Saturday, February 19, 2011

यथार्थ तथा कल्पना !!

                   कल्पना के सहारे कब तक जीवन चलता है ? हाँ कल्पना जीवन को सहारा देती है ....की जीवन चल सके और यथार्थ तथा कल्पना को भिन्न कर के आगे बढ़ सके.
                  रोज़ किस किस के liye जीते हैं और किस किस के साथ अपने जीवन को सार्थक बनाने के प्रयास करते रहते हैं.....इस बात का हमें भी कभी कभी एहसास नहीं रहता ...पर ham एसा करते हैं...जीवन बिताने के liye ...नया जीवन जीने के liye.
                                                                                     - मनीष 

Monday, February 14, 2011

अनाम रिश्ते , समर्पण और विश्वास !

         आज मैं अपने पुराने दिनों को याद कर रहा था ....तो याद आया की जिस रास्ते से मैं रोज़ स्कूल जाया करता था उस रास्ते मैं एक रेलवे का फाटक और कई दुकाने थीं ....जिनमें से एक नाइ की दुकान थी !
       रोज़ रोज़ उस समय एक ट्रेन गुजरती थे और इस वज़ह से फाटक बंद रहता था .....और जब खुलता तब सब जाते इस पार से उस पार या उस पार से इस पार...मैं भी अपनी साईकिल पर सब के साथ साथ जाता आता था. एक दिन मुंशी प्रेम चन्द की कहानी पढ़ाई गई नाम थामंत्र "....

        मैं सोचता रहा था की अगर उसने मंत्र का पाठ नहीं किया होता तो क्या होता ? पता नहीं किस तरह का रिश्ता बन गया था उनके साथ की उस अँधेरी रात मैं वो अपने घर से चल कर आया और मन्त्र पढ़ कर वापस चला गया. बस आज देखा की रेलवे का फाटक खुला हुआ है , सब लोग चले जा रहे हैं....मैं भी पार होगया ...फिर सोचा अगर गलती से फाटक खुला रह गया होगा और रेल आ जाती तो....? लेकिन एसा होता नहीं है ...
        अक्सर जब रेलवे फाटक बंद हो तो हम रुक जाते हैं पर यदि फाटक खुला है तो हम एक बार भी ये नहीं सोचते या देखते की रेल आ रही है या नहीं ..बस चलते चले जाते हैं ....ये रिश्ता अनाम होता है....जिस मैं समर्पण है पूरा का पूरा और हम करते हैं उन पर विश्वास ....!
        अब देखिये दुसरे मामले मैं जब हम नाइ के यहाँ पर शेविंग करवाने जाते हैं तो पूरी तरह से अपने को नाइ के हवाले दे देते हैं....हमारी गर्दन और नाइ का उस्तरा बस एक अनाम रिश्ते और हमारे समर्पण और विश्वास पर टिका होता है....एक बार नाइ का मन डोला और हमारा काम तमाम ....पर एसा होता नहीं है.....
         कुछ रिश्ते हम अपने जीवन मैं ऐसे ही बनाते है ...और उनका विशवास नहीं जाने देते और समर्पण कर देते हैं जिस से रिश्ते अनाम होते हुए भी गहरे हो जाते हैं ....पुरे जीवन के लिए !
         समर्पण की भावना विश्वास को बढाती है और रिश्तों को अनाम से नाम मैं बदलने के लिए आधार बनती हैं और नया जीवन पनपता है ...नयी पीढ़ी जनम लेती है ....नयी मुस्कान के विश्वास के साथ ...पूर्ण समर्पण के साथ फिर से अनाम रिश्ते बनाने की लिए .
                                                                                                        - मनीष सिंह


Sunday, February 13, 2011

Mall Culture In India and We !

            आज ही पता चला है की मुझे भी फ़ूड कपोंन मिलने वाले हैं....तनख्वाह कुछ इतने लिमिट को जा चुकी है.....!! मैं इन दिनों चिंतित हूँ की इस बात को ले कर !!

