Sunday, April 27, 2014

मन कहता है यादें उसकी ,दाग़ लगे ,पीले काग़ज़ !!

!! एक !!
मन कहता है यादें उसकी ,
दाग़ लगे  ,पीले काग़ज़ !

सूनी क्लासें,लम्बी गलियां,
तन्हाई में अपनापन,
खिड़की उसकी धुप घोलती,
आँखों में स्याही चन्दन !
जबतक समझे स्नेह नेह ये,
समझ बढ़ी और दूर हुए,
पानी उतरा आँखों से कुछ,
होठों ने भी शब्द छुए !!
नहर किनारे बूढा पीपल,
आस लिए कुछ कहता है,
फिर गूँजेंगीं  नेह किताबें,
और उछलेंगे वो काग़ज़ !
वो सब बीता , बीता गया सब,
कहाँ लौट कर आएगा !
साँसों साँसों बढ़ते जाते,
मैं भी ,वो भी ,और  हम सब ,
मन कहता है यादें उसकी ,
दाग़ लगे ,पीले काग़ज़ !



!! दो !!

जलते बुझते लैम्प सरीखे,
रात से दिन और दिन से रात,
कई किताबें ,खाली पन्ने,
लाखों शब्द अधूरी बात !
हलके हलके बढ़ता जाता,
एक  नशा , एकांकीपन,
जैसे मुझको उसको भी हो,
बस मेरा ,मेरा बन्धन !!
टुकड़े टुकड़े जुड़ते जाते,
जीवन के कुछ गहरे सत्य,
पंक्ति में फिर अंतिम दिखते,
यौवन के वो अगले कृत्य !!
मन का कोना ऐसा जैसे,
भरी दुपहरी खाली घर,
कितना कुछ करने की चाहत,
नहीं नियंत्रण ,पर ,मन पर !!
वो सब बीता ,बीत गया सब,
कहाँ लौट कर आएगा ,
साँसों साँसों बढ़ते जाते,
मैं भी ,वो भी ,और हम सब !
मन कहता है , यादें उसकी,
दाग़ लगे ,पीले काग़ज़ !!

!! तीन !!

गलियों गलियों  बारिश बारिश,
कश्ती कश्ती  आशा से हम,
पूरे तन पर आस लपेटे,
छप छप फिरते बादल  से  बन !
सिकुड़ी अंगुली , भीगे माथे,
बाहर ठंडक भीतर ताप,
पत्तों पत्तों रात टपकती,
नींदें उड़ती होकर भाप !!
गलियारे के उस कोने पर,
कमर टिकाये मिलते थे ,
हाथों में कुछ चॉक के टुकड़े,
अंगुली बींच मसलते थे !!
अब आगंतुक उन सड़कों के,
जिनको नपा करते थे ,
आस के पंछी जैसे तुम हम,
चढ़ते और उतरते थे !! 
वो सब बीता ,बीत गया सब,
कहाँ लौट कर आएगा ,
साँसों साँसों बढ़ते जाते,
मैं भी ,वो भी ,और हम सब !
मन कहता है , यादें उसकी,
दाग़ लगे ,पीले काग़ज़ !!

!! चार !!

गली मुहल्ला सारा अपना,
इसके उसके, अपने काम,
प्रेम के बंधन सारे बंधन,
अपनापन और अपनी बात !
डोरी छूटी, होली बिखरी,
दीवाली की सिकुड़ी रात,
संबंधों ने सीमा ओढ़ी,
अपनेपन के ख़ाली हाथ !
बिखरे पत्ते शीशम के फिर,
कल की याद दिलाते है,
धुंध लपेटे शाम के जुगनू,
आँखों में जग जाते हैं,
रेल टिकट के काग़ज़ जैसा,
मूल्य, समय सब सीमित है,
कौन ,कहाँ ,कब याद आये,
अघोषित और असीमित है !
वो सब बीता ,बीत गया सब,
कहाँ लौट कर आएगा ,
साँसों साँसों बढ़ते जाते,
मैं भी ,वो भी ,और हम सब !
मन कहता है , यादें उसकी,
दाग़ लगे ,पीले काग़ज़ !!

!! पाँच  !!

रेल की  पटरी ,सूनी सड़कें,
लम्बी रातें खालीपन,
 अंधियारे मे राह ढूंढता,
मेरा ,उसका जब बचपन !
कदमो कदमो दूरी दिखती,
दिन प्रतिदिन कि चिन्ताएं ,
चारदिवारी घर कहलाता,
गर्भित होती आशाएँ !
ढिबरी मे कुछ हिलती डुलती,
अपनी छाया साथी सी,
बचपन के दिन, रातें अपनी,
जैसे दिया बाती सी !
तुम भी गुजरे मैं भी बीता,
इन गलियों चौराहों से,
मत रूठो ,मत बिछुडो बन्धु,
बांह ना छोडो बांहों से !
कहते कहते बीत गया सब,
सब कुछ बीता , बीत गया सब,
कहाँ लौट कर आएगा ,
सांसो सांसो, बढ़ते जाते ,
मैं भी वो भी और  हम सब !
मन कहता है , यादें उसकी,
दाग लगे पीले काग़ज़ !

!! छठा !! 

