सिस्टर निरुपमा ने धीरे से दरवाज़े को भीतर की तरफ धकेलते हुए पुछा : उज्जवल बाबू आज कैसा महसूस कर रहे हैं आप ?
प्रतिउत्तर में में उज्जलव बाबू कुछ नहीं बोले !
सफ़ेद और हलके आसमानी रंग की अस्पताल के ड्रेस में कोई 80 - 85 बरस बुजुर्ग हो चुके उज्जवल घोष एक टक टप - टप टपकती सलाइन की बोतल की बूंदों के देख रहे थे !
सिस्टर निरुपमा ने अपने साथ आई एक नयी ट्रेनी सिस्टर का परिचय करवाते हुए बेड पर BP नापने की मशीन रखी और बोली : ये अरुणिमा है , आज से ये आपका ख्याल करगी !
उज्जवल बाबू ने मुस्कुराते हुए अरुणिमा के तरफ देखा तभी उनकी पलकों से दो बूँदें ढलक गयीं !
अरुणिमा अपनी सीनियर के रहते हुए भी खुद को रोक न सकी और उनके आंसुओं को कोमल गुलाबी अंगुलियों से पोछते हुए बोली !
क्या हुआ बाबा ? कुछ तकलीफ हो रही है ?
उज्जवल बाबू ने हामी में सर हिलाया !
सिस्टर निरुपमा : क्या हुआ ?
उज्जवल बाबू : आज सर में काफी दर्द है सिस्टर !
सिस्टर निरुपमा ने कोई टैबलेट लिखी पेपर पर और अरुणिमा को डाक्टर की विजिट के बाद खिला देना को कहा फिर अगले वार्ड में चली गयी !
अब उस वार्ड में उज्जवल बाबू और अरुणिमा रह गए थे !
अरुणिमा : बाबा, मैं ये टेबलेट ले कर आती हूँ !
उज्जवल बाबू : ठीक है बेटा !
और अरुणिमा बाहर चली गयी !
कैसे हैं उज्जवल बाबू : सीनियर डॉक्टर के साथ दो और जूनियर डॉक्टरों तपन और बियोज ने वार्ड में आते हुए पुछा !
उज्जवल बाबू : ठीक हूँ सर , बस आज सर में कुछ दर्द है !
डाक्टर : हाँ, सिस्टर निरुपमा से बताया था , उन्होंने कोई टेबलेट लिखी है ! दिखाइये क्या लिखा है !
उज्जवल बाबू : वो तो एक नयी सिस्टर अरुणिमा लेन गयी हैं !
डॉक्टर : खुद लेने गयी हैं ? क्यों ,वो तो स्टोर का डिलीवरी बॉय पंहुचा जाता !
तभी अरुणिमा ने वार्ड के दरवाज़े पर दस्तक दी : में आय कम इन सर ?
सीनियर डॉक्टर : आइये , आप खुद क्यों गयी थीं ? आपको मालूम होना चाहिए की ये डॉक्टर्स के विजिट का वक़्त है और हर पेशेंट के साथ सिस्टर का साथ होना ज़रूरी है !
आप ड्यूटी आवर्स के बाद मुझ से मिल कर जाइयेगा और जो सिस्टर आपको लीड कर रही हैं उनको बता दीजियेगा , हो सके तो उनको भी साथ में लाइए !
अरुणिमा के चेहरे पर शांत भाव लेकिन आँखों में डर साफ़ घर कर गया था , आँख झुका कर धीरे से बोली : सॉरी सर !
वो टैबलेट दिखाइए : सीनियर डाक्टर ने कहा !
अरुणिमा ने छोटा सा काग़ज़ और टेबलेट आगे बढ़ा दी !
सीनियर डाक्टर ने हां में सर हिलाया और कहा : ये ठीक है , ताज़े पानी से अभी एक टेबलेट दीजिये और फिर भी तकलीफ रहे तो मुझे बताइये मेरे एक्सटेंशन पर - खुद मत आइयेगा !
सिस्टर अरुणिमा ने हामी में सर हिलाया और बोली : जी सर ,मैं शाम को आप को रिपोर्ट करती हूँ !
