" आँख खुलीं तो, कल के सपने,
   मिलते आज तलाश से !
   अर्थों हैं भारी, हलके पन्ने ,
   लिपटे फूल पलाश के !!

   स्कूल की यादें, बूढा बरगद,
   दादी के मनभावन किस्से !
   कल की तृष्णा, तृप्त हुई कब,
   मिलती आज की आस से !! "

सुप्रभात - गुड मोर्निंग !!

Tuesday, December 13, 2011

परिभाषाएं भी बदलेंगी, आशाएं हों मन ही मन !!"

" कच्चे कोयले का धुआं, चापाकल की आवाजें ,
  पानी की गर्माहट मैं , अलबेली   सी    सिहरन !
  उनीदीं सी आँखों की ,  किरणों से छुप्पा छिप्पी ,
  परिभाषाएं भी बदलेंगी, आशाएं हों मन ही मन !!"

  सुप्रभात , दिवस शुभ एवं लाभदायक हो , ऐसी कामना हैं .........

    

Monday, December 12, 2011

अनुरोधों को अपनाने की कड़ियों से जुड़ते जाएँ !

   " थोड़ी थोड़ी सी यादें, ज्यादा ज्यादा भारीपन ,
   हलकी सी उमीदों संग, अनुभव लेता है जीवन !
   कल थी जो वो आज नहीं है , अंतर्मन की आवाजें ,
   विचलित से हो जाते हैं, सुलझे वो सारे संयम  !!
   अनुरोधों को स्वीकारें , कड़ियों से जुड़ते जाएँ ,
   नई सुबह में जगने को अब, धीरे धीरे सो जाएँ !! "

Saturday, December 10, 2011

ये बाधा संबंधों को और गहरा करती है ...!

आज चंद्रग्रहण था ...  अब समाप्त हो चुका है ...! बस कुछ नहीं दो लगातार बात चीत करने वाले लोगो के बीच मैं बाधा आ गयी थी... जैसे की दो कालेज फ्रेंड्स के बीच होती बात चीत के बीच प्रिंसिपल आ जाये !! ये बाधा संबंधों को और गहरा करती है ...! मैं तो एसा ही मानता हूँ... आप भी बहार निकल कर देखिये चाँद और दिनों की अपेक्षा अधिक चमकदार हो गया है !!

..... फर्क है तो बस एक का दिखाई देता है दूसरा धोखे मैं है !!

           आज भी उसी जगह पर मिला , जहाँ रोज़ मिलता है ....हाँ वो मुझे रोज़ मिलता है , उसी तरह से जैसा की मैंने उसको पहले दिन देखा था ....शांत , अचल , निहारता हुआ और कुछ कहने को उत्सुक ....पर आज तक हमारे बीच कोई संवाद नहीं हुआ .... ! हम दोनों गतिमान रहते हैं ... मैं आते जाते उसको देखता हूँ और वो आते जाते लोगो को साथ मैं मुझे भी ....अरे हाँ वो भी गति मान है ...समय के साथ .....बस उसकी इस्थिति नहीं बदल रही .....!
           रेलवे फाटक के किनारे का पत्थर रोज़ मुझे आकर्षित करता है ....! उसको देखता हूँ और आगे निकल जाता हूँ ...शाम को फिर वोही ...सिलसिला ....पर कभी रुक कर देखा नहीं .... , क्या होगा रुकने से ....ना मेरी और ना उसकी इस्थाती मैं बदलाव आएगा ! जड़तव जुड़ चूका है ....दोनों के साथ , फर्क है तो बस एक का दिखाई देता है दूसरा धोखे मैं है !!

सुप्रभात ! आपका दिन और सप्ताहांत अनोखा बीते , ये ही कामना है !!

Friday, December 9, 2011

             आज सर्दियों की पहली बारिश थी .... जी हाँ हर साल ये समय पहला ही लगता है ...! मुझे ही नहीं सब को ...! भीनी भीनी मिटटी की खुशबु , पास की दूकान से आती चाय की महक , साथ मैं मटर / चने की घुघनी , हरी चटनी के साथ , और ताजा ताजा अखबार ....बस क्या कहिये ....ये सब साथ हो तो दुनिया की कोई भी चीज़ इस समय तो अच्छी नहीं लगती.... ५ स्टार होटल का सबसे मंहगा सुइट हो तो भी नहीं ....खिड़की से झाँक कर मन करता है की बस सड़क के किनारे वाली दूकान पर जा कर जिंदगी को कुछ आनंद दे दूं..!
    

Wednesday, December 7, 2011

......... समुद्र इन रंगों अपना नहीं कह सकता !

" समुद्र कहीं- कहीं नीला और कहीं-कहीं हल्का हरा दिखाई देता है .....ये दोनों ही रंग अपने आप मैं अनोखे हैं  - कहीं ....नीला शीतलता का और हरा अपना लेने  का ....! किन्तु समुद्र  इन रंगों अपना नहीं कह सकता , ये रंग किसी और के कारण उसको मिलते हैं .... उसका खुद का पानी पीने लायक नहीं होता , खरा होता है ! जो किसी को प्रिय नहीं !! 

                     ................. मित्रों सुप्रभात !!

Sunday, December 4, 2011

देव आनंद - नम आँखों से हमारी श्रधांजलि !!

" एक घर बनाऊंगा , तेरे घर के सामने !
  दुनिया बसाऊंगा , तेरे घर के सामने !!"
देव आनंद - हम सब के दिलों मैं अपना घर बना कर , बस गए हैं कभी ना भूल पाने के लिए ...नम आँखों से हमारी श्रधांजलि !!

पत्थर को सिरहाना करके अब यायावर , सोते हैं !

" उद्घोषक ने हमसे तुमसे कल मिलने की बात कही,
आधी बीती , आधी जागी अब नयनो मैं रात रही !
अंगीठी के कोयले भी अब, खुस फुस करते सोते हैं,
दिनभर दहके एकांकी हो, किसने किस से बात कही !!"
पत्थर को सिरहाना करके अब यायावर , सोते हैं ,
आओ हम भी , कुछ घंटों को इन जैसे ही हो जाएँ,
  ...............................................धीरे धीरे सो जाएँ !!

Thursday, December 1, 2011

देखता ही रह गया ....!

आज एक नारियल बेचने वाले को मैंने ज़रा गौर से देखा ... देखता ही रह गया ....!

Tuesday, November 29, 2011

कांच पे लिखी स्याही जैसा ,प्रतिपल का प्रचारित करना !

" मैं होने की अपनी शर्तें , तुम होने के ,अपने राज,
  उनकी कलियाँ धुल और मिटटी, अपने ठूंठ, सुन्दर ताज ! 
  कांच पे लिखी स्याही जैसा ,प्रतिपल  का प्रचारित करना,
  ऐसे जन स्वछन्द कहाँ है , बंधन की उनकी परवाज़ !! "
  
  

Monday, November 28, 2011

अनुमानों की कड़ियों में भी ,संभावित जुड़ जाते हैं,

" प्लेटफार्म के उद्घोषों सा, ही तो ये  जीवन है ,
होते होते होता है सब ,किन्तु सही समय पर क्या !
अनुमानों की कड़ियों में भी ,संभावित जुड़ जाते हैं,
कल की गति को कल देखेंगे ,आज चलो सो जाते हैं !!"

शुभदिवस के लिए ....शुभरात्री !!