गौरैया का आना-जाना,
खिड़की से ,दरवाज़ों से,
मुझको ,तुमको उसे बुलाना ,
सतरंगी आवाज़ों से !
छूटी गलियाँ,दूर हुये सब,
पानी मिट्टी और चन्दन,
रोशनदान के तिनके बिखरे,
ख़्वाब हुआ सब अपनापन !
 इसको पूछें , उसको ढूंढें,
ये भी संभव हो जाता,
बीते कल की अमरलताएं,
चौराहे पर बो जाता !
यादें तो हैं , खुशबू सूखी,
इन कच्ची दीवारों से,
विस्तृत हो कर सिकुड़ गये हम,
अपने ही आकारों मे !

सब कुछ बीत गया सब,
कहाँ लौट कर आएगा,
सांसो सांसो, बढ़ते जाते ,
मैं भी वो भी और  हम सब !

मन कहता है , यादें उसकी,
दाग लगे पीले काग़ज़ !

!! सातवाँ  !!

काग़ज़ के कुछ महल  दो महले ,
पत्तों के कुछ बिछड़े गॉव,
चुटकी चुटकी धूप पिघलती,
बूंदों बूंदों ढलती छाँव !
अम्बर छूते ऊंचे घर में,
कोने कोने खालीपन,
शाम सवेरे का मुस्काना,
रिश्ते नातों का बंधन !
खेल खिलौने  गुड्डे गुड़िया,
जैसे सबकी उमर बढ़ी,
उनींदी आँखों के सपने,
जुड़ते जैसे कड़ी कड़ी !
फिर लगता है जैसे कुछ तो,
मेरा अपना छूट गया,
झरनो का वो अल्ल्हड़पन,
और झूम के गाना छूट गया !
सब कुछ बीत गया सब,
कहाँ लौट कर आएगा,
सांसो सांसो, बढ़ते जाते ,
मैं भी वो भी और  हम सब !

मन कहता है , यादें उसकी,
दाग लगे पीले काग़ज़ !

!! आठवाँ  !!

पीपल के कुछ सूखे पत्ते ,
और गुलाबी पंखुड़ियाँ ,
यांदें जिनसे झाँका करती,
बनी किताबें खिड़कियाँ  !
बीते दिन ,ज्योँ बिखरे पन्ने ,
उलटे  - सीधे अर्थ लिए,
आरोहण  - अवरोहण में  ही,
मैंने  ,तुमने व्यर्थ किये !
मिलना जुलना ऐसा जैसे ,
रेतीली सी पगडण्डी,
जिनपर चलते जुगनू से हम,
संध्या संध्या दूर हुए ! 

आ जाओ फिर कड़ियाँ जोड़ें ,
देखें क्या कुछ मिलता है ,
मन से रिसता रेशम क्या फिर ,
प्रेम ध्वजों को सिलता है  !
प्रतिउत्तर की आसें बीती,
ये मन गाना भूल गया , 
पलकें सूखीं सागर रीता ,
और ,लहराना भूल गया !

सब कुछ बीत गया सब,
कहाँ लौट कर आएगा,
सांसो सांसो, बढ़ते जाते ,
मैं भी वो भी और  हम सब !

मन कहता है , यादें उसकी,
दाग लगे पीले काग़ज़ !
 
!!नवाँ !!
 
बिखरे कितने महल दुमहले,
चटटानों से ख़्वाब ढहे,
आयु -आयु सरिता उफनी ,
संबंधों के ,बंध बहे !
ये भी टूटा , वो भी बिछड़ा ,
पत्ते -पत्ते बिखर गए !
 
पुनः समाहित करना जैसे,
अंजुली  - अंजुली रेत भरूँ ,
हर कोशिश में  यादों जैसा ,
तिनका  -तिनका फिर बिखरूँ !
 
 नीली कतरन , पीली कतरन,
गुड्डे गुड़ियों के कपडे,
गर्मी की वो ढलती शामें ,
गलियों में तैयारी सी,
दिन बीते और खुशबू सूखी,
फूलों की उन क्यारी की !
 
अनुबंधों से स्वप्न हो गए,
मेरी तेरी रातो के ,
और आँखों के प्याले रीते ,
अपनेपन की बातों के !
 
सब कुछ बीत गया सब,
कहाँ लौट कर आएगा,
सांसो सांसो, बढ़ते जाते ,
मैं भी वो भी और  हम सब !

मन कहता है , यादें उसकी,
दाग लगे पीले काग़ज़ !

                                              !! दसवाँ  !!
 
आते जाते मन की बातें,
उसके शब्द हमारी याद,
उससे मिलना ऐसा जैसे,
सुबह सवेरे वाले ख़्वाब !
 
कंधों पर, आकाश उठाये,
उड़ते फिरते गली गली,
रोज़ बनाते बंधन ऐसे,
जैसे जूते फीते स्वप्न !
शाम से रातें रात से सुबह,
कतरन कतरन सिली सिली !
 
पगडण्डी और गालियाँ बीती,
लम्बी चौड़ी राह बनी,
कन्धों कन्धों हाथ कहाँ अब,
आँखों आखों तना तनी !
 
आँगन आँगन दुनियाँ उतरी,
चौखट चौखट सीमाएँ,
अर्थ ढूंढती फिरती सारी,
मेरी तेरी आशाएँ !
 
सब कुछ बीत गया सब,
कहाँ लौट कर आएगा,
सांसो सांसो, बढ़ते जाते ,
मैं भी वो भी और  हम सब !

मन कहता है , यादें उसकी,
दाग लगे पीले काग़ज़ !
 
 


स्कूल के दिनों को केंद्रित कर के लिख रहा हूँ …… आगे जारी है  ……