Saturday, June 22, 2013

एक कहानी : फिर मिले , ना मिले !!

                     हल्की हल्की धूप में धुधली दिखती अपनी ही परछाई को देखता हुआ विप्लव मोहल्ले के नुक्कड़ की दूकान की और चला जा रहा था ! हाफ पेंट हाफ कमीज़ और सफ़ेद हाफ स्वेटर जो उसकी माँ ने बुना था पिछले साल पेहेन रखा था ! ठंडक थोड़ी कम थी इस लिए माँ ने भी नहीं टोका की फुल पेंट पेहेन लेने को ! पार्क के बीचों बीच से विप्लव अपनी धुन में चला जा रहा था सुई लेने को की अचानक किसी ने उसको पुकारा !

कहाँ भाई !! दुसरे कोने पर खड़ा अर्पण उसको पूछ रहा था !

विप्लव : सुई लेने जा रहा हूँ !

अर्पण : ठीक है , बाद में यहाँ आना !

विप्लव : पता नहीं माँ आने देगी की नहीं !

अर्पण : पूछ कर तो देखना !

विप्लव : ठीक है , तुम वहीँ रुको !

              जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते हुए दूकान में घुसा ! पहले से ही बहुत भीड़ ! अभी अभी कोने के स्कूल की सेकण्ड शिफ्ट की छुट्टी हुई थी तो सब बच्चे अपने अपने पसंद की चीज़ें खरीद रहे थे , तो अंकल को विप्लव की तरफ धयान देने का मौका ही नहीं मिल पा रहा था ! बहुत परेशान ! अगर जल्दी नहीं गया तो शाम हो जाएगी और फिर तो माँ बिलकुल नहीं आने देगी बाहर खेलने को ! इसी परेशानी में उसने जोर से बोला :

अंकल से सुई दे दीजिये :

अंकल : ज़रा रुको , अन्दर से लानी होगी और अभी भीड़ है , थोड़ी देर में देता हूँ !

विप्लव : अरे मुझे भी जल्दी हो सकती है !

अंकल : हाँ लिकिन यहाँ मेरी मदद को कोई नहीं है , इसलिए बोल रहा हूं !

विप्लव : आप तो कुछ नहीं समझते !

अंकल : ज़रा सा रुको अभी देता हूं , लो तब तक ये टॉफी खाओ - एक ऑरेंज वाली टॉफी विप्लव की तरफ बढ़ाते हुए बोला !

विप्लव : ठीक है , दीजिये ! विप्लव टाफी खाने लगा और भीड़ के छटने का इंतज़ार करने लगा !

आधा घंटा हो गया ! बच्चे कम हो गए थे !  एक दो बड़े  बच्चे कुछ बड़ी बड़ी बातों में लगे थे और छोटे बच्चे अपने घर जा चुके थे ! इसी बीच अर्पण भी विप्लव को देखने वहां दूकान पर ही आ गया !

अर्पण : यार सो गए क्या !

विप्लव : नहीं बस भीड़ थी तो अंकल अभी सुई निकाल कर लाये !

अर्पण : तो चलो फिर , अब क्या देर है ?

विप्लव ने कोने में खड़े तो बड़े बच्चो की तरफ इशारा करते हुए कहा सुनो वो भैया क्या बातें कर रहे हैं ! अर्पण को भी कुछ अच्छा लगा और वो भी वहीँ बैठ गया , साइड में रखे स्टूल पर !  देर तक वो उनकी  सुनते रहे !  वो दोनों भी इस बात से बे परवाह की कोई उनको सुन रहा है , बातें करते रहे ! हलकी बारिश शुरू हो चुकी थी बाहर !

अंकल ने उन दोनों बड़े बच्चो को कहा - बेटा बहुत देर हो गयी है आप अपने घर जाओ ! आपके पेरेंट्स परेशान होते होंगे !

अंकल की आवाज़ सुन कर इन दोनों अर्पण और विप्लव का भी ध्यान टूटा ! क्यों की ये दोनों नीचे की तरफ बैठे थे तो काउंटर के कारण अंकल को दिखाई नहीं दे रहे थे ! दोनों उठे और चलने को  हुए की  तभी विप्लव की माँ की आवाज़ सुनाई दी !

भाईसाब विप्लव आया था यहाँ ?

अंकल कुछ बोल पाते की विप्लव और अर्पण दोनों माँ के सामने खड़े दिखाई दिए !

