Tuesday, December 31, 2013

दोस्ती का कम्बल, अपनेपन कि वैसलीन !!

दिन से हफ्ते,
हफ्ते महीने,
महीने तिमाही,
और छमाही,
मिले तो पूरा साल हुआ !

सन्देश मिले,
आदेश मिले,
अनुबंध हुए,
प्रतिबन्ध हुए,
संपर्क किये,
विनिमर्श किये,
सफल हुए,
उत्थान मिला,
गतिमान रहे,
विफल रहे,
गतिमान रहे,
अभिमन्त्र रहे !

नव वर्ष का गुलाब,
दिन पंखुड़ियों से
गुथे गुथे,
खुश्बू खुश्बू सन्देशे।
संपर्कों कि रेवड़ियां,
आशाओं कि ताप,
संतोष के मफ़लर,
दोस्ती का कम्बल,
सम्बन्धों कि कड़क चाय,
सुर्ख होठों पर,
अपनेपन कि वैसलीन,
मुबारकबाद देती हैं,

हम आपको , सबको ,

हैप्पी न्यू ईयर !!

: मनीष सिंह 

Tuesday, December 24, 2013

बुलबुले ,संवेदनाहीन होते हैं !

बुलबुले ,
संवेदनाहीन होते हैं !
फूट जाते हैं !

समर्पण पर भी,
नमन पर भी,
आचमन पर भी,
संजोने में भी,
बिखेरने में भी,
समेटने में भी !

बुलबुले,
तलाशते हम,
सिमट जाते हैं,
रेत में,
सूखते पानी कि तरह,
आशाओं का !

बुलबुले,
संवेदनाहीन होते हैं !
फूट जाते हैं !

## मनीष सिंह ##  

Saturday, December 7, 2013

" रवि " , अंतहीन पथ का, अग्रणी हो कर !!

आज " रवि " नहीं है !!
डूबा नहीं है वो !
छुप सा गया है !

फिर झांकेगा,
कलियों में,
मुस्कुराते फूलों में,
मेरे  तुम्हारे साथ,
चाय पीते हुए,
बातों में,
शब्दोँ में,
पलकों के किनारे,
आंसुओं में,
कंधे पर झुकते हुए,
हाथ हिलाते हुए,
बारिश में,
छतरी लिए !
उतरते हुए,
और फिर से,
चढ़ते हुए,
सीढ़ियां, यादों कि !
मेरे और तुम्हारे लिए,

डूबा नहीं है " रवि ",
छुप सा गया है,
हम सब में,
मुस्कुराता हुआ ,

" अंतहीन " पथ का,
अग्रणी  हो कर !

मेरे श्रद्धा सुमन " रवि मूल्या " को !

: - मनीष सिंह

Wednesday, November 20, 2013

प्लेटफॉर्म पर सर्दी !

गुनगुनाती ठण्ड,
खौलती चाय,
आलाव कि लकड़ी,
डूबती किरणे,
महकता हरश्रृंगार,
दौड़ती कारें,
धुंध में छुपते ,
लैंप पोस्ट,
सब कहते हैं,
सर्दी आ गयी !
किन्तु ,
छोटू अब भी,
हाफ नेकर में है,
कहता है , 
प्लेटफॉर्म पर सर्दी,
कम्बल बटने कि ,
रात और शाम ,
को ही आती है,
जब शहर के
सम्मानित आते हैं !! 
  :::::: मनीष सिंह :::::::


Wednesday, November 13, 2013

एक कहानी : " अखबार, लोगे बाबू !! "