ओ के कहते हुए डॉक्टर दरवाज़े से बाहर की तरफ बढ़ गए !
डॉक्टर तपन को अरुणिमा ने और सिस्टर अरुणिमा ने डॉक्टर तपन को धीरे से पलकें उठा कर देखा - ये सामान्य नहीं था ! अरुणिमा ने अपनी उठती पलकों से तपन को इस डांट से हुए को दर्द बताया हो जैसे , तो तपन ने अपनी धीरे से झुकती हुई पलकों से अरुणिमा को जैसे सांत्वना दी , कोई बात नहीं ,वो बड़े हैं , मैं हूँ न तुम्हारे साथ ! दो अनजान लोगो में अशब्द किन्तु अर्थपूर्ण संवाद जिसमे केवल समर्पण था !
दोनों लगभग हमउम्र डाक्टर तपन 25 बरस और अरुणिमा कुछ 21 बरस की उम्र में नर्सिंग की ट्रेनिंग पर इस अस्पताल में , आये थे ! ये पहली मुलाक़ात थी उनकी !
उज्जवल बाबू की तजुर्बे वाली निगाहें ये सब देख रहीं थी !
सादे पानी का गिलास और टेबलेट उज्जवल बाबू को देते हुए अरुणिमा ने कहा : बाबा , ये खा लीजिये फिर मैं आपके बेड के चादर और तकिया गिलाफ़ बदल देती हूँ !
उज्जवल बाबू : बेटा ,आज मैं बेड से उठ नहीं सकूँगा , कमजोरी महसूस हो रही है , आज चादर बदलना रहने दो !
अरुणिमा : बाबा आपको उतरना नहीं होगा ,मैं आपके लेटे लेटे ही बदल दूँगी ! आप पहले टेबलेट खाइये !
उज्जवल बाबू ने पानी का गिलास अरुणिमा की तरफ कर दिया दवाई खा कर और लेट गए !
अरुणिमा : बाबा ,आप बेड के एक तरफ करवट ले लीजिए !
बस फिर सिस्टर अरुणिमा ने बारी बारी से पुरानी चादर हटाई और फिर नई चादर बदल दी !
उज्जवल बाबू के साथ एक हफ्ते में ये पहली बार था की चादर बदलने के लिए उनको बेड से उतरना नहीं पड़ा था !
सिस्टर अरुणिमा ने वार्ड में रखे सभी सामान को करीने से सजा दिया और फिर आ कर बैठ गयी उज्जवल बाबू के पास रखे स्टूल पर !
सिस्टर अरुणिमा : बाबा ,आपके सर के बाल इतने लम्बे क्यों हैं ?
उज्जवल : बेटा मुझे शौक़ था लम्बे बाल रखने का ! मेरे ज़माने में जाने माने लेखक और कलाकार रखते थे ! तुमने गुरुदेव रबिन्द्र नाथ की तस्वीर तो देखी होगी !
सिस्टर अरुणिमा : हाँ देखी तो है ! लकिन ये तो उलझ गए हैं ! आपके घर से कोई नहीं आता ! सर पर तेल लगा कर इनको ठीक करना ज़रूरी है !
घर की बात सुनते ही उज्जवल बाबू का मन दुखी हो गया , शांत हो गए !
सिस्टर अरुणिमा : बाबा,आपके घर पर कौन कौन हैं ?
उज्जवल : दो बेटे , बहुए, शायद पोते पोती भी है !!
सिस्टर अरुणिमा : शायद , मतलब बाबा ?
उज्जवल बाबू ने काफ़ी देर शांत रहने और अरुणिमा के बार बार पूछने पर बोलना शुरू किया !
कोई 50 - 60 सालों पहले की बात है मैं तब छोटा था लेकिन जीने के लिए पैसा और पैसे के लिए मेहनत ज़रूरी है बहुत जल्दी समझ गया था !
