Saturday, February 26, 2011

बंधन का आनंद ! !

            
                          बंधन का आनंद ! हाँ , बस आज बंधन की बात करेंगे ......मुक्त रहना तो सब चाहते हैं....किन्तु आज बंधन की इच्छा एवं आनंद की गंगा मैं दुबकी लगा कर देखते हैं.

           माँ , जिनके पास है उनके लिए और जिन्होंने इस उपहार को खो दिया है.....उन सब के लिए उस पुकार के बंधन के आनंद का विवरण मांग कर देखिये ....नहीं दे सकेंगे .....क्यों की इस एहसास के लिए शब्द बने ही नहीं है....ये तो बस महसूस किया जा सकता है.......बंधन ...जी हाँ इस बंधन का अपना आनंद है....जिसके होने के लिए हम दुनिया की किसी दोलत को भी न्योछावर कर सकते हैं.......... उस पुकार के लिए तरस रहे किसी से पूछिए जिस के पास कोई पुकारने वाला ना हो....तब इस पुकार के बंधन के आनंद का अंदाजा हो जायेगा ....!
              

          हमारे जीवन मैं एक ना एक बार एसा समय ज़रूर आया होगा की किसी नवजात बच्चे के कोमल से हाथों मैं आप की एक अंगुली आई होगी....याद कीजिये उस रेशमी स्पर्श को जब बच्चे ने आप को छुआ और ओ पल स्वर्णिम बंधन के रूप  में अपना वजूद कायम कर गया .....ये कहीं नही मिलेगा ...बस ओ पल ओ पल होता है ....जिसके बंधन का कोई सानी नहीं ...!!

         जब हम जिम्मेदार होने का एहसास पाते हैं .....अपनी बहन के द्वारा आपकी कलाई पर रच्छा बंधन के दिन बंधे गए कच्चे धागे से ! कोई उस का स्थान नहीं ले सकता ....और कोई उस जिम्मेदारी को नहीं निभा सकता ....हमारे बिना ....और उस बंधन का अपना ही आनंद है....उनसे पूछियेगा ....जिन्हें बहन नहीं है ....तब आप तुलना कर सकेंगे की इस बंधन के होने और इस बंधन के ना होने मैं क्या फरक है !!

         अंत मैं खुद से खुद को बाँधने का आनंद ! हम जब अपने को ही नियंत्रित करते हैं खुद से जो सही होता है...हाँ एसा मानते नहीं हैं ....इश्वर को इस का सारा क्रेडिट दे देते हैं....की सब भगवान् करता है....पर करते हम सब खुद हैं....! कोई किसी के लिए नहीं रुकता ...जीवन चलता रहता है !! आप समय से साथ नहीं चले या आपी साँस समय पर नहीं चली तो हम रुक जाते हैं....सब आगे निकल जाते हैं. ....प्रेम , स्नेह , परम्परा , परिवार और ना जाने क्या क्या नामे दिए हैं हमें अपने को बंधे रखने के लिए .....हम बंधे रहे हो ही हम हैं ....नहीं तो हम हम नहीं रह जायंगे ....मैं हो जायेंगे .....और जीवन सिर्फ मैं से नहीं चलता ....हाँ जीवन रहता ज़रूर है ...चलता नहीं ....चलता है हम से और हम होना हो तो बंधना होगा और उस के आनंद की गंगा मैं तृप्त हो जाना होगा !


                    आप आनंदित हो कर देखिये ...बांध कर देखिये खुद को , सोच मैं परिवर्तन ला कर देखिये सब अच्छा है ...आनंद देने वाला है...हम हो कर देखिये ...मैं को पिघलाकर देखिये ...मैं फ़ैल कर हम हो जायगा सब को समां लेने के लिए.
                                                                            हम होने को आतुर आपका अपना ही - मनीष

                      


Sunday, February 20, 2011

जब वार्ता के लिए विषय नहीं रह जाते !!

                        कभी कभी एसा भी हो जाता है की दो या दो से ज्यादा लोगो के मध्य वार्ता के लिए विषय नहीं रह जाते और सब शून्य हो कर एक दुसरे को निहारने लगते हैं की कोई कुछ कहे की समय कटे ....!!
                 बड़ी असहज से इस्थिति होती है वो ....हर विषये का ज्ञान रखने वाले अचानक से ज्ञानहीन से हो जाते हैं तथा लगाने लगता है की ,,,,,बस किसी तरह से कोई आये और इस प्रगाढ़ होते जा रहे शून्य को तरलता का स्पर्श दे ताकि ज्ञान धराये अपने होने और नाही खोने का एहसास करने लगें !
                किन्तु एसा कभी नहीं है की एसा होता ही है.....कई बार इसी अवस्था बनाई जाती है की हर विषय पर बोलने वाला शांत हो कर किसी और के बोलने की प्रतीक्षा करे या , दुसरे को सुने ....

                कुछ लोग विषय नहीं होने पर कुछ अत्यधिक ही बोल कर नवीन विषय को जन्म दे देते हैं ....और ज्ञान की बातें पता चलती हैं....कुल मिला कर शून्यता कभी कभी ५ घंटो के प्रवचनों से भी अधिक प्रभावशाली एवं प्रयोगात्मक हो सकती है ....एसा मना जा सकता है......
                
                 कोई चीज़ अच्छी हो सकती है किन्तु उसको अच्छा समझाने के लिए ....आपके पास उसके बुरे का तजुर्बा होना चाहिए..तभी ना आप उस चीज़ के विषय के बारे मैं सही एवं प्रासंगिक निर्णय दे सकेंगे ....अन्यथा कहने को तो कुछ ना कुछ कहा ही जाता है.
                                           
                   प्रायोगिक होने एवें विशायिक होने मैं अंतर होता है .....जो होना भी चाहिए....जीवन सरल हो जाता है....जीने के लिए एवं वार्ता करने के लिए ......असहज नहीं लगता !
                                                                                                                   - मनीष