         " शलभ " कोलकत्ता के नेताजी सुभाष चन्द्र बोस हवाई अड्डे से बहार आ कर अपने लिए भेजी गयी टैक्सी का इंतज़ार कर रहा था कि तभी ड्राईवर का फ़ोन उसके मेहेंगे मोबाइल पर आया और उसने आधे घंटे का बाद आने कि बात बड़े परेशानी से कही कि ट्रेफिक में फंस गया है ! 
           ये बात जैसे " शलभ " के लिए जैसे मन कि मुराद  पूरी होने जैसी थी ! वो तो चाहता था कि बरसों बाद अपने शहर आया था तो कुछ समय मन भर इसे देख ले कि कितना बदल गया है कोलकत्ता और उसकी वो गालियां जहाँ वो " अमृत बाजार पत्रिका " और " दैनिक आज " अखबार को सड़कों पर दौड़ दौड़ कर बेचा करता था टैक्सी वालों , रिक्शा वालों , साईकिल वालों , ठेलों वालों , मछली वालों , डबल रोटी वालों, चाय वालों , कार वालों , बस में , ट्राम में , मेट्रो स्टेशन के बाहर , रेलवे स्टेशन पर , हावड़ा ब्रिज के इस पार से उस पार मिनी बस में , हुगली नदी कि लहरों में नाव पर " झाल मुढ़ी " खाते हुए , कुल्हड़ में दो घूँट चाय को सुड़कते हुए हाफ पैंट और नीली हाफ कमीज़ में ! 
             कोलकत्ता कि पहचान " पीले और काले " रंग कि एक टैक्सी को शलभ  ने प्रीपैड काउंटर से बुक किया और होटल का पता बताते हुए चलने को कहा ! एयरपोर्ट से सिर्फ १० मिनट कि दूरी पर ही था होटल ! टैक्सी ड्राईवर ने  मायूस हो कर शलभ को देखा और अटेची ले कर डिक्की में डाली ! तब तक शलभ टैक्सी में बैठ चुका  था ! लेपटॉप का बैग अपने साथ ले कर !

टैक्सी डाइवर : कोथाय थिके एशेछैन अपनी ? ( आप कहाँ से आये हैं ? ). 

शलभ : काठमांडू !

टैक्सी डाइवर : ठीक आछे ! कोलकाताये कि काज ? ( कलकत्ता में क्या काम है ?) 

शलभ : एक बड़ा ठेका मिलने वाला है अनाथालयों में कपडे सप्लाई का , उसकी हो मीटिंग है सरकारी अधिकारिओं के साथ कल !

टैक्सी ड्राईवर : आप क्या करते हैं ?

शलभ : नेपाल में गारमेंट कि एक बड़ी विदेशी कंपनी में बड़ा अधिकारी हूँ !

टैक्सी ड्राईवर : सही है !

टैक्सी छोटी बड़ी गलियों से होती हुई गुज़र रही थी ! शलभ ५ साल के बच्चे कि तरह एकटक  अपनी ठुड्डी को टैक्सी कि खिड़की पर टिकाये बाहर  सब देखता जाता था और कुछ सोचता जाता था ! 

             विक्टोरिया मेमोरियल के सामने से गुजरते हुए हाफ पेंट में घुमते बड़े , छोटे लोग मॉर्निंग वाक करते दिखे ! उनके साथ उसने खुद को दौड़ता पाया बायें हाथ पर अखबार लिए ! ले लीजिये बाबू आज कि सबसे पहली खबर है मेरे पास ! साथ में २ पन्नो का एक मेगजीन भी है " फोकट " का ! किसी को दो रूपये किसी को डेढ़ रूपये का, पचास पैसे उधार कर के सब अखबार २ घंटे में बेच डलता था " शलभ " ! फिर काका कि दूकान पर कुल्हड़ कि चाय और फेन खाता था ! वापसी में एक रुपए कि जलेबी और दही ! बस हो गया नाश्ता ! पास का स्कूल और स्कूल में  मास्टर जी कि डाँट ! अनाथाश्रम में ही रहता था ! वहीँ हावड़ा ब्रिज के उस कोने पर तो था वो घर जहाँ तो आठ साल रहा ! कौन लाया उसको आज तक कोई बता नहीं सका ! जब आया था तो घोषाल दा थे और अब वो नहीं हैं ! उनके समय में ही एक मारवाड़ी परिवार जो नेपाल में कपड़ो का व्यापार करता था ने उसको गोद ले लिया था ! 

" अखबार लोगे बाबू ? "

किसी ने जैसे अचानक चलती हुई ब्लेक एण्ड वाइट पिक्चर के सामने रंगीन शीशा रख दिया हो ! 

एक १० साल का लड़का शलभ के कंधे पर हाथ रख कर पूछ रहा था : अखबार लोगे बाबू ?

शलभ ने अपनी आँखों कि गंगा - जमुना को रुमाल रुपी शिवजटा में सँभालते हुए उस लड़के से पुछा : कितना अखबार बेच लिया अब तक ?

लड़का : १० रुपया का !

शलभ : कितना का लिया है सब ?

लड़का : १०० रुपया का !

शलभ : कितना कमा लेगा ?