रोज़ सुबह देबासिस दा की दुकान पर चाय पीता था और वो चाय तब देते थे जब मैं दो ड्रम पीने का पानी भरता था ! फिर अखबार बांटना और 10 बजे से हावड़ा रेलवे स्टेशन पर रेल गाड़ियों के यात्रियों को चिरुनी ( कंघियाँ )बेचता था ! ड्यूटी जाने और वापस आने के समय पर चिरुनी खूब बिकती थी ! दोपहर में कम ! दिन भर में दस से बीस कंघियां बेच लेता था ! दोपहर का खाना वहीँ पर एक मठ था उसमे खाता था ! शाम को चाय नाश्ता भी करता था वहीँ देबसिस दा की दूकान पर दो ड्रम पानी और मठरी के लिए मैदा सानेने के बाद !
ऐसे ही बचपन बीत रहा था ! मुझे नहीं पता की मैं कहाँ से हूँ ! किस परिवार से हूँ ! जब से होश संभाला देबसिस दा के पास पाया ! ना कभी मैंने पुछा और ना कभी उन्होंने बताया !
सिस्टर अरुणिमा शान्त और नम आँखों से सब सुनती जाती थी ! बीच बीच में वो दवाओं और सलाइन का भी ख़याल कर लेती थी !
उज्जवल बाबू को जैसे अपनापन अचानक मिल गया था बरसों बाद अरुणिमा के रूप में और मन की जड़ हो चुकी भावनायें पिघल कर बह चली थीं यादों की लहरों पर शब्दों की नावों पर सवार हो कर !
सिस्टर अरुणिमा आप लंच के लिए चलेंगी ? वार्ड के दरवाज़े को हलके से खोलते हुए डॉक्टर तपन ने पुछा !
उज्जवल बाबू ने अरुणिमा से पहले जवाब दिया : अंदर आइये छोटे डाक्टर बाबू !
डॉक्टर तपन , २५ - २६ साल का सजीला युवक ! यौवन की चरम सीमा चहरे पर झलकती थी ! बार बार अरुणिमा की निगाहें तपन को देख कर झुक जाती थी ! कुछ आधा फुट लम्बा था तपन अरुणिमा से ! आज उसने मूँगिया हरे रंग की शर्ट और लाइट चॉकलेट कलर का ट्राउज़र पहना था और ऊपर से सफ़ेद ऐप्रॉन ! गले में स्थेस्टस्कोप ! अरुणिमा ने कच्चे पीले रंग के सूट और सलवार उसपर काले रंग की चुन्नी पहनी थी साथ में सफेद ऐप्रॉन सलीके से ओढ़ रखा था , दोनों सुन्दर और सोबर दीख पड़ते थे !
बाबा हम लंच कर के आते हैं ! अरुणिमा और तपन दोनों ने एक साथ अगल बगल खड़े हो कर उज्जवल बाबू की तरफ देखते हुए पुछा ! जैसे अनुमति चाहते थे इस असामान्य बात के लिए ,ये सामान्यतः संभव नहीं ड्यूटी टाइम में !
उज्जवल बाबू : हाँ , मैं खुद अरुणिमा को लंच के लिए याद दिलवाने वाला था ! ठीक हुआ जो आप आ गए !
डॉक्टर तपन : जी ,बिलकुल चिंता न करें !
अदभुद रश्तों के अंकुर पनप रहे थे ! कौन किस की देखभाल और देख रेख करने को था अस्पताल में कुछ समझ नहीं आता था ! सारी परिभाषाएँ बदली बदली सी थीं !
दोनों मेस की तरफ बढ़ गए !
शाम की चाय और बिस्किट लिए उत्पल खड़ा था ! रोज़ वो ही चाय दे जाता था ! अरुणिमा ने चाय बाबू को दी और उनसे अपनी बात आगे कहने को कहा !
उज्जवल बाबू कहने लगे : फिर २५ - २८ साल की उम्र में मेरे साथ बहुत सारी घटनाएँ एक साथ हुई ! एक दिन मैं हावड़ा से दुर्गापुर जाने वाली ट्रैन में चिरुनी बेच रहा था ! ट्रैन में भीड़ खचा खच थी !