Saturday, November 26, 2011

" वीकेंड ज्ञान "

" वीकेंड ज्ञान " -    " हमारे गाजीयाबाद मैं एक तिराहा है .... हां ठीक से पढ़िए ...तिराहा ...जिसका नामकरण यहाँ के सुविग्य , ज्ञानी लोगो ने " अग्रसेन चौक " जी हाँ चौक रखा है ...! " फोटो कल लगता हूँ... आपकी जिज्ञासा की जो बात है !  कल रविवार है जरा देख आइयेगा !

Tuesday, November 22, 2011

किलकारियां शब्द हो गयीं, रहेट कर रहे हैं खटपट !!

" गलियों-गलियों सौंधी खुशबु ,आँगन-आँगन चेहचाहट ,
चाँद सो गया तान के चादर , सूरज ने  भी ली करवट !
धुंध के घुंघट से अब किरणें ,    हौले हौले गाती हैं ,
किलकारियां शब्द हो गयीं,  रहेट कर रहे हैं खटपट !!
भोर हो गयी , अनुभव के कुछ गुंचे फिर मुस्काएंगे ,
जुड़ते-जुड़ते,पल-पल छिन- छिन दिन माला बन जायेंगे !!"

सुप्रभात ! आप का दिन आनंदमय रहे !!

 

       
      
           

हौले हौले ,गुन गुन करते , धीरे से सो जाएँ ! "

" ओस की नन्ही बूंदों से फिर , घर आँगन भीगा ,
      हरश्रृंगार की खुशबू फैली , चंचल मन बहका !
         रात के गुड्डे गुडिया आये,  अटखेली दिखलाएं ,
              हम सब अपने सपने देखें ,       आखें मुन्दलाएं ,
                   हौले हौले ,गुन गुन करते , धीरे से सो जाएँ !  "       

Sunday, November 20, 2011

" शोर " चित्रपट से कुछ पंक्तियाँ.

" पानी रे पानी तेरा रंग कैसा ? "

१. भूखे की भूख और प्यास जैसा !
२. सौ साल जीने की उमीदों जैसा !!
३. दुनिया बनाने वाले रब्ब जैसा !!!
                                               
 " शोर " चित्रपट से कुछ पंक्तियाँ.

Friday, November 18, 2011

........सबके होने की कोशिश करनी चाहिए !

अभी दो चार महीने पहले ही की बात है वो छोटा ही था ... हाँ अपने पिता की बात मानता था ....पर आज लगा वो शायद कुछ मनवाना चाहता है ....बड़ा हो गया है ... !

पिता को लगने लगा है की वो सिर्फ पैसे देने वाली मशीन थे और उनकी पत्नी पैसे दिलवाने वाला कार्ड ..... जब पैसे चैहिये होते थे ...माँ से सहारे से ...अपनी बात कह दी ...और माँ ने अर्रेंग्मेंट कर दिया ... और पिता को ये लगता था की बेटा मेरी इज्ज़त करता है इस लिए मुझ से सीधे सीधे अपनी बात नहीं करता ....किन्तु उनका के धोखा था ... !

अपने पिता को कभी वो दर्ज़ा दिया ही नहीं राहुल ने जो आम बच्चे अपने पिता को पिता होने का देते हैं .....

कभी कोई बात नहीं मानी जो बाप ने कही हो ...जो निर्णय अपने आप किये बस वो ही सही ...और उनको सही साबित करने के लिए चाहे किसी की भावनाए आहत होती हो तो भी परवाह नहीं की .... कभी सामाजिक रूप से जिम्मेदार नहीं बना ... और उसको बनाना भी नहीं चाहिए ... इसे राहुल किसी के नहीं हो सकते ....अपने भी नहीं ...खुद पर भी भरोसा नहीं होता इनको और बाप को भी उसकी उपलब्धियों पर प्रश्नचिन्ह लगाने से नहीं चूकते ....

आज राहुल के पिता नहीं हैं ...अपने मन की आई बातें उन्होंने मुझ से करी ...मुझे दुःख होता है ! वो अपने को हमेशा से छोटा और मजबूर महसूस करते रहे ...उनकी महिस्थाती को क्सिसी ने नहीं समझा ... बाहर वालों को नहीं समझना था... घर मैं वो सम्मान चाहिए था जिस को वो उम्र भर ढूँढते रहे किन्तु सब ने उनको एक सदस्य समझा ....घर का बड़ा नहीं .... अफ्सोसो है ..अफोसोस...!

राहुल आज अपनी चाहतों के कारन कुछ मुकाम पर है ...लेकिन वो अकेला नहीं ...उस जैसे जाने कितने हैं ...पर सब के पिता को इज्ज़त मिली ...सम्मान मिला ... राहुल ने एसा नहीं किया ...इस लिए वो आज अकेला है !

पिता ने उसको इस dharti पर लेन की जो जिमीदारी निभानी थे निभाई ...किन्तु ...मिला कुछ नहीं ...ना वो सम्मान न ही संतुष्टि .... रेल स्टेशन पर सब आपसे बात करते हैं लेकिन ...सब से आप सब उम्मीद नहीं करते ....अपने ही अपने होने का एहसास करते हैं ...!  एसा ना होने पर आप अपनी परिभाषाओं मैं उलझे रहते हैं जब की समाज मैं कुछ और ही चलन मैं होता है ....! सबके होने की कोशिश करनी चाहिए ....सिर्फ अपने बारे मैं तो चार पैर और एक पूछ वाले सोचते हैं ....!




Monday, November 14, 2011

.............रिश्ते, बर्फ खिलोने से !! "

" कड़वी-खट्टी सी दुनिया ,
   मित्र,  शहद  चबोने से !
   अंगारों सी  उम्मीदें  ,
   रिश्ते, बर्फ खिलोनों से !! "


आते -  आते ,आती है
अनुबंधों   मैं   गर्माहट,
घुलते - घुलते, घुलती है,
वर्षों की सब कडवाहट !!
मन गुलाब सरीखे से ,
चाहें, ओस की बूंदों सी,
किन्तु स्वप्न नहीं आते
काँटों  भरे बिछोनो  पे !!

अंगारों सी उमीदें,
रिश्ते, बर्फ खिलोनो से !!


चुटकी- चुटकी , अपनापन ,
अंजुली- अंजुली , आशाएं !
डिबिया-डिबिया , धुप खिली,
कंकर पत्थर     गरिमाएं !!
प्रतिबंधों   के    उजले पथ,
क्षितिज  सरीखी   मंजिलें !   
मिलने  के  कुछ पर्व नहीं ,
ना  खालीपन    खोने में !

अंगारों सी उमीदें ,
रिश्ते, बर्फ खिलोनो से !!







                    

Saturday, November 12, 2011

... मन कनेर के फूल सा, रंग हैं पर बिन सुगंध !

" जब चनारों पर  उमीदों  ने घर कर लिए ,
       मन कनेर के फूल सा, रंग हैं पर बिन सुगंध ! "

" उचाइयां ठीक है,  खुद के बूते की हों ,
     इक सहारे लिया तो , विकलांग  ही हुए !"
   

Thursday, November 3, 2011

...................किन्तु आधुनिकता की नीव पुरातन पर ही निर्भर है !