            कल तक ...नहीं नहीं आज तक मैं अपने घर का खाने पिने का सामान किरणे की दूकान से ले आता था पर अब कुछ सामान मुझे माल या बड़ी दुकान से लाना होगा ......फ़ूड कपोंन जो इस्तेमाल करने हैं..नहीं तो उनकी कीमत बेकार जाएगी.
            माल पता नहीं ...हम माल का मतलब कुछ और ही समझा करते थे ....तेरी माल , उनकी माल....या कभी किस्मत अच्छी निकली तो मेरी माल....पर आज कल तो हम सब का माल हो गया है..
एक छत के नीचे सब कुछ मिलेगा....हां सब कुछ ...जो चाहो.......पर वहां कीमत आप नहीं तय करेंगे वो सब तो फिक्स है...तमगा लगा है...सामान पर ...आपने अपनी जेब देखनी है और ..घर का बजट बस उठाइए ...खुबसूरत सी टोकरी मैं डालिए....और अगर कुछ भरी या ज्यादा सामान हो तो ट्राली ले लीजिये....और ताघ्राते हुए चलिए....इसी बहाने एअरपोर्ट पर चलने की फीलिंग का भी आनंद लीजिये......अब कौन जाने हवाई जहाज मैं कब बैठा जा सके ...किन्तु फील तो किया ही जा सकता है....
           चलिए पॉइंट पर आते हैं....हां जो सामान बनिए या किराने की दुकान पर १००/- रूपये का है ..माल मैं १२५/- का तमगा लगा आप को ताकता मिलेगा ....खूब सूरत पाकिंग मैं...हाँ भाई २५/- रूपये मैं क्या कुछ नहीं मिल रहा आपको...चलिए जोड़ते हैं ...
१. बड़े होने का एहसास ....
२. आप भी एअरपोर्ट पर चल रहे हैं....
३. पूरी दुकान वातानुकूलित हैं.....बनिया तो चाय ही पिलाता....यहाँ रेस्टोरेंट हैं...जो चाहे खा लो...सब के साथ पर अपने खर्चे पर.
४. वेरिटी ....एक सामन कई कई ब्रांड मैं......
५. बार कोड प्रिंटेड....पडोसी जब आपके घर के कूड़े मैं खाली पोली थींन  देखे तो आपके स्तर का अंदाजा लगा ले..की आप भी माल मैं जाते हैं....बनिया तो अखबार के लिफाफे मैं सामन दे देता था....सस्ता ज़रूर है पर आज कल की आईटी कंपनी वाले बच्चे जिन्हें १८ से २२ साल की उम्र मैं कम्पस सेलेक्टिओं से नौकरी मिल जाती है mote सलारी की .....बनिए को पसंद नहीं करते ...माल जाना पसंद करते हैं.....
    अब मुझ जैसा कोई ना जाना चाहे तो भी जाना पड़ेगा....नहीं तो ये कपोंन कहाँ प्रयोग हो सकेंगे ?
माल संस्कृति अच्छी है किन्तु समझदारी के साथ प्रयोग किया जाना चाहिए नहीं तो हम खोखले हो जायंगे क्रडिट कार्ड्स की पेमेंट करते रह जायेंगे.
जो दिखेगा वो ही बिकेगा ....ये ही सिद्धांत है माल और माल के सहयोगियों का....पैसा इंडिया मैं है...माल मैं सब दिखाओ ....क्रडिट कार्ड चलता है का वे दिखाओ...और सामान बेचो....
बड़े नाम वाली कंपनी का सामान घर मैं होना चाहिए......फिर उस सामान की ज़रुरत हो या नहीं ...बस चाहिए....
               हद इस बात की है की लड़के ये चाहते हैं की उनके अंडर गारमेंट्स मैं कुछ इस तरह का काम हो की ब्रांड काया पहना है दिखाई दे......कुछ तो बात होगी इस मैं.....और छोटे शेहर के बच्चे जब आई और UPTU के माध्यम से IT कंपनी मैं काम पा जाते हैं तो उनको अपने ही शहर मैं ये सब चाहिए होता है....नहीं तो पता कैसे चलेगा की स्तर उनंचा हो गया है....?
             इस मैं कुछ भी बुरा नहीं है......सब होना चाहिए...किन्तु दोहरे चेहरों के साथ नहीं ....आप दो जीवन ये एक से ज्यादा जीवन नहीं जी सकते ....अच्छा भी बना रहना और बुरा भी नहीं होना ......माल आपके ही प्रयोग किये जाने के बाद आगे बढे हैं ....और आप ही उसको बुरा नहीं कह सकते .......क्यों की आप भी , मैं भी चाहते हैं की हमें लोग जाने .....चाहे माध्यम कुछ भी हो...अंडर गारमेंट के ब्रांड नामे का ...१००/- रूपये का सामान बार कोड के साथ १२५/- रूपये मैं खरीदने का , माल के बहार से घर तक ऑटो या फिर टेक्सी से घर जाने पर पड़ोसियों मैं रौब ज़माने का भले बनिए की दुकान पर सामन सस्ता और रिक्शा से घर तक आया जा सकता हो...लेकिन क्या करैं IT कंपनी वाले बेटे ने जो कहा है...करना होगा....
           हमारे बिलकुल पड़ोस मैं एक दुकान थी कई सालों से ....३३साल तक तो मैंने देखि....अब बेटा बड़ा होगे ...दहेज़ मैं स्विफ्ट मिली है सो दुकान बंद है आज कल ....अंकल आंटी बाहर वाले चबूतरे पर खाली बैठे दिखाई देते हैं .....माल मैं जाते हैं सामन लेने...के लिए.
          अच्छा है ये सब ...कल तक जो कुछ आसानी से सब के लिए नहीं था आज उन सब के लिए हैं जिसके पास माल मैं जाने का हौंसला है...और जेब मैं रूपये हैं......और खास बात खरीदने के बाद तुलना नहीं करने का ज़ज्बा है......
बजट सब के लिए नहीं होता .....हाँ असर सब पर डालता है ....कोई जेब ढीली करता है कोई भर लेता है ....सरकार दोनों का मजा लेती है....खर्चा करने वाले से पूछती है आप पैसा लाये कहाँ से ...और सामान बेचने वाले से कहती है की आपने उत्पाद शुल्क , बिक्रीकर , सेवाकर सब का भुगतान सही से कर दिया हैं ना...नहीं तो हम आ रहे हैं आपके पास चाय पीने के लिए....! माल वाले माल बना कर बन रहे है ....भारत जिन की सरपरस्ती मैं आगे जा रहा है...उनको साधुवाद...और हमें धन्यवाद की हम आगे बढ़ रहे हैं..
माल रोड , माल - मेरी , तुम्हारी, उनकी .....सब बधाई के पात्र हैं...आप भी जो इस ब्लॉग को पढ़ रहे हैं....