मैं अपने हाथों में कंघियों के गुच्छे लिए चिल्ला रहा था : चिरुनी ले लो चिरुनी ! सुन्दर , टिकाऊ चिरुनी ! आपके केश को ऐसा संवारे जैसे माँ का हाथ ! कोमल कोमल हाथों से ऐसे आनंद से जैसे की चमेली का तेल लगा हो केश में ! चिरुनी ले लो चिरुनी !
अरे, इधर आओ : एक रौबीले आदमी ने मुझे बुलाया !
उज्जवल : हाँ बाबू , कैसी चिरुनी लेंगे ?
आदमी : मुझे चिरुनी नहीं चाहिए ! तुम से कुछ बात करनी है ! मेरे साथ दुर्गापुर चलोगे ?
उज्जवल : वो क्यों ?
आदमी : वहां मेरी एक दूकान है और एक दुकान मैंने कोलकत्ता में भी ली है अब दोनों जगह मुझ से वो संभाला नहीं जाएगा ! बेटा है नहीं एक बेटी है , थोड़ी कमजोर है दिमाग से ! तुम अगर चाहो तो मेरे साथ मेरे घर चलो और सब सम्भालो !
उज्जवल : पर आप मुझ पर ऐसे कैसे विश्वास कर ले रहे हैं ! मैं तो आपको अभी अभी मिला ?
आदमी : मैं ट्रैन के इंतज़ार में तक बाहर देबसिस की पास बैठा था ! वो मेरे एक कोलकत्ता के दोस्त का दोस्त है ! वहीँ उसने तुम्हारे बारे में बताया !
उज्जवल : मेरे सामने पूरा जीवन था और साथ में थी एक उम्मीद और मौका ! बस मैंने हाँ भर दी !
दो बेटे हुए , प्रभात और विनय ! दोनों जगह की दुकाने ठीक था चल रही थीं !
दोनों को अच्छा पढ़ाया ! बड़ा बेटा सरकारी नौकरी में है और दार्जिलिंग में ! उसकी शादी करी लड़की उसने अपनी पसंद की देखी ! शादी के बाद वो दार्जिलिंग से मुझे कभी मिलने नहीं आया !
दूसरे बेटे ने सारा काम संभाल लिया था ! उसकी माँ का देहांत हुआ तो घर में किसी लड़की की कमी खेलने लगी ! मेरे गॉड फादर के ही घर से एक लड़की के साथ उसका विवाह कर दिया ! उस दिन से वो घर मेरे लिए जेल से कम नहीं रहा ! मैंने कोलकत्ता की दूकान में रहने का फैसला किया ! २० साल सब ठीक चला !
बाबा आप चाय लेंगे : अरुणिमा ने बीच में गंभीर होते माहौल को कुछ हल्का करने की कोशिश करी और सफ़ेद बड़े बड़े चीनी मिटटी के प्याले में चाय उज्जवल बाबू की तरफ बढ़ा दी !
शाम हो चली थी !
दूर हावड़ा ब्रिज के सहारे सूरज ढल रहा था !
अरुणिमा ने खिड़कियों के परदे खोल कर ठंडी हवाओं को निमंत्रण दिया !
अब , अरुणिमा के जाने का समय था !
उज्जवल बाबू उदास हो गए थे !
कल आती हूँ कह कर अरुणिमा ने रात की सिस्टर से चेंज ओवर किया और चली गयी !
डाक्टर तपन ने अरुणिमा को टैक्सी में बैठाया और घर की तरफ चल दिया ! कोलकत्ता की पहचान पिली पीली टैक्सी बरसों पुराने हावड़ा ब्रिज पर आगे बढ़ गयी ! उज्जवल बाबू देर तक खुले आकाश में सितारों को देखते रहे !
अगली सुबह !
आज आपको हल्का दूध देने को कहा है बड़ी सिस्टर ने वो भी छाली ( मलाई ) हटा कर ! सुबह सवेरे उत्पल ने बड़े गिलास में दूध बिस्किट टेबल पर रखते हुए उज्जवल बाबू से कहा !