" किसी फास्टफूड के बड़े से होर्डिंग के नीचे खड़े होकर देखिये ...हाँ बगल मैं वो फास्ट फ़ूड की शॉप भी होनी चाहिए ....आप को कई तरह के नज़ारे देखने को मिलेंगे ...कुछ का शाब्दिक चित्रण मैं करता हूँ शायद कभी आप भी इस से रूबरू हुए हों ....:

" कोलर उचे , चिपकी हुई जींस , गले के बटन ऊपर से २ खुले हुए, हाथ पर एक बड़े नंबर  वाली रिस्त वाटच , कानो मैं आईपॉड के एअर्फोंन और कुछ एक के हाथों मैं जल रही श्वेत दंडिका ( सिगरेट ) भी .... और एक सलोनी सी विभिन लिंग की साथी ... किसी ठन्डे पे पदार्थ का सेवन करते हुए पता नहीं किस भविष्य के सपनो को साकार करते हुए बात करते दिखाई दे जायंगे ....नै पीढ़ी है ये ...हाँ बहुत तेज़ है ... सम्बन्ध बस अपने मतलब के हिसाब से बनती है ... ! "

अब दुसरा दृश्य : इसे ही आगे बढ़ाते हैं .... एक के बाद एक कुछ न कुछ ख्य अजा रहा है ...और खर्च शायद २ से ३ हज़ार की ऊपर चला गया है पर कोई चिंता नहीं ... ज़िन्दगी का आनंद अधिक महत्त्व रखता है ...ना की पैसा .... कल किस को नसीब या सब ...आज ही सब का लुत्फ़ उठा लेना चाहिए ....तब अचानक एक फटे पुराने कपड़ो मैं दो छोटे छोटे बच्चे आ कर हार फेला देते हैं ... ये nayi pedhi जो समाज बदलने की बात करती है ....मैं से २० रूपये निकल कर देती है ...तभी दूसरा बोलता है ...२० रूपये दोगे ? ये वही लोग हैं जो अपने ऊपर २ से ३ हज़ार खर्च करते हुए ....तनिक भी नहीं सोचते और जिसमें ९९ रुपे का एक बर्गर आता है ...और २० रुपे देते वक़्त इतना सोचते हैं की देश के लिए प्लानिंग करने वाले मोंटेक सिंह भी इनको अपने साथ रखने के लिए सोचे !! "
   " भविष्य वर्तमान के गर्भ मैं पलता है....सही है , किन्तु आधुनिकता की नीव पुरातन पर ही निर्भर है ! " 

     

Wednesday, November 2, 2011

............. हमारी चेतना और दृष्टिकोण द्वारा की गयी परिभाषा !

" यही कोई १९८५ की बात होगी ,हाँ छोटा ही था ...उन दिनों छपे हुए पर्चे बांटने का चलन कुछ ज्यादा ही था ... और हम स्कूल से आने के बाद कोशिश करते थे की जितने ज्यादा से ज़यादा इसे पर्चे इकट्ठे कर सके ! "
  
       तपती दोपहर में मैं और मेरे कुछ साथी जिनमे से कुछ के नाम याद हैं .... राजे , बबलू और भी कुछ निकल पड़ते थे अपने इस बहुमूल्य और उत्साहित कम को अंजाम देने के लिए .... !
       जब तक कोई माइक पर आवाज नहीं आती थी पता नहीं चलता था की कोई रिक्शे पर पर्चे बाँट रहा है की नहीं ....और इस बीच हम एक और महत्वपूर्ण काम किया करते थे ...पड़ोस की आंटी जी के क्यारी मैं एक अमरुद का पेड़ था उस पर अमरुद तो कम ही लगा करते थे फिर भी आंटी जी को उसकी चिंता खूब रहती थी.... साथ मैं और भी बहुत से फल के पेड़ थे ...पर फल कम ही लगते थे उनपर.... हाँ एक वैज्ञानिक उपाय किया हुआ था उन्होंने अपने सब पेड़ पौधों को पानी देने का ..... वो अपने घर के अन्दर बनी पानी की हौदी से एक छोटा सा प्लास्टिक का पाइप निकल कर ज़मीन पर रख देती थीं , और उसको अपने मुह से खीच कर पानी का प्रभाव बना देती थी जिस से जब पानी बाहर आने लगता था ...और वो ज़मीन का मुहाना उनकी क्यारी पर खुलता था बस ....दिन भर पानी औंकी क्यारी मैं चलता रहता था ...और पेड़ सूखते नहीं थे .... अद्भुद !!
 खैर हम अपना महत्वपूर्ण काम काया करते थे पर्चे बटोरने से पहले ...." हम उनके अमरुद के पेड़ से कुछ पत्ते तोड़ कर उनपर नमक लगा कर पान की तरह खाया करते अनोखे आनंद की प्राप्ति ....क्या  आनंद मिलता होगा सच्चा पान खाने वालों को ....पैसा भी खर्च किया और थूक भी दिया .... और ये अनुभव तो अनोखा था ... पान का स्वाद , बिना पैसे का, उत्साह और वीरता का अनुभव , पूरा का पुर पान खा जाइए थूकना भी नहीं .... कहने का अर्थ ये की नुक्सान कही से भी नहीं ...सब पाना ही पाना है ....! 

     हाँ अब मुख्य बात करते हैं ....तो तपती दोपहर हो या सर्दी की सुबह सी लगने वाली दोपहर ... किसी माइक के आवाज सुनी नहीं की दौड़ पड़ते थे , जीतनी कोशिश कर सकते थे करते और ज़यादा से ज्यादा पर्चे इकठ्ठा कर लेने की ....और शाम को हम सब दोस्त गिनती करते की किस के पास कितने पर्चे हैं ....जिसके पास ज्यादा होते वो तो बस मत पूछिए .... राजा का दर्जा पा जाता था ...अगली शाम तक उसको सब सम्मान देते थे ...जैसे किंग को मिलता है ...घर पर बनी सब अच्छी अच्छी चीजें उसको दी जाती थी ..... असामान्य से दिन थे वो ...फिर नहीं आ सकते ....कोशिश भी करें तो भी ....! !

    "  छपे हुए पर्चे - आज हम खुद इनको किस तरह से देखते हैं ये कोई परभाषा देने की बात नहीं ....किन्तु उन दिनों ये ही पर्चे महत्वपूर्ण थे ....आप को कुछ विशेष दिखने के माध्यम थे ....अमरुद के पत्ते अनोखी अनुभूति देने मैं सक्षम थे किन्तु आज कोई मूल्य नहीं ....इन चीज़ों का एसा हम मान सकते हैं ..."       कुछ भी विशेष हम से है ...कुछ भी मूल्यवान हम से है ... हम और आप किसी भी वक़्त कुछ भी संभव कर सकते हैं, यादों को संजो कर रखिये ताकि वर्त्तमान की कोख मैं भविष्य उस गर्माहट को अनुभव करते हुए बढे और आकार ले  ...एक नवीन चेतना के साथ ...नवीन पीढ़ी के लिए ....! "

 " पल - पल विशेष है , हां हमारी चेतना और दृष्टिकोण द्वारा की गयी परिभाषा उसको भविष्य के लिए संजोती है , ताकि संभावित अनुकरण हो सके ! "

Friday, October 28, 2011

" पूर्वाग्रह ( Bias ) " की " तपिश ( Heat ) "

" किसी भी तरह के "" पूर्वाग्रह ""  की "" तपिश "" आप के कोमल और अनमोल विचारों एवं उनकी  अभिव्यक्ति को भंजित अथवा " नष्ट " कर देती है ! "

Thursday, October 27, 2011

अधिक सहारा ...बोझ सा लगता है........