                                 हम सब जानते हुए सब करते हैं ....ये ही हमारी खासियत है ....!
                                                                                                                      - मनीष






Aruon Ke liye ....Apno Saa......

तुम समय के हर थपेड़े को सहन कर देखना ,
           सत्य के मिथ्या के शुल्कों को वहां कर देखना !
                      बूढ़े तन में जब कभी सांसो की थिरकन तीव्र हो,
                                 तुम उसी सी तीव्रता को ग्रहण कर देखना ,
                                           बचपने के राह तकती दिख पड़ेगी ज़िन्दगी,
                                                       कुछ पलों की चाह रखती दिख पड़ेगी ज़िन्दगी.
                                                                                                                         - मनीष.
               अपने लिए तो हम सब प्राकर्तिक रूप से जीते ही हैं.....आनंद तब है जब हम दूसरों के लिए अपनों सा जीवन जियें.. मुश्किल है ....पर हां आनंद देनेवाला....हां असीम आनंद ....दिव्य आनद ...कोई सीमा नहीं....!!
महसूस कीजिये कभी उस दुःख को , दर्द को जिसे कोई जी रहा है.....कुछ पल के लिए .....आनंद आएगा ....इस बात का की आप किसी और को भी सुख देने के लायक हो गए....!!
सब की कोई कोई मजबूरी होती है....जीवन भर रहेगी भी....उसी समय में से थोडा समय किसी और को दीजिये....और प्रफुल्लित हो जाइए....
संतोष होगा , मन को ....की कुछ किया....आपने लीक से हट कर...
तीन वक़्त का खाना, हफ्ते मैं दोस्तों se दो चार बार मुलाकात, साल मैं परिवार के साथ किसी जगह की हफ्ते भर की सैर ...अपने और अपने परिवार के लिए एक भरी रकम का बिमा.....और कुछ लाख का बैंक बैलेंस परिवार के लिए उनके बुरे वाक्क्त के लिए.....ये तो सब कर ही लेते हैं भाई ...कुछ करिए एसा जो सब अमूमन नहीं करते ....दूसरों के लिए....

मेरा कोई maksad नहीं की मैं किसी को सलाह दूं....मैं तो अपने लिए ये सब लिख कर रख रहा हूँ....ताकी कभी भुलाना चाहूं तो ये याद दिलाता रहे...!!

साथ रहिये सब के साथ चलिए सब के ....सब को aage laane के लए ....सिर्फ अपने लिए नहीं ....हाँ कभी कभी एसा समय भी आता है की सिर्फ अपने लिए ही कुछ करना होता है....करिए ज़रूर ...लेकिन ज़मीन को छोड़ कर नहीं ...वापस आ जाइए वहीँ ....जहाँ सब हों......नहीं तो अकेले हो जायेंगे ....और जब सब की सखत ज़रुरत होगी ...तब कोई साथ नहीं होगा.....!

वक़्त लगेगा ...पर हो जायेगा .... एसा विश्वास है खुद पर , खुद की सोच पर....
                                                                                                            - Manish