उज्जवल बाबू में आज अनोखी ऊर्जा थी आज ! जल्दी जल्दी दूध पिया और बिस्किट बचा लिए अरुणिमा के लिए !
अरुणिमा : केमोन आछेन बाबा ? ( कैसे हैं बाबा ?)
कमरे में जैसे गुलाब की खुशबू बिखर गयी हो ! रात भर उदास सिकुड़ी छुईमुई के पत्तों सरीखीं उज्जवल बाबू की पलकें अचानक खिलखिला गयी थीं अरुणिमा की आवाज़ सुन कर !
उज्जवल बाबू : मैं ठीक हूँ , तुम कैसे हो बेटा ?
अरुणिमा ने जल्दी जल्दी सब कमरा ठीक किया ! दवा दी ! चाय नाश्ते और सफाई का प्रबंध किया ! डाक्टर की विजिट पर समय पर रही ! सब ठीक ठाक था ! ११ बजे बाद सब सामान्य कल की तरह !
अरुणिमा और उज्जवल बाबू वार्ड में बस !
अरुणिमा : बाबा कल अपने पुछा नहीं की सीनियर डाक्टर ने क्या कहा मुझे शाम को अपने केबिन में बुला कर ?
उज्जवल बाबू थोड़ा परेशान होते हुए : क्या तुम्हे उनके पास जाना पड़ा था ?
अरुणिमा : नहीं। ये ही तो बात थी मैं उनके पास गयी थी पर उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कोई बात नहीं जाओ ! मुझे लगा शायद तपन ने कुछ कहा होगा उनसे पर कल शाम तपन सर ने बताया उनकी कोई बात इस बारे में नहीं हुई ! समझ में नहीं आया की उन्होंने मुझे बुलाया थी डांटने के लिए पर , कुछ कहा नहीं !
उज्जवल बाबू मुस्कुराये और बोले मेरी आगे की कहानी बताऊँ ? वो छुपा गए की कल उन्होंने ही बड़े डाक्टर से उसके लिए बात कर ली थी !
अरुणिमा : एक मिनट रुकिए !
उसने अपने हैंडबैग से नारियल के तेल की शीशी , कंघी निकाल कर टेबल पर रखी ! बेड के लीड स्क्रू को लिवर के सहारे से घुमा कर उज्जवल बाबू का सिरहाने ऊंचा किया फिर उनके सर के पीछे स्टूल रख कर सर पर तेल की मालिश करने लगी !
अब बोलिए बाबा : अरुणिमा बोली !
उज्जवल बाबू को कोमल कोमल अँगुलियों के माथे पर एहसास ऐसे होता था जैसे दूधमुहे बच्चे के होठो पर रूई के फोहों में दूध रखा हो ! असीम आनदं ! असीम वैराग्य से भरे जीवन में ये भावनात्मक पल ऐसे थे जैसे बड़े से पानी के बर्तन में बूँद बूँद टपकती नील , जो धीरे धीरे पुरे पानी को अपना सा कर देती है !अनोखा समय उज्जवल बाबू के लिए बरसों बाद ! माँ और बेटी के प्यार को तरसते उज्जवल बाबू की पलकें डबडबा गयी !
मेरे बेटों ने मुझ से कोई संपर्क नहीं किया ! दुर्गापुर वाले को शायद एक बेटा और एक बेटी है , देबसिस बाबू कह रहे थे ! बड़े का तो कुछ पता नहीं ! यहाँ मैं बूढा हो गया तो अपने लिए ओल्ड एज़ होम में इंतज़ाम कर लिया ! सब की सेवा भी हो जाती है और मेरी खुद की देखभाल भी करते हैं सब !
अरुणिमा : दुर्गापुर में कहाँ रहते थे आप बाबा ?
उज्जवल बाबू : स्टेशन के पास के सब्जी बाजार में !
अरुणिमा : आप के बेटे का नाम क्या बताया ?
उज्जवल : प्रभात और विनय !
अरुणिमा धीरे धीरे कंघी से उनके लम्बे सफ़ेद बाल सीधे कर रही थी ! कितने दिनों बाद मौका आया था ! पत्नी के गुजरने के बाद बालों को किसी ने नहीं सवांरा !