   " आज वो दोपहर याद आ गयी जब मैं अपने स्कूल से पैदल खरखाई नदी के पुल को पार कर रहा था .... दुरी पर एक दूसरा पुल था ...जिस पर से रेलगाड़ी आया जाया करती थी , पर पिछली रात एक दुर्घटना हुई थी.... पुरुषोत्तम एक्सप्रेस को एक माल गाड़ी ने टक्कर मार दी थी ... भयानक मंजर था ... माल गाड़ी का इंजन पुरुषोत्तम एक्सप्रेस के पिछले डब्बे के लगभग ऊपर की जा चढ़ा था ... बहुत लोगो की मौत और घायल होने का समाचार आया था .... ! "

      हाँ लेकिन मेरे और मेरे जैसे और कितने ही लोगों के लिए एक सामान्य सा दिन था.... ... स्कूल से छुट्टी के बाद मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ मदमस्त हो कर के वापस आ रहा था.... नदी पर पहुँच कर हम कुछ देर के लिए रुके और दुर्घटना को देखने लगे .... बचाव का काम चल रहा था .... कुछ जीवें अगर बच सकें तो बचा लिए जाए , प्रशाशन के प्राथमिकता ....!!
      नदी के किनारे किनारे खूब घने पेड़ थे.... और जंगल कहा जाये तो भी कोई बात नहीं .... हमें दर नहीं लगता था....क्यों की "छठ " के अवसर पर हम यहाँ आया करते थे ... .... पर आज कुछ अजीब सा वातावरण था... इस लिए हम जंगल मैं नहीं गए .... ! आदित्य पुर की तरफ नदी का पुल पार होते ही एक छोटी सी चाय वाले की दूकान थी...४ गुना ४ की... उसमे वो चाय और मठरी रखता था.... पर मुझे पसंद थे उसके गुलगुले ..... जो वो अक्सर बारिश के दिनों मैं बनता था ...और चार आने के ४ देता था..... लेकिन उन दिनों चार आने बमुश्किल मिलते थे .... !
             एक बार तो मुझे अपने एक ग्रुप फोटो को खरीदने के लिए ५ रुपे की ज़रुरत थे... पेसे जमा करने की आखरी तारीख पास थी और मुझे कोई उम्मीद नहीं की मुझे पैसे मामा जी या मामी जी देंगी.... हाँ पिता जी के देहांत के बाद मुझे मेरे मामा जी के घर रहना पड़ा था कुछ ५ साल.... तो मैंने अपने मामा जी के जेब से २० रुपे चुराए थे ५ - ५ के चार नोट.....जमा भी किये.... फोटो भी मिला ..और चोरी के जुर्म मैं खूब पिटाई भी हुई.... !

            आप क्या हैं ये आपके साथ बीते और किये गए व्यवहार पर भी निर्भर करता था.... साधन की बात बहुत बाद मैं आती है.... आप क्या चाहते हैं पहले ये नियत होना चाहिए ...और उसके लिए वातावरण , और वातावरण के लिए आप के बड़ों की पहेल ....और सब हो जाए तो साधन जुटाने की बात.... आती है.... !  हम अपने को दूसरों के लिए सही या गलत करते वक़्त ये भूल जाते हैं ...की दूसरा भी आप के ही तरह इंसान या सोच रखने वाला है...... बड़ों को ये चाहिए की यदि आप किसी भी तरह से छोटो के लिए ज़िम्मेदार हैं तो अपनी ज़िम्मेदारी निभाइए ....झूठा आश्वाशन या निभाने के ढोंग की प्रकिया आप को ही उनकी नज़रों मैं छोटा कर देगी ....और आपके द्वारा बाद के वादे कोई मायने नहीं रखेंगे ....क्यों की जिस वक़्त बेल को सहारे की ज़रुरत थी आप नहीं थे और आज जब संभल गये तो अधिक सहारा ...बोझ सा लगता है........

समय पर लिया गया कोई भी निर्णय ......निर्णायक ही साबित होता है .... चाहे किसी भी सन्दर्भ मैं हो....फिर....हाथ पर हाथ रख कर कोई मंजिल नहीं मिला करती.... बस के तमगा मिलता है.... ये इंसान कभी कुछ गलत नहीं .......न ...न .न..... कुछ करता ही  नहीं !

..............याद रखना होता है !

रौशनी के उत्सव पर विशेष तजुर्बा - " रौशनी करने के लिए अंधेरों को अधिक प्रबलता से याद रखना होता है ! "

Sunday, October 23, 2011

एक समाचार " इस बार दिवाली पर उल्लुओं की किस्मत खराब ! "

                 एक समाचार " इस बार दिवाली पर उल्लुओं की किस्मत खराब ! " .... लोग दिवाली पर उल्लू की बलि दे कर के लक्ष्मी को खुश करने की कोशिश कर रहे हैं ......की लक्ष्मी उनके पास आयेंगी !
     भाई लेकिन मेरे हिसाब से तो इस दिवाली पर कुछ उल्टा ही है .... उल्लुओं की मौज है ....!
कंपनी मैं जो लोग पुरे साल  उल्लू कहे जाते हैं .... बराबर का इन्क्रीमेंट पाते हैं ....
     पूरी क्लास मैं उल्लू कहे जाते हैं.... बस एक आरक्षण का कार्ड चलते हैं ... वोही सीट पाते हैं जिसके लिए दुसरे  जी जान लगाते  हैं .... उल्लू ...अपना उल्लू सीधा कर जाते हैं ... दिवाली मानते हैं ...!

  भाई इस दिवाली उल्लू परेशानी मैं नहीं मौज मैं है ,,,,, और आरक्षण वाले तो पुरे साल ही मौज मैं होते हैं...और पुरे के पुरे घी मैं दुबे रहते हैं... इश्वर की ये तो माया है ... कहीं सिर्फ धुप तो कहीं छाया ही छाया है....  " उल्लू मौज मैं हैं भी , कभी भी ... कहीं भी ..... बे शक ! "  







Friday, October 21, 2011

रात के ग्यारह बजा चाहते हैं..............नमस्कार " जय हिंद "

" विविध भारती " .... जी हाँ आपने भी सुना होगा ये नाम तो ... अच्छा जो लोग १९८८ से पहले जन्मे हैं वो ज़रूर जानते होंगे !! एक रेडियो स्टेशन है ....जी हाँ आज भी है ...किन्तु ऍफ़ एम् रेडियो आ जाने के बाद इस महान रेडियो की आवाज़ कम सुनाई देती है ... लेकिन जब भी सुनाई देती है ...आपके कदम रोक लेती है ... मजबूर करती है की आप ठिठक कर , रुक कर कुछ देर सुने इस को .... और अपनापन महसूस करैं .....

मैं आठवीं या नौवी मैं पढता रहा होऊंगा , हम तीनो बहिन भाई अच्छे से स्कूल की ड्रेस पहन के के तैयार... और हमारी मम्मी जी गर्म गर्म पराठे बना कर दे रही होती हमें दही के साथ थोड़ी चीनी दाल कर ... सच मैं अद्भुद स्वाद ... कभी कभी आलू ये भिन्डी के भुज्जी स्वाद और बढ़ा देती थी....और इन सब के साथ " रेडियो पर चल रहे पुराने गाने " "विविध भारती " पर... .... आनंद दो गुना कर देती थी .... कार्यकर्म शाश्त्रिये संगीत पर आधारित होता था ... 
             सवेरे ९ बजे एक प्रोग्राम आता था नाम था " चित्रलोक " आनंदित कर देने वाले गाने ... फिर १० बजे एक नया प्रोग्राम " संगम " अच्छे लोगो की फ़र्मिऐश पर अगने आते थे .... ...

