Sunday, November 18, 2012

सूर्य अस्त ज़रूर होता है , किन्तु पुनः उदय होने के लिए !!

                               सूर्य अस्त ज़रूर होता है , किन्तु पुनः उदय होने के लिए !! 

             सामान्यतः उदय होते सूर्य को नमन करने की परंपरा है किन्तु ये भारत है और यहाँ सब के लिए सम्मान की संभावनाएं हैं ..... !! एक पर्व मनाया जाता है हमारे देश के पूर्व के हिस्से में ...दीपावली के बाद छठ नाम से जिसमे सूर्य भगवान् को अर्घ देने की परमपरा है ....दो बार जिसमे पहला अर्घ डूबते हुए सूर्य को अर्घ दिया जाता है और पूरी रात नदी , सागर , ताल , तल्लिया , झील जिस के भी  किनारे रुक कर पूजा अर्चना की जा रही है दूसरा अर्घ अगले दिन उगते हुए सूर्य को देते हैं !!

             आज दिनांक 18.11.2012 को भारत के एक पश्चिमी राज्य के एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व की अंतिम विदाई में भी लाखों लोगो ने नाम आँखों से सम्मान व्यक्त किया ! उत्थान और पतन एवं पुनः उत्थान जीवन के साथ चलने वाली पुष्पों की पौध हैं ....जो कहीं मौसम और परिवेश के अनुसार खिले मिलते हैं और कहीं छुईमुई की तरह से थोड़ी देर के लिए सिकुड़े हुए ...किन्तु जल्दी से खिल जाने की आशा लिए !!
             अब देखिये ना कुछ सालों पहले की बात होगी ...पड़ोस की भाभी जी अपने छोटे बच्चे को ले कर आई थीं मेरी बहन से पढ़ाने के लिए ...वो बच्चा खूब पढ़ा ...और अब भी सही से पढ़ रहा है .... आज उस से मुलाक़ात हुई ...कुछ परेशान था ....कारण जो उसने बताया " भैया दीदी आज मुझे एक पुराना दोस्त मिला ...और उसने मुझ से कहा की यार तुम तो पीछे रह गए ...बस इतना सुनके भाई साब परेशान ....!! "  खुद ही समझ गया वो ...जिन परिवेशों , जिन उप्लाभ्धियों और सह्योंगों के बीच में वो पला और बढ़ा है उसमे उसने जितना प्राप्त किया और कर रहा है वो तुलनातमक नहीं है , न ही हो सकता ....जो कर रहे हो  वो उत्तम है बस उसे सर्वोत्तम करने की ज़रुरत है ....न की किसी और की उपलब्धि के तुलना कर के परेशां हुआ जाये !! ये संतोष तो है ना की किसी आरक्षण की बैसाखी का सहारा तो नहीं लिया !!
           रोज़ सबेरे में टहलने जाता हूँ , रोज़ उस से मिलता हूँ ! वो ...हाँ वो जो रेलवे के फाटक के दुसरे किनारे पर सफेदे के सूखे पेड़ के किनारे एक प्लास्टिक के बोर पर अपने दोनों हाथों को अपने दोनों घुटनों के बीच में जोड़ कर सबकी सलामती की दुआ करता रहता है ....हर किसी ...की जी हाँ सही सुना सब की कोई भी व्यक्ति विशेष नहीं , कोई भी आम नहीं ...सब सामान हैं उसके लिए किसी ने कुछ दे दिया तो ज़रा और जोर से बोल देता है ...किन्तु सब की सलामती की दुआ मांगता है ....!! उसके किनारे से ना जाने कहाँ कहाँ कहाँ के लिए लोग जाते हैं ....रेल से तो एक तरफ जम्मू और दूसरी तरफ मुंबई और दिल्ली तक ... और सामने वाली सड़क से सब लोग बस चलते चले जाते हैं ...दूर दूर ...किन्तु वो वहीं रहता हैं सबको दुआ देता हुआ , अपने अपने गन्तव तक सही सलामत पहुच जाने के लिए .... वो खुद चल नहीं सकता ....और देख भी नहीं सकता बस बोल सकता है !! उसको उसके बचपन से देख रहा हूँ ... सब कुछ बदल रहा है . बदल रहा है तो बस एक चीज़ नहीं उसकी दुआ और वो ज़गह जहाँ वो है और था !! इस जीवन में क्या है , कुछ नहीं बस वो जो हमने दूसरों को दिया जिस से आप याद् किये जाओ ....अपने लिए तो वो चार टांगों वाला भी कर ही लेता है ...एसा सुना है ....!! ये हल्का तर्क है ...किन्तु कभी कभी भारी माहौल में हलकी बात वज़नदार हो ही जाती हैं !!
           गाज़ियाबाद में एक जगह है नाम है गन्दा नाला ....वहीँ पर दो दुकाने हैं जहाँ पर शहर की सबसे अच्छी इमरती और जिलेबी मिलती हैं !! बहुत अजूबे हैं ....ज़रा ठीक से टटोलिये संभवतः आपके आस पास भी कुछ लोग इसे मिलेंगे ....जो कभी परिभाषित हो ही नहीं सकते ....जो चाहते सब हो किन्तु देना कुछ नहीं ...एसे लोग अपनी पहचान कभी कर ही नहीं सकते किन्तु दुसरे लोग उन्हें ज़रूर पहचान के दूरियां बना लेते हैं ....मौकापरस्ती ज़यादा समय तक साथ नहीं देती !!
          सहारा ले कर उठाते लोग ....सूरज होते ही नहीं ....भले सवयम को परिभाषित सवयम्भू के रूप में करैं ....कूपमंडूक की तरह ...ये ही सच है !!