उज्जवल : ये बढ़िया और लड़कों वाली चिरुनी कहाँ से ली ?
अरुणिमा : तपन सर की है , वो भी तो दुर्गापुर के हैं !
उज्जवल : क्या उन्होंने अपनी कंघी मेरे लिए दी ?
अरुणिमा : हाँ , मैंने ये बता कर ली उनसे !
तभी दरवाज़े पर डाक्टर तपन ने दस्तक दी !
तपन : कैसे हैं बाबा आप ?
उज्जवल : अच्छा हूँ ! तुम कैसे हो ?
तपन : सब ठीक है !
उज्जवल बाबू : डाक्टर जी सिस्टर अरुणिमा बता रही थी की आप भी दुर्गापुर से हैं !!
तपन : हाँ जी स्टेशन के पास जो सब्जी बाज़ार है ना , बस वही हमारी भी मनिहारी की दूकान है ! बहुत साल पहले मेरे बाबा के बाबा ने शुरू किया था , अब बाबा चलाते है ! मुझे डाक्टरी पढनी थी इस लिए मैंने वो काम नहीं किया !
उज्जवल : क्या नाम है तुम्हारे बाबा का ?
तपन : जी , विनय !
उज्जवल : तुम्हारे बाबा के बाबा का क्या नाम है और कोई बड़े पिता जी भी हैं तुम्हारे ?
तपन : जी उनका नाम तो नहीं पता पर बड़े पिता जी तो हैं मेरे , बल्कि आज उनको साथ लाया हूँ , दार्जिलिंग में रहते हैं वो ! कल ही आये थे आँखों में तकलीफ है उनके !मेरे साथ हॉस्टल में ही ठहरे हैं !
उज्जवल : क्या नाम ?
तपन : जी , उनका नाम प्रभात है !
अरुणिमा : अरे तपन सर मुझे लगता है की ये उज्जवल बाबा ही तुम्हारे बाबा के बाबा हैं !
तपन ने उज्जवल बाबा की तरफ देखा वो नाम आँखों से हाथ में तपन की दी चिरुनी को निहार रहे थे !
तपन : बाबा , क्या अरुणिमा सही कहती है ?
उज्जवल ने अपने होठों पर ढलके आँसुंओं को भीतर करते हुए चेहरा एक तरफ कर लिया !
तपन लिपट गया उज्जवल से !
अरुणिमा सीमाओं से बंधी टकटकी लगाये देख रही थे दादा पोते को !
सालों से अघोषित तलाश आज अंतिम पड़ाव पर थी !
क्या डॉक्टर तपन यहाँ हैं ? किसी ने वार्ड का दरवाज़ा खटखटाया !
अरुणिमा ने दरवाज़ा खोलते हुए कहा : उज्जवल बाबा आपके बेटे , तपन सर आपके पिता जी !
कई शब्द गढ़ गए , कितनी परिभाषाएँ हो गयी और कितने सम्बन्ध बिखर के फिर बंध गए दो दिनों में !
उज्जवल बाबा : तपन चलो घर चलते है , अरुणिमा को लाने का दिन तय करना है !
अरुणिमा ने चाय का प्याला उज्जवल बाबू की तरफ बढ़ाते हुए कहा : चाय लीजिये बाबा !
आज भी सूरज ढल रहा था , किन्तु सन्तोष और आग्रह के साथ !
बड़ी सी गाड़ी में बैठे उज्जवल बाबा ने चलने का इशारा किया ! हावड़ा ब्रिज से गुजरते हुए किसी ने उज्जवल बाबा के बड़े बालों को देख कर पुकारा : चिरुनी लेंगे बाबू ?
उज्जवल दा ने एक चिरुनी खरीद ली !
ना लेने के बाद की तकलीफ उन्हें पता थी , एक लम्बी तकलीफ जो सब के लिए सुखद अंत नहीं लाती !
एक कहानी : चिरुनी ( कंघी ) !
~~ समाप्त ~~
:::: मनीष सिंह ::::