शाम को कुछ बहुत अच्छे अच्छे कार्यकर्म आते थे " विचित्र किन्तु सत्य " ...
" जयमाला " - ये प्रोग्राम सिर्फ सैनिक भाइयों के लिए होता था ....
सुप्रभात , संगीतमाला - पहले  "बिनका " थी, फिर बाद मैं " सिबाका " हो गयी .... अमीन सायानी जी के साथ .....उनका उनवान था " हाँ बहनों और भाइयों ....." मस्त अंदाज़ और अनोखी बोली... वाह... इन्होने राह दिखाई लोगो को किस तरह से रेडियो पर बोला जाता है .... दिशानिर्देशक थे वो लोग...

हर रोज़ एक प्रोग्राम आता थे नाम था " हवा महल " .... उस प्रोग्राम के शुरू करने की धुन ही मुझे अनादित कर देती थी .... और दिन के अंत मैं प्रोग्राम आता था ... नाम था " छाया गीत " और अंत मैं रात के ११ बजे कुछ मुख्य समाचारों को सुना कर उद्घोषक का कहना " रात के ग्यारह बजा चाहते हैं , अब हम आपसे विदा लेते हैं , कल पुन आपके भेंट होगी ... नमस्कार " जय हिंद " .... आप को अपने भारतीय होने का एहसास होता था !

कल जो बीत गया ....उस को बीतना ही था ...आज के लिए , और आज जो बीत रहा है , वो कल के लिए  ये आज के नवजीवन का दायित्व बनता है की कल आप याद किये जाएँ की आप उनको एक सुदर्ध विरासत दे कर गए हैं ...!

क्या क्या हमें मिला है ... मेरी मम्मी जी ने मेरे लिए इंद्रजाल कोमिक्स के दो संकलन छोडे हैं .... मैं चंदा मामा का पिछले १० सालों का " चंदामामा " का संकलन जोड़ रहा हूँ... और भी बहुत कुछ है ...
                                        
                    आइये ज़िन्दगी को जिया जाए , उल्लाह्स को संजोया जाए ...आज की उपलब्धयों से साथ-साथ पुराने संकलन को सहेज कर........ !





Thursday, October 20, 2011

उन दिनों मोबाइल फोन नही थे ...! हम उन दिनों एक दुसरे को पोस्ट कार्ड लिखा करते थे !


" जब मैं बी कॉम कर रहा था उस वक़्त मेरा एक दोस्त रुड़की से अभियांत्रिकी की पढ़ाई कर रहा था.... " उन दिनों मोबाइल फोन नही थे ...! हम उन दिनों एक दुसरे को पोस्ट कार्ड लिखा करते थे ! अनोखा समय था ... ! रोज़ एक दुसरे को आशा होती थे की कोई कार्ड आया हो ...! "

वो इन्तेजार और उसका जव्वाब देने की जल्दी ... बस बयान नहीं किये जा सकते ! हम घंटो बैठ कर के सोचते रहते की १० पंक्तियों मैं काया कुछ लिख दें की एक महीने का काम चल जाए !!

वो सब अनोखा था ... आज कल एस एम् एस और फ़ोन कॉल से काम चल जाता है ....  हां काम ही चलता है ...... 

चिट्ठियां जहाँ से चली और उसके अपने गंतव्य तक पहुँचने के बीच के समय का आनंद ... जी आनंद आज कल के एस एम् एस मैं नहीं ... कुछ और है जो कल नहीं था...  समय है ...और समय के साथ चलना चाहिए .... उसको पकड़ने को कोशिश हमेशा आपको पीछे ही रखती है ... ! समय के साथ चलिए ...!  पत्र के लिखने का आनंद तो अपनी डायरी लिखेने से भी प्राप्त किया जा सकता है !!..
                       " चिट्ठी लिखना और उसको गंभीरता से पढना दोनों ही आसान नहीं ! "

Wednesday, October 19, 2011

और जिस दिन बदला ..... सब ख़तम .... !

" रोज़ सुबह मैं अपने को कुछ अलग सा देखता हूँ.... हाँ कल जैसा देखा था , खुद को !!"
पर कुछ है अपने मैं जो होश संभालने के बाद से आज तक " वैसा " ही है जैसा तब था जब अपने से पहली बार मिला था !! वो आज तक नहीं बदला ! ना बदलेगा ..... और जिस दिन बदला ..... सब ख़तम .... !

Sunday, October 16, 2011

कम्पनों को भुला पुल हुआ मलमली !!

राख होने को है अब ये  चूल्हे की लौ ,
       द्वार की कुण्डियाँ भी स्थिर हो चलीं !,
              नल के बूंदों के स्वर भी शिथिल हो गए,
                    कम्पनों को भुला पुल हुआ मलमली !!
                           नयन तारों के गाँव में बसने चले ,
                                 शोर थमने लगा , रात बढ़ने लगी ,
                                      आओ तुम हम भी राहों को आसान करें ,
                                            खुद को गुम कर चले , और  खो जाएँ ,
                                               .......................... धीरे धीरे सो जाएँ !!
                                           

Tuesday, October 11, 2011

शब्दों की तुलिका अपने को अंकित करती हैं !

" संबंधों के केनवास पर जब जब चयनित शब्दों की तुलिका अपने को अंकित करती हैं .... तब तब हम अपने संबंधों को पुनः परिभाषित करने का मार्ग ढूँढने लगते हैं .....! "

Saturday, October 8, 2011

बाद मैं हिसाब करते हैं... अभी उन्हें देखिये ......

     नीलम जा जरा रामभरोसे की दूकान से थोडा जा जामन ले आना ... कल के लिए दही जमानी है ....!  जी हाँ ये और कुछ वाक्य मिले जुले वाक्य हम सबने अपने बचपन में सुने होंगे बस नाम बदल दीजिये अपने लिए ही लगते हैं..... !

     आपके पड़ोस मैं खुली छोटी सी दूकान जिस पर वो हर सामन मिलता है जो हमारे लिए कभी कभी बेहद कीमती और आवयशक हो जाते हैं ....  रात हो या दिन . ... तपती दोपहर हो या फिर सर्दी की ठिठुरती रात ....और सुबह सुबह का वक़्त ... जब जब छोटी किन्तु अतिआवय्श्यक चीजों के लिए हम रामभरोसे की दूकान पर आश्रित होते हैं... एक तरीके से हमें घर को समय समय पर इसकी ज़रूर्तात होती है और वो काम आता है ..... ! हर ज़रूरत... कभी कभी तो हम अपनी ज़रूरत उसको बता करके उसको पूरा करने की अपील करते हैं ...और वो करता है....!!