लड़का : पता नहीं,  लेकिन मेरे स्कूल का फीस और खाने का पैसा जुट जाता है, बाबू !

शलभ के तन में जैसे सिहरन सी दौड़ गयी !

              ये ही तो उसके भी गणित थे उस समय , जब वो अखबार बेचता था ! आँखों कि नदियां उफान पर थीं ! सब बाँध तोड़ कर बाहर आना चाहती थी ! उसने टैक्सी का दरवाज़ा खोला और सड़क के किनारे उस लड़के के कन्धों पर हाथ रखता हुआ बैठ गया ! टैक्सी ड्राईवर भी उतर कर आती जाती गाड़ियों को देखने लगा !

शलभ  ने अपने सिगारदान से महंगा सिगार निकाल कर लाइटर से सुलगाया और अखबारवाले लड़के से  बांगला पुछा : तुमार नाम कि ? ( तुम्हारा नाम क्या है ? ) .

लड़काअनिरुद्ध। 

शलभ : अच्छा अनिरुद्ध ये सब अखबार तू मुझे बेच दो और ये लो १५० रूपए !! 

अनिरुद्ध : जी अच्छा ,  अखबार आपकी गाड़ी कि डिक्की में रख देता हूँ !

और उसने वैसा ही किया ! फिर से उसके पास आ कर बैठ गया !!

शलभ सिगार के कश लेता जाता था और अनिरुद्ध से बतियाता जाता था !

शलभ को कुछ देर बाद ये महसूस हुआ कि अनिरद्ध उसकी बातों को ठीक से सुन नहीं रहा है , तो उसने अनिरुद्ध कि तरफ देखते हुए पुछा : कि रे कि होलो ? ( क्या हुआ ? ).

अनिरुद्ध ने परेशानी भरे अंदाज़ में जवाब दिया : मुझे जाना होगा दादा !

शलभ : क्यों, तुम तो ये अखबार २ घंटों में बेचते हो , और १०० रुपया कमाते हो जो कि तुम आज ५० रुपया ज़यादा कमा ही चुके हो फिर किस बार कि जल्दी है ! अभी तो डेढ़ घंटा है तुम्हारे स्कूल को खुलने में !

अनिरुद्ध : दादा , सब अखबार तो आपने ले लिए हैं और आज  मदर टेरेसा के अनाथाश्रम में अगर मैं आज अखबार नहीं दूंगा तो वहाँ कि सिस्टर बच्चो को खबर कैसे सुनाएंगी ,असेंबली में ?

आज बेनेर्जी बाबू कि पान कि दूकान पर अखबार नहीं गया तो वहाँ के लोग कैसे अपना बीड़ी सिगरेट लेंगे !

वो मेट्रो वाले ड्राईवर दादा आज परेशान हो जाएंगे ! 

घोष जी कि दूकान पर आज चाय कैसे बिकेगी !

सरकार अंकल आज अपनी बाउड्री से बाहर ही खड़े रेह जाएंगे , नाश्ता भी नहीं लेंगे !

शलभ सब सुनता जा रहा था !

मानो पूरा कोलकत्ता अनिरुद्ध के ही चलते रहने पर चलता हो ! ठीक पंद्रह साल पहले ऐसे ही ये कोलकत्ता शलभ के चलने पर चलता था !

शलभ ने अनिरुद्ध कि भावनाओं का सम्मान करते हुआ , सब अखबार उसको वापस किये और ५० रूपये और दिए ये कहते हुए कि तुमने मुझे कुछ भी भूलने नहीं दिया अनिरुद्ध - धन्यवाद !.

टैक्सी आगे बढ़ गयी !

              काली मंदिर के सामने से गुजरी तो शलभ ने प्रणाम किया और फिर खो गया अपने बचपन में ! पास के मेट्रो स्टेशन से मेट्रो ले कर पूरा महीना दसवीं के एग्जाम दिए थे ! जोमेट्री बॉक्स नहीं था तो मंदिर के पास कि जानी बाबू से रिक्वेस्ट कि थी और उन्होंने उसे बिना सवाल किये जोमेट्री बॉक्स और एक फाउंटेन पेन स्याही भर कर दिया था अपने आशीर्वाद के साथ कि सफल हो जाओ !  रिज़ल्ट  के दिन शाम को जब घोषाल बाबू जी अनाथाश्रम कि देख रेख करते थे , ने उसको और उसके दो साथियों को पास होने कि ख़ुशी में ५० - ५० रूपये दिए थे ! शलभ दौड़ता हुआ काली मंदिर आया था ! माँ को प्रणाम कर के जानी बाबू को जोमेट्री  बॉक्स के पैसे चुकाए थे ! १५ साल पहले ही पूरी कहानी उसके सामने से गुजर रही थी !!

