Thursday, April 24, 2014

सूखता बरगद ,हरी कर देता है , यादें !

सूखता बरगद,
हरी कर देता है ,यादें !
जिसकी छाँव मे,
डगमगाते कदमों से,
स्कूल का पहला दिन !
लू चलती दोपहर में,
जिसकी छावं तले ,
इण्टर के रिज़ल्ट ,
का इंतज़ार !

सुबह , दोपहर,
शाम , रात ,
दिन प्रतिदिन,
साइकल से सकूटर,
फिर कार, 
सब समा जाते थे ,
उसकी छावं के फैलाव मे !
घर वहीँ ,वो वहीँ,
वही कमीज़ पहने,
नए नन्हे डगमगाते कदम,
मेरी अंगुली थामे,
पूछते हैं,
ये कौन है ,
जो छाँव नहीं देता ?
मैं और बरगद,
खो जाते हैं ,
अतीत के विस्तार में,
अशब्द,
आँखे नम किये !

सूखता बरगद,
हरी कर देता है , यादें !

Monday, April 21, 2014

टूटी सड़कें ...

टूटी सड़कें,
मुझे और आपको,
अकेला नहीं होने देतीं,
उदास होने पर,
राह दिखतीं है,
कुछ और टूटते हुए!

भोर में,
दिन की भीड़ में,
रात के सन्नाटे में,
आवाज़ें देती है,
पूछती हैं,
किस राह चले,
क्यों चले,
फिर  हम,
राह तलाश लेते हैं,
अकेला छोड़ देते हैं,
सडकों को, उदासी से,
कुछ और टूटने के लिए  !