      रामभरोसे अब छुपने लगा है... या ये कहें की रामभरोसे की दूकान धीरे धीरे उनकी दूकान बंद होने लगी है ... जी हाँ एक समय ये आ जायेगा की वो विलुप्त हो जाने वाला है ... क्यों की ....बस उसकी दूकान के बस थोड़ी ही दुरी पर एक " माल " बनाने की योजना बन रही है...  बिलकुल नई पीढ़ी छोटी दूकान पर जाने को शर्म महसूस करती है ... हाँ माल मैं जाती है... और उसको ही मूल मानती है जिसे सहारे जीवन चलेगा ... मोटी तनख्वाह पर खर्चा करना उनको आता है... किन्तु ...कुछ और बहुत कुछ इन माल के ज़रिये पूरा नहीं हो सकता है .... ....याद कीजिये कभी एसा समय आया होगा आपके भी घर पर ...अचानक मेहमान आ गए हो और घर पर नकद पैसे नहीं .. क्यों की आज कल तो डेबिट और क्रेडिट कार्ड का चलन है ना...  रामभरोसे से ही नमकीन बिस्किट ले कर आये होने और ...उसने बिना पैसे के दिया होगा सब.... ये कह कर की आपके मेहमान मेरे मेहमान ... बाद मैं हिसाब करते हैं... अभी उन्हें देखिये ......

ये " माल " मैं संभव नहीं...... सब ज़रूरी है , रामभरोसे भी और माल भी बस दोनों को सहेजने की ज़रुरत है ..... आधुनिकता के सहारे के बिना चला भी नहीं जा सकता किन्तु अपने मूल छोड़ कर भी सांस लेना भी संभव नहीं ... आइये सहजें दोनों को ....और जी सकें !!
                                                                                             - मनीष सिंह

Saturday, October 1, 2011

मौकापरस्ती और सुरक्षित ही चलने वाले कुछ समय बाद अकेले रह जाते हैं....कटु सत्य है !!

" आज एक मदारी को देखा ...... कुछ अटपटा सा लगा ... उसके पास गया और पुछा क्या हुआ , आज उत्साहित नहीं हो ... सब ठीक तो है ना....? उसका जवाब मुझे अन्दर तक परेशान और सोचने को मजबूर कर गया ! 

उसके शब्द थे : " आज मेरा बेटा बीमार है ... और में अपने पिता को ले कर तमाशा दिखाने आया हूँ लेकिन मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा .... मैंने कहा " क्यों ? वो बोला ...

" मैंने हमेशा से अपने लोगो को अपने हिसाब से चलाया है ...और वो चले ... लेकिन आज एसा लगता है की मैंने जिंदगी सिर्फ अपने को अच्छा रखने के लिए जी... और मेरे परिवार ने मुझे खुश रखने को जिंदगी जी..... आज जब मेरा बेटा ( मेरा बंदर ) बीमार पड़ा तो मैंने उसके बाप को मन लिया तमाशे के लिए ...और वो आ गए ...लिकिन जब एक बरस पहले मैंने खुद तमाशा दिखने की कोशिश की थी तो मालूम चला था की .... बहुत मुश्किल काम है ... !! मैंने हर बार अपनी बात को सही ठहराया और अपने को खुश रखा ... आज इतनी आत्मग्लानी है की पानी भी सीसे की तरह लग रहा है... हलक से नीचे नहीं उतर रहा ....!!

  कुछ रौशनी के साथ चले और , दिए हो गए .
        कुछ अंधियारों में रहे और , दिए हो गए.!
              आज अफ़सोस करने की पहल करी जब उसने  ,
                       फिर से अपनों से ,  जीने को झूठ बोला जो उसने ,  
                             सबने पहचान लिया और , मुह सिले रह गए !!
मौकापरस्ती और सुरक्षित ही  चलने वाले कुछ समय बाद अकेले रह जाते हैं....कटु सत्य है !!

Saturday, September 24, 2011

समय की ओस की बूंदों से बंधन शिथिल होते हैं !

    " सवेरा रोज़ होता हो ,सलोनी किरणें आती हों ,
             अनोखी रात तारों संग ,कहीं गुमसुम हो जाती है !
                     हज़ारों मीत मिलते हैं ,नए अंकुर सजाने को ,
                            पलों को थाम लेते हम , ये ही सपने संजोते हैं !!
                                   समय की ओस की बूंदों से बंधन शिथिल होते हैं,
                                             चाहे कितनी सजाई हों , वो शामें ढल ही जाती हैं !! "

                                         
                     

Thursday, September 22, 2011

रीज़र्वशन से कामयाबी नही उमर भर की एहसान का तमगा मिलता है !

रिज़र्वेशन की बैसाखी के सहारे चलने वालों को कभी भी अचीवमेंट की बात नही करनी चाहिए ! 
की वो कामयाब नही होतेउनको किसी काबिल का हक मार कर आगे धक्का दिया जाता है .... ! 
उन्हे चाहिए की शर्मिंदा हों और पूरी उमर उन सब का एहसान मंद रहें जिन्होने उनके लिए अपनी जगह छोड़ दी .... ! 
सहारे और बैसाखी में अंतर है ... उतना ही जितना किसी छोटे बालक को चलना सिख़ाओ और वो चलने लगे  वो सहारा है ...
लेकिन कोई लकवा मारे इंसान को आप पल पल ढोते रहे वो है बैसाखी ..... !!  
रीज़र्वशन से कामयाबी नही उमर भर की एहसान का तमगा मिलता है जो कभी भी जस्तीफाई नही किया जेया सकता ... !  
अगर कभी कोई समूह उनको बोलने का मौका देता है का ये मतलब नही की लायक हैं ... उनको इस लायक किया गया है ... खुद में कोई काबिलियत नही !!!     

Tuesday, September 20, 2011

माँ की अंगुली छूटी , मन पतंग हो गया !

" लाल पीली हरी , सुर्ख नारंगी रंग ,
        घिस गयी पेन्सिलें , शब्द आलेखो संग ,
              माँ की अंगुली छूटी , मन पतंग हो गया ,
                    तन मे बजने लगे , गीत और जल तरंग !!

                             व्योम जग बन गया , हम वरुण हो गये ,
                                      बीते बचपन के दिन , अब सघन हो गये ,
                                                  आइए मान ले , हम बड़े हो गये !! "
                                                                   ............... हम बड़े हो गये !!

Saturday, September 17, 2011

...जुगनुओं की थैलियाँ !!


       " मौन के संसार मैं अब गुनगुनाहट चाहिए,
              आइये कुछ बोलिए की कम पड़े सब बोलियाँ !
                    कई सदी  से  रोशनी  इन    आँगनो   से   दूर  है ,
                              आइये मिल बाँटते हैं जुगनुओं  की थैलियाँ !! "

Tuesday, September 13, 2011

तेरे होने पर ही मेरे होने की ये सारी नीवें !

               रोज़ रोज़ जिस इंसान से आप दूर रहने की कोशिश करते हैं ....दर असल आप सबसे करीब उसी इंसान के ही होते हैं ...... सही है ....!  वैसे हमें ये जीवन जुड़ने के लिए मिला है ... बस जुडे रहिये .... टूटन तो सब के साथ है .. मजा तो जुडे रहने मैं है ...हाँ थोडे समर्पण के साथ ... तब ही आनंद है !!