टैक्सी ने हार्न बजाया ! शलभ का ध्यान टूटा ! सामने से सर पर मछली लिये एक मछली वाली जा रही थी ! ताज़ा ताज़ा मछली कहाँ मिलती है कोलकत्ता के सिवाय !

             टैक्सी धीरे धीरे होटल के पास पहुच रही थी ! टैक्सी से लगभग सट कर ट्राम चल रही थे ! पैदल कितना रेस लगता था शलभ ट्राम से अपने बचपन में ! अखबार हाथों में लिए पूरा का पूरा इलाका नाप लेता था ! वो दिन याद जब वो ट्राम में एक मारवाड़ी परिवार जो कोलकत्ता घूमने आया था को हिंदी अखबार बेच रहा था उस से उनकी धोती कि तारीफ़ निकल गयी ये कहते हुए :

         साब , आपकी धोती में जो डिजाइन है अगर उसमे लाल रंग का एक धागा और पड़  गया होता तो ये सुनेहरा रंग और खिल जाता सफ़ेद रंग कि धोती पर ! बस उन्होंने मुझे कानून गोद ले लिए और अपने साथ नेपाल ले गए ! देस विदेस में पढ़ कर अपना काम कर रह था , कपडे कि ट्रेडिंग का ,  पर काम सीखने कि ठानी और बड़ी कंपनी में आज बड़े पद पर है ! उसी  के सिलसिले में कोलकत्ता आया है ! अपने शहर  कोलकत्ता जो  आज भी अपने आँचल में कई शलभ , कई अनिरुद्ध लिए चलता है !
        हावड़ा ब्रिज आज भी अपनी छाती पर सैकड़ों गाड़ियों का बोझ ले कर खड़ा है ! हुगली ने जाने कितना पानी सागर में मिला दिया ! इन पंद्रह सालो में !

सुदीप्तो : दादा , होटल आ गया !

शलभ ने बिना टैक्सी से उतरे सुदीप्तो से वापस विक्टोरिया मेमोरियल चलने को कहा !

सुदीप्तो : क्यों दादा ? अभी तो वहीँ से आये हैं !

शलभ : सुदीप्तो मैं एक चीज़ भूल आया वहाँ कि सड़कों पर ! जल्दी चलो नहीं तो कोई और ले जाएगा !

सुदीप्तो हल्का सा मुस्कुराया और टैक्सी ले कर चल दिया वापस उसी रास्ते पर जिस से आया था !

दोनों कि निगाहें इधर उधर कुछ तलाश कर रही थीं और वो था कि दीखता ही नहीं था ! ( आप भी समझ गए ना कि क्या तलाशना है ? ).

आधा घंटा बीत गया ! वो नहीं दिखा ! सुदीप्तो और शलभ जैसे एक सुई तलाश रहे थे कोलकत्ता कि भीड़ में !

टैक्सी रेड लाइट पर रुकी , किसी ने शलभ के हाथ पर छूते हुए पुछा : अखबार लोगे बाबू ?

शलभ  ने गहरी सांस भरी और बहने दिया गंगा जमुना को !

दरवाज़ा खोल कर अनिरुद्ध को टैक्सी के अंदर बैठा लिया और चल दिया उसके अनाथाश्रम क़ानूनी कारवाही ख़तम करने के लिए !

तभी उसके फ़ोन कि घंटी बजी !

दूसरी तरफ से : तुम अभी होटल नहीं पहुचे शलभ,  मेनेजर का फ़ोन आया मेरे पास था !

शलभ : बाबा , अपने लिए एक भाई तलाश रहा था !

बाबा : मिला ?

शलभ : हाँ , बिलकुल मेरे जैसा है !

                                                                                        : By Manish Singh


Tuesday, November 5, 2013

एक कहानी : आनंद सफ़र में है , मंजिल में नहीं !!