माँ : इतनी देर से क्या कर रहे हो दोनों यहाँ ?

विप्लव : भैया की बातें सुन रहे थे !

माँ : क्या ?

अर्पण : हां आंटी जी हम बड़े भैय्या जी की बातें सुन रहे थे  !

माँ ने कुछ रिएक्शन नहीं दिया और बोल : अच्छा अब चलो घर , अर्पण तुम भी अपने घर जाओ !

शाम ढल चुकी थे ! सर्दियों में शाम जल्दी हो जाती है ! हलकी बारिश ने मौसम चाय और पकोड़ियों वाला कर दिया था ! अंकल ने अन्दर और बहार का बल्ब जलाया! और बहार जा कर देखा की कुछ भीग तो नहीं रहा ! बाहर वो दोनों बड़े बच्चे अभी भी स्कूल यूनिफार्म में खड़े कुछ बतिया रहे थे ! धीरे धीरे ! बारहवीं क्लास के बच्चे क्या बात करते होंगे इस उम्र में ! अंकल ने सोचा और उनके पास जा कर कहा , कल स्कूल नहीं आना है क्या ?

ना अंकल : कल के बाद शायद हम फिर ना मिलें ! मेरे पेरेंट मुझे रूस भेज रहे हैं और इसके फादर इसको आय आय टी मुंबई में दाखिले के लिए ले जा रहे हैं ! इस लिए हम ज्यादा से ज्याद टाइम एक दुसरे को देना चाहते हैं ! अंकल ने हलके से मुस्कुराते हुए कहा अच्छा बेटे , ठण्ड हो गयी है दूकान के अन्दर आ जाओ ! दोनों अन्दर आ गए !

शाम को दूकान में चेहेल पहेल बढ़ गयी ! लोग आ रहे थे , जा रहे थे!  आंटी दो बार चाय  कर अंकल को दे चुकी थी ! अब खाने के लिए बुलाने आयीं ! एक रायते की बूंदी का पेकेट देना और अब दूकान बंद  करो मैं खाना लगाने जा रही हूँ !  अब उन दोनों को बिछड़ना ही होगा ! दोनों अपने हाथों में हाथ डाले बाहर के पार्क की और चल दिए  और अंकल की आँखों से ओझल हो गए ! कोहरा पड़ने लगा था !

अंकल ने बाहर रखे दूकान के सामान को अन्दर करना शुरू किया ! बीच बीच में वो पार्क की सीट पर बैठे उन दोनों को देख लेते थे ! पता क्या बतियाते होंगे वो ! किस बात को बार बार सोचते होने ! 
बस रात के १० बज चुके थे ! विप्लव और अर्पण सो चुके थे ! अंकल खाना खा कर टहलने के लिए पार्क की तरफ चले ! वो दोनों वहीँ थे ! अंकल ने अब जोर से कहा ! अब तुम दोनों को घर  जाना ही चाहिए ! ठीक है अंकल कहते हुए दोनों घर चल दिए ! अगले मोहल्ले में ही उनके घर थे !

दिन बीते , महीने गुजरे ,साल बदले ! अंकल रोज़ अपनी दूकान लगते और शाम को बंद कर देते ! दिन भर पास के स्कूल के बच्चो की चेहेल पहेल और सुबह शाम बड़े लोगों की ज़रुरत की चीजों को लेने का ज़मावड़ा लगा रहता ! उनके अपने बच्चे थे नहीं ! इस लिए कमाने की हाय तौबा नहीं थी !  जैसा चल रहा था बहुत अच्छा था ! अंकल ने आंटी के लिए इलेक्ट्रिक ओवन ला कर रख दिया था ! अब वो ज्यादा देर तक कड़ी हो कर खाना  नहीं पाती थी ! ओवन दे आराम हो गया था !

दोपहर के २ बजे एक चमचमाती हुई बड़ी सी गाड़ी से दो लोग उतर कर अंकल की दूकान पर आये और बोले : अंकल दो पेटीज दीजिये !

अंकल ने सोचा इतनी बड़ी गाड़ी , इतने बड़े लोग ये तो पड़ोस के डोमिनोस में भी जा कर खा सकते थे ! इनको कैसे पता की यहाँ पेटीज भी मिलती हैं ! मेरी दूकान का तो पिचले दस साल से पेंट भी नहीं हुआ !

अंकल हो सके तो आंटी जी से कह कर गर्म करवा दीजियेगा !