" मैं सागर हूँ , तुम हो तब ही ,
       मैं पर्वत हूँ , तुम हो तब ही !
            मैं अम्बर हूँ , तुम हो तब ही ,
                 मैं सुगंध हूँ , तुम हो तब ही !! "
                        
" तेरे होने पर ही मेरे होने की ,ये सारी नीवें  !! "

" तेरे होने पर ही पल-पल गहरी हो जाती हैं ,
         सब अतीत की , वर्त्तमान की भाग्य लकीरें !! "
हम सब ये जानते हैं ... हम तब ही हम है जब कोई कहे की आप आप हैं ...और आपको औरों का होने को प्रेरित करे !!
                                              बस आपका ही ..... मनीष सिंह

                              
                             




Monday, September 12, 2011

" माँ " के न होने का अर्थ !!

" माँ " के न होने का अर्थ !!

       आज मैं जब दफ्तर से निकला तो बस गेट पर ही एक बच्चे को अपनी और बड़ी मासूमियत से देखते हुए पाया ! मुझे रोकना पड़ा खुद को ! मैं रुका और इधर उधर देखा की इतने छोटे से बच्चे के साथ कोई है की नहीं ... ...कोई नहीं था ...! अरे इतनी चलती हुई सडक पर इतना छोटा बच्चा अकेले खड़ा है ... , क्यों, कैसे ! कुछ दूर एक आदमी खड़ा था ... मुझे समझ मैं आ गया की वो बच्चा उसके ही साथ है !

आप सोचेंगे क्या खास है इस में जो ब्लॉग पर लिख रहा हूँ !!

अगर उस बच्चे के साथ उसकी माँ होती तो वो उसको कतई अकेला नहीं छोड़ती ! जी हाँ, माँ कभी अपने बच्चो को अकेला नहीं रहेने देती .. अगर माँ हो तो !!

माँ के न होने का अर्थ , बस वैसा ही जैसे की किसी मंदिर मैं मूर्ति ना हो ! 

माँ - ये शब्द अपने आप मैं पूरा विश्व है ... !! 
आपको आपके माँ का आंचल याद है .. जब आप अपने माँ की गोद मैं बेसुध हो कर सो जाते थे ... तब तपती दोपहर मैं माँ का आंचल आपके ऊपर आ जाता था जिस के नीचे आप अपने आप को सुरक्षित मानते हैं ... और होते भी हैं ... कोई भी आप को नुक्सान नहीं दे सकता पर हम असुरक्षित होते हैं जब माँ नहीं होती ... असहाए सा महसूस करते हैं !

आप की गलती होते हुए भी आप को आस पड़ोस से लोगो से जो बचा लेती है वो माँ है ...भले बाद मैं आपको समझाए की जो अपने किया वो सही नहीं था लेकिन अकेले मैं ही... सब के सामने आपको झुकने नहीं देती..  एसा तब नहीं होता जब माँ नहीं होती !

आपकी तबियत ठीक न हो ... आप परेशान हो तो कोई घर पर अगर आप के साथ रहता है ... वो माँ है .. जब तक आप ठीक न हो जाये.. दवा ली की नहीं , बार बार आपके माथे को छु कर देखना की पानी की पट्टी रखनी है की नहीं , अगर ज़रुरत है तो पूरी पूरी रात जाग कर आपके माथे पर पट्टी रखती है ... आँख भी नहीं झपकती .. और आप ठीक हो जाते हैं ... एसा तब नहीं होता जब माँ नहीं होती ... आप को अकेले ही सब करना होता है... हाँ कोई साथ हो तो कुछ देर के लिए ... सारी रात नहीं !

कुछ खाने का मन करे ... माँ कोशिश करती है वो आपको दिलाये ! आज हम सब सक्षम हैं सब कुछ पा जाने के लिए , किन्तु वो आनंद नहीं है ! वो सुरक्षा नहीं महसूस होती !

माँ के ना होने का अर्थ एक खालीपन है , जो कभी भरा नहीं जा सकता ...! 

माँ का न होना अधूरापन है , जो हमेशा रहती है ... बल्कि ये ही आपको आगे बढ़ने को प्रेरणा देता है ... !

माँ आपको बताती ही की आपके लिए काया सही और काया गलत हो सकता है ... और उन्ही दिशानिर्देशों के सहारे से आप अपने लिए रस्ते बनाते हैं ... ये सब नहीं हो पता ...होता है किन्तु कठिनाई से ... जब माँ नहीं होती ... और जीवन बड़ा ही संघर्षपूर्ण लगता है !! सब होते हैं ...पर माँ........ नहीं होती !

" अंधियारों मैं दीपक जैसी , धुप मैं शीतल छाया जैसी , सूनेपन मैं उत्सव जैसी , मेरी माँ , तुम्हारी माँ ...."

ऑफिस मैं आपके खाने से घर की खुशबु नहीं आती , सुबह ऑफिस जाते समय आपका रुमाल आपके सामने नहीं होता , आपकी जुराबे पुरे पुरे हफ्ते गन्दी रहती हैं , सफ़ेद कमीज़ पर आप को मन पसंद का स्वेटर नहीं मिलता , दिन भर की थकान के बाद शाम को आपके सर पर कोई हाथ रखने वाला नहीं होता , किसी दोस्त के यहाँ पर कोई उत्सव हो तो उसको क्या उपहार दिया जाये का सुझाव नहीं मिलता , आफिस से भीग कर घर आयें तो जल्दी से तौलिया नहीं मिलता , आपको सर्दी न लग जाये इस लिए जल्दी से गर्म चाय नहीं मिलती , कभी कभी आप सोचे और वो है अपने बैग मैं सवेरे सवेरे मिले ... एसा नहीं होता , आप को कहीं जाना हो तो आपका सारा सामान समय पर नहीं मिलता ... सब खुद करना होता है !!

बहन और कोई सब कर तो देते हैं ये सब ... पर उनके किये में माँ के होने और.... उसके किये का अर्थ नहीं होता !!

ये कटु सत्य है जो आया है वो ज़रूर जाएगा ... किन्तु समय पर आना और जाना हो तो जीवन अर्थपूर्ण होता है ... माँ के न होने का अर्थ वैसा ही है ... किसी विशाल समुन्दर मैं कोई कश्ती अपने किनारे से भटक गयी हो और हर पल , हर सांस  दिशाहीन होने का खरता बना हुआ हो ...!

सभी माँ के धनि लोगो को बधाई ... आप के हिस्से से कुछ हमें भी दीजिये , आजीवन नतमस्तक रहेंगे !!

                                              - मनीष सिंह




Friday, August 5, 2011

" दोस्ती की उम्र "

" दोस्ती की उम्र " , कितना अव्यवहारिक प्रश्न है ना ....किन्तु प्रश्न है ! अब जब प्रश्न है तो उत्तर भी होगा ...! जी हाँ है ....! समझदार लोगों के उत्तर निराशाजनक होंगे ...और जो हल्का सोचते हैं उनके  उत्तर मन को तसल्ली देंगे ! 

.... जब दोस्ती सोच समझ कर की जाये तो खतरनाक है , लेकिन जब दोस्ती हो जाये तो उम्मीद है ! ये एसा ही है, जैसा की आपका रिश्ता या  प्यार आपके बयोलोगिकल संतान से कुछ और होता है और गोद लिए बच्चे के साथ कुछ और होता है ....! 

दोस्ती होने दीजिये .... करने मैं वव्साय की बू आती है !!

Thursday, August 4, 2011

जो हो जैसा , उसको वैसा आईना दिखलाइए !