             रोज़ कि तरह सड़क के उस तरफ सीधे पल्ले कि साडी ओढ़े अम्मा जी मिटटी के चूल्हे को साफ़ कर रही थीं ! सड़क पर तेज़ दौड़ते ट्रक , जीप और बस कि रफ़्तार और आवाज़ से बे खबर ! टूटी हुई टोकरी में कल रात कि राख भर कर दूर खेत में दाल आती और वहीँ से पीली मिटटी लेती आती , रस्ते में गाय का गोबर भी चुन लाती थीं ! आधे टूटे हुए मटके में मिटटी और गोबर का घोल बना कर पुरे मन से चूल्हे को अंदर बाहर से लीप कर नहाने चली जाती ! लौट कर फिर पूजा करती फिर चूल्हे को जलाती !! फिर भीतर जा कर नाश्ता बनाने लगती !

            इस बीच बूढ़े हो चुके बाबा भी नाहा कर , पूजा कर के दूकान पर आ गए ! रात में करीने से अलमारी में सजाये बिस्कुट , टाफी , बर्फी , मठरी और रस्क के डब्बे चूल्हे के सामने ऐसे रखते कि सामने आने वाले लोगो को दिखाई भी देते और मांगने पर वो खुद ही निकाल सकते ! बाहर के ड्रम में पानी बाबा ही भरते थे अम्मा ने ये काम उनके ज़िम्मे छोड़ रखा था ! आने जाने वाले ट्रक ड्राईवर उनसे चाय पीने से पहले अपने हाथ पाँव धोते जो हैं !

बाबा ने आज कि पहली चाय चूल्हे पर चढ़ा दी थी ! दूध रात का ही बचा था ! आज का दूध तो ट्रक वाला अभी दे कर नहीं गया ! हलकी सर्दी कि सुगबुगाहट थी आज सुबह !

बाबा अदरक नहीं डाली आज ? एक ड्राईवर ने चाय कि चुस्की  लेते हुए पुछा !

बाबा : डाली है बेटा ! कम रेह गयी होगी ! एक और चाय बना देता हूँ , ज़यादा डाल कर !

ड्राईवर : अरे नहीं बाबा , मैं तो बस पूछ रहा था ! लीजिये पैसे ! 

और वो पैसे दे कर अपनी मंजिल कि तरफ चल दिया !

दूकान मर रोज़ कि तरह गहमा गहमी हो चली थी ! सब कोशिश करते कि थोड़ी देर सही पर चूल्हे कि आंच के पास बैठ जाएँ और हाथ ताप ले !

अम्मा : लो जी अब  नाश्ता कर लो मैं चाय देख लेती हूँ ! अम्मा ने नाश्ते कि थाली बाबा कि तरफ बढ़ते हुए कहा !

बाबा : ठीक है !

अम्मा : राकेश , अब कैसी  तबियत है तेरे बेटे कि ? रोज़ काम पर जाते हुए दुकान पर चाय पीने वाले एक फेरी वाले से अम्मा ने पुछा !

राकेश : अब ठीक है अम्मा ! तुम्हारी वो देसी दवा ने बहुत सम्भाला नहीं तो बुखार उतर ही नहीं रहा था!

अम्मा मुस्कुराई और बोली : हाँ , एक बार जब किशोर बीमार पड़ा था जब वो ३ साल का था तब मेरी सास माँ ने ये ही पिलाया था उसको तब से मैं भी सीख गयी ! अब तेरे काम आयी !

राकेश : किशोर कब आएगा ?

अम्मा : जब जी में आएगा आ जाएगा !

बाबा : हाँ और क्या बच्चे बड़े हो जाये तो उनके जी कि ही सुन लेने में सब का हित है !

राकेश : अच्छा अम्मा , बाबा ये लो पैसे आज कि चाय के , कल कि मठरी को वरुण ले गया था के दाम शाम को देता हूँ !

अम्मा : अरे ठीक है राकेश - इतना हिसाब मत रखा कर , दे जाना जब समय हो !

धीरे धीरे दिन के ११ बज चले थे ! दूध वाला टैंकर आया ! कितना दूं अम्मा जी ?

अम्मा : रोज़ जितना देते हो उसमे ५ किलो बढ़ा देना , आज सर्दी है , खपत बढ़ गयी है और जल्दी से आ तुम्हारी चाय और पराठे ठन्डे हो रहे हैं !