हाँ बेटे , बस  पांच मिनट रुको ! अंकल अपनी उम्र से ज्यादा तेज़ चाल से अन्दर की तरफ चल दिए कहते हुए : हाँ ये दो पेटीज ओवन में रखना !

तभी दो लड़के दूकान में और दाखिल हुए ! अरे आज अंकल को अपनी दूकान की चिंता नहीं ! काउंटर एकदम खाली !

ये सुन कर पहले वाले गाड़ी वाले दो लड़कों ने कहा ! अभी आ रहे हैं , अन्दर तक गए हैं !

इन नए लड़कों ने उन दोनों को देखा और मुस्कुराये !

कार वाले लड़कों ने कुछ सोचा और इन के पास आये और बोले : क्यों भाई क्या हुआ ?

अर्पण और विप्लव ये दोनों आज बारहवीं में थे और वो दोनों कार वाले लड़के वो ही लड़के थे और कुछ साल पहले इसी दूकान में खड़े देर रात तक बतियाते रहे थे !

अर्पण और विप्लव फिर से मुस्कुराये और बोले ! भैया आप दोनों वो ही हो ना जो स्कूल ख़तम होने के बाद यहाँ आ कर खूब बातें करते थे और उस दिन तो अलग अलग सी बात कर रहे थे ! हमने सब सुना था !

इतना सुन कर कर वाले लड़कों ने अपना हाथ अर्पण और विप्लव की और बढ़ा कर अपने गले से लगा लिया ! जैसे कितने पुराने दोस्त फिर से मिल गए हों !

उन कार वाले लड़कों के लिए अंकल जी दो पेटीज अलग अलग डिस्पोज़ल प्लेट में सॉस का पाउच रख कर लाये  और बोले : ये लो बेटा !

कार वाले लड़कों में से एक बोला : अंकल जी दो और चाहिए !

अंकल : हाँ हाँ , तुम्हारी आंटी ने पहले से ही दो और गर्म कर रखे हैं , अभी लाता हूँ !

तब तक आंटी बहार आ गयी दोनों बचे पेटीज को ले कर ! लो बेटा !

लो भाई दोस्तों : कार वाले लड़कों ने अर्पण और विप्लव की और इशारा करते हुए कहा !

अंकल ने आश्चर्य से पूछा : तुम जाने तो अर्पण इनको ?

अर्पण : अंकल आप भी जानते हैं इनको !

अंकल : कैसे ?

विप्लव : याद कीजिये , कुछ साल पहले मैं तो अर्पण आपकी दूकान में देर तक बैठे रहे थे और दो बड़े भैया की बात सुन रहे थे !

अंकल : हाँ याद आया , तो ?

अर्पण : ये भैया दोनों वो ही तो हैं !

दोनों कार वाले लड़कों ने अंकल और आंटी की तरफ देखा और हाथ जोड़ कर नमस्कार किया ! जी हम वो ही हैं ! मैं आपके जिले का फ़ूड सप्लाई देखता हूँ और ये आपके पडोसी जिले का मुख्य सवास्थ्य अधिकारी है ! आज हम आपसे ही मिलने आये थे ये सोच कर की आप हमें पहचान पाते हैं की नहीं ! लेकिन आज हमें दो और पुराने दोस्त मिल गए !

अंकल और आंटी एक दुसरे को देख रहे थे !

आंटी बोली ! बेटा वैसे हो हम आप के बराबर नहीं हैं फिर भी अगर आज रात का खाना आप हमारे साथ करो तो ये समय और यादगार हो जायेगा !

C M O बोला : ये ही तो हम भी कहने वाले थे की आज रात का खाना हम सब साथ खाएँगे !

अर्पण और विप्लव तुम दोनों घर पर बोल कर  आ जाओ जल्दी से ,हम डिनर के लिए बाहर  चल रहे हैं !

विप्लव और अर्पण , आंटी और अंकल और दो पुराने दोस्त एक बड़े होटल के रेस्टोरेंट में दाखिल हुए और देर रात तक फिर से आनंद में खो गए अगली मुलाक़ात के लिए ! 

अंकल और आंटी की आँखें डबडबा रही थीं सोचते हुए की सब तय होता है !

मिलना और बिछड़ना और फिर से मिलना !

क्या पता , फिर मिले ना मिले !!                                                                                                    

बचपन अब यादों में !

                                                                                                                              :: -- :: मनीष सिंह