Saturday, December 10, 2011

..... फर्क है तो बस एक का दिखाई देता है दूसरा धोखे मैं है !!

           आज भी उसी जगह पर मिला , जहाँ रोज़ मिलता है ....हाँ वो मुझे रोज़ मिलता है , उसी तरह से जैसा की मैंने उसको पहले दिन देखा था ....शांत , अचल , निहारता हुआ और कुछ कहने को उत्सुक ....पर आज तक हमारे बीच कोई संवाद नहीं हुआ .... ! हम दोनों गतिमान रहते हैं ... मैं आते जाते उसको देखता हूँ और वो आते जाते लोगो को साथ मैं मुझे भी ....अरे हाँ वो भी गति मान है ...समय के साथ .....बस उसकी इस्थिति नहीं बदल रही .....!
           रेलवे फाटक के किनारे का पत्थर रोज़ मुझे आकर्षित करता है ....! उसको देखता हूँ और आगे निकल जाता हूँ ...शाम को फिर वोही ...सिलसिला ....पर कभी रुक कर देखा नहीं .... , क्या होगा रुकने से ....ना मेरी और ना उसकी इस्थाती मैं बदलाव आएगा ! जड़तव जुड़ चूका है ....दोनों के साथ , फर्क है तो बस एक का दिखाई देता है दूसरा धोखे मैं है !!

सुप्रभात ! आपका दिन और सप्ताहांत अनोखा बीते , ये ही कामना है !!

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