" पौण्डी की सड़कों का धुलना ,
टाटानगर की चहल पहल !
रात के सन्नाटे की उलझन,
झोपड़पट्टी , महल महल !!
स्टेशन पर भी चेहरों से अब ,
उत्साह की लाली ढलती है !
पथ सूने अब, चौराहे सुम ,
बस , नारंगी लौ जलती है !!
सबने अपने कोने पकडे,
हम भी सलवट सुलझाएं ,
............धीरे धीरे सो जाएँ !"
पौण्डी = पौण्डिचेरी , जहाँ आज भी सड़कों के सफाई रात के वक़्त नगर निगम करता है ! हर रोज़ सुबह सड़कें साफ़ मिलती हैं !!
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