रास्ते , पड़ाव,
भीड़ और एंकाकीपन,
रंगमंच, सूनापन,
सब ,हमसे ही तो है,
वैसे ही,
जैसे समुद्र का,
लहर खता पानी,
झील में सुना,
रहता है और,
नदियों , नेहरों में,
अटखेलियाँ लेता,
अनगिनत भावों में,
रचनाएँ रचता हुआ,
फिर समुद्र
में जा मिलता है,
फिर से कुछ
कर गुजरने को ,
भाप होकर !!
Wednesday, October 16, 2013
भीड़ और एंकाकीपन !
Sunday, October 13, 2013
उलझे - उलझे फिरते हैं हम, पूरे साल झमेलों में !!
उलझे - उलझे फिरते हैं हम,
पूरे साल झमेलों में !
कंधे - कंधे टकराते हैं,
सडकों - सड़को ,रेलों में !
नुक्कड़ - नुक्कड़ मिलकर बैठें,
सुलझी - सुलझी बात करें ,
माथे -माथे, चन्दन - चन्दन,
हाथों -हाथों स्नेह मलें,
झूठ ,कपट के रावण फूकें,
आओ , शहर के मेले मैं !!
दशहरे और विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएं !!
by : Manish Singh
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