" दिन के सारे अनुभवों को दोहराने की बात नही ,
       किसी के अच्छे आचरण पर लुट जाने की बात नही !
              जो हो जैसा ,  उसको वैसा आईना    दिखलाइए ,
                    दूरी अच्छी , खुद को मिटाकर कुछ पाने की बात नही !! "

Monday, July 25, 2011

" अख़बारों की स्याही ने भी धुंधला आँचल ओढ़ लिया "

" अख़बारों की स्याही ने भी धुंधला आँचल ओढ़ लिया ,
        सूरज ने भी अपनी किरणों की बांहों को सिकोड़ लिया !
                 हम तुम भी अब घर की राह पर धीरे धीरे बढ़ जाएँ ,
                         किरने सोयीं , पंछी सोये , सुख सपनों मैं खो जाएँ !!
                                                  ----------------------- धीरे धीरे सो जाएँ !!
                                                                                                  -- :             मनीष

Sunday, July 24, 2011

समय के साथ चलिए ... पकड़ने की कोशिश हमेशा आपको पीछे रखेगी !

" अनुभव " कितना सहज शब्द है ना ? जी हाँ , किन्तु आता ये अपने पास बहुत असहजता से...! अब देखिये ना कल तक आपके अपने संपर्को के लिए आपने कितने शब्द चुन रखे थे और आज कुछ के मने बदल गए ...ये हमें खुद बदलने पड़े ! कुछ सुखद हो गए ...कुछ दूरी बना गए ....! जो भी हो ...आपका अनुभव आपके साथ साथ औरों के लिए भी सहाय होता है ...जीवन को सहजता से लेने और जीने के लिए !!

नीम और शहतूत का स्वाद ...सिर्फ नाम भर लेने से आपकी जुबां पर आ जाता है...  ऐसे ही कुछ रिश्ते अपना स्वाद इस तरह से छोड़ जाते हैं की उन लोगो का नाम भर लेने से आपके  पुरे जीवन मैं एक अनुभव अपना वजूद सामने ले आता है ....कई बार शेह्तूत की तरह और कभी नीम की तरह .... !!

समय के साथ चलिए ... पकड़ने की कोशिश हमेशा आपको पीछे रखेगी ... जो जाता है जाने दो ..आने वाले का स्वागत करिए ... अगर साथ नहीं चल सकते तो !!

Thursday, July 21, 2011

व्यावहारिक रहिए , हर वक़्त तिज़रत अछी नई होती भाई .....!!

 शालीनता और संस्कारीकता दो प्रथक प्रथक व्यवहार हैं ! दोनो को जोड़ कर नही देखा जाना चाहिए !! एक होता है और एक अपनाना पड़ता है !! जो होता है उसपर क्या कहिए किंतु अपनाए जाने वाले के पीछे के कारण , कई बार उसका अर्थ बदल देते हैं !! आप किस परिवार से आते है ये आहें नही किंतु आप कैसा परिवार बनाते हैं ......महत्वपूर्ण है !! आपसे जुड़ने वाले को यदि ये एहसाह हो गया की आप अपने हित साधने हेतु शालीन होने का ढोंग कर रहे है तो वो पल आपके संस्कार पर भी भारी पड़ सकता है ...... व्यावहारिक रहिए , हर वक़्त तिज़रत अछी नई होती भाई .....!!"

जैसे सब के अपने अपने ईश्वर होते हौं ना उसी तरह से सब की अपनी अपनी बारिश !!

" आज बारिश थी !" जैसे सब के अपने अपने ईश्वर होते हौं ना उसी तरह से सब की अपनी अपनी बारिश !!
कोई सूखे खेत के लिए , कोई गर्मी से बचने के लिए , कोई अपने नये मकान की तराई के लिए ....कोई अपने कपड़ो को बचाने के किए , कोई अपने झोपडे मैं पानी ना आए इस की दुआ के साथ , कोई फाइव गार्डेन मैं भीगने के लिए और कोई एक दिन की दिहाड़ी मिलजाए के काम की तलाश मैं ...बारिश को आने पर निराशा से और कोई उसके आने को आशा से देखता है ....." सच हैं किसी के ना रहने पर ही उसकी महत्ता पता लगती है ....रहने पर तो सब अपने हित देखते हैं " वाह रे इंसान !! " जी हा मैं भी इंसान हू ...और आप भी तो !! चलिए अगली बार नये दृष्टिकोण से देखेंगे ! "

" हम कब हम हैं जब सब हमे माने .... "

" हम कब हम हैं जब सब हमे माने .... " हाँ आप कह सकते हैं की ज़रूरत क्या है किसी से एसा कहलवाने की ? " ज़रा सोचिए अगर एसा नही है तो हम ज्ञानी होने के बावज़ूद एग्ज़ॅम क्यों देते हैं ....और सर्टिफिकेट क्यों लेते हैं....बिना आपके पास सेरटिफीकटे के आपको कोई ज्ञानी मान लेता हैं ? "
हमारे सिर्फ़ हम होने और सबके हम होने मैं फ़र्क है....जीवन अकेले अपने दम पर ही नही चलता ....हमे लगता हैं की हम सब अपने दम पर कर रहे हैं किंतु ....हमरे साथ बहुत से हम होते हैं जो हमे सब का हम बनाते हैं ...अतः सब के बानिए क्यों की आप सब की वजह से हैं ....आप के गुजरने के बाद आप को सब याद रखेंगे क्योंकि सब ने आपको बनाया और आप सब के हम हैं......अकेले के नही......यदि आप मैं कुछ है तब ही ...."

नोच के लेने और सिर्फ़ पाने मैं अंतर है.... अंतर रखिए , आनंद रहेगा !!

योगेश का लिखा एक गीत है ....आनंद फिल्म का " कही दूर जब दिन ढल जाए..." इस गीत के आरंभ होने रे पहले एक ध्वनि सुनाई देती है .....बैलगाड़ी के पहियों की.... ...याद आया ? आज भी वो धुन ज़िंदा है हमारी यादों मैं जबकि हमारी खुद की आवाज़ आज कितनी बदल गयी है ....वैसे ही जैसे की हमारे कितने ही रिश्ते बने और ख़तम हो गये !! कुछ आखरी साँसे गिन रहे हैं .....कहीं पाताल पानी हो रहा है कुछ लोग अपनो को ज़िंदा रखने के लिए खुद की जान गावा बीते ! रिश्ते सिर्फ़ काम निकल लेने के लिए नही होते .. समर्पण के भी लिए होते हैं .....चलिए जाने दीजिए धीरे धीरे चलिए साथ साथ रहेंगे नही तो एकांकीपन तो सर्वथा साथ है ही ......!! नोच के लेने और सिर्फ़ पाने मैं अंतर है.... अंतर  रखिए , आनंद रहेगा !!

" कुटिलता और कुशलता मैं अंतर "

" कुटिलता और कुशलता मैं अंतर "
" कुशलता से किया गया कार्य ..फलीभूत होता है...और कुटिलता के परिणाम सम्यक होते हैं , साथ साथ कुटिल व्यक्ति की सीमाएँ तय हो जाती हैं ....संपर्क सीमित हो जाते हैं और संवाद परेशान करने लगते हैं ! " आधुनिक बनिए ....आवश्यकता भर ही....... नही तो बारिश मैं कटान किसी नदी की जिस तरह दिशा बदल देता है उस तरह ..... वस्तु विहीन हो सकते हैं !!....कुटिलता प्रोटीन हो सकती है ....किंतु अधिकयी ...विनाश का कारण भी....!!