दूध का टेंकर चलाने वाले रोहित को अम्मा और बाबा ने एक बड़े साहब से बोल कर दूध कि कंपनी में ड्राईवर रखा दिया था ! गाव का लड़का है ! माँ पिता जी के बाद कोई पास नहीं था संभालें को तो दसवीं के बाद मुखिया के यहाँ मजूरी करता था और ट्रैक्टर चलना सीख गया ! बस गाडी चलाने कि तरफ मन हो गया ! अम्मा के कहने पर दूध कि कम्पनी के बड़े साहब जो कभी कभी कंपनी में देख रेख के लिए आते थे ने ड्राईवर रखा दिया !  सुखी है !

अचानक से मौसम बदल गया ! हलकी बारिश हो चली थी ! सड़क के सभी लोग जैसे अम्मा कि दूकान में चले आये थे ! चाय  , मठरी , बिस्कुट सब जैसे लगता था कि २ घंटे में ख़तम हो जाएगा ! चूल्हे कि आंच बढ़ाने को , लकड़ी , कोयला सब बराबर अपना काम कर रहे थे ! अधेरे में बल्ब जलया बैटरी से ! एक सरदार जी ने अपने ट्रक कि बैट्री बदलवाई थी ! पुरानी वो अम्मा कि दूकान के लिए लेते आये थे उसी को इस्तेमाल कर आज अँधेरे में सबको रौशनी में चाय का आनद मिल रहा था !

बारिश तेज़ हो चली थी ! पानी बेंच और टेबल के नीचे से होता हुआ झोपड़ी के पीछे खेत में जा रहा था ! बाबा ने उठ कर एक बार दूकान कि खपरेल कि छत को देखा और मुस्कुराये !

अनिल : क्या देख रहे हैं बाबा ?

बाबा : कुछ नहीं , देख रहा हूँ और कितना संभालेगी ये हमें ?

अनिल के साथ साथ बाकि सब लोगो को जैसे लगा बाबा कुछ दुखी हैं मन ही मन !

अम्मा : तुम बस ऐसे ही मन दुखी कर लिया करो ! क्या हुआ जो किशोर हमें याद नहीं करता ? ये लोग जो तुम्हारे पास रोज़ आते हैं ! तुमसे अपना हाल बताते हैं  , तुम्हारा हाल लेते हैं किस के नसीब मैं है ये सब ?

बाबा : सच सच बोलो क्या मुझ जैसी दुखी तू नहीं भीतर ही भीतर ? १० साल से बेटे ने शक्ल नहीं दिखायी ! बस कोरियर से दो मोबाइल और सिम भेज दिए थे ! हर महीने बैलेंस भी डलवाता रहता है और बात भी कर लिया करता है , लेकिन उसका चेहरा देखे बरस बीत गए !

चूल्हे कि आग से ज़यादा अम्मा और बाबा के मन में पल रही अपने बेटे को देखने कि आस कि धधक हो चली थी जो बारिश और ठंडी हवा के बीच भी दबाते दबाते उभर चली थी ! सब निःशब्द अम्मा और बाबा के संवाद सुन रहे थी ! बारिश कि बूँदें कभी तेज़ कभी हलकी हो कर साथ देती जाती थी !

तभी एक बाइक सवार पानी में पूरी तरह से भीगा हुआ दूकान में आया ! काँप रहा था !

अम्मा और बाबा उस को देख कर अचानक से सब भूल गए और बोले :

क्या ज़रुरत थी बारिश में चलते रहने कि ? कहीं रुक जाते ? बारिश रूकती तो आ जाते ?

अच्छा अब चलो , अंदर और कपडे बदल लो , किशोर के कपडे शायद तुम्हे आ जाएंगे !

सब सोचने लगे शायद कोई रिश्तेदार होगा अम्मा जी का !

लड़का अंदर गया और गीले कपडे बदल कर बहार आया ! कपडे एकदम ठीक आये थे उसको ! जैसे उसके लिए ही खरीदे हों !

चाय पिलाई अम्मा ने उसको और फिर पुछा : कहाँ के रहने वाले हो ?

अम्मा कि ये बात सुन कर सब स्तभ्द : अम्मा तो ऐसे देखभाल कर रही थीं जैस उनका रिश्तेदार हो पर ये तो उसके रहने कि जगह भी नहीं जानती !

लड़का बोला : अम्मा में शहर में रहता हूँ और यहाँ से सैकड़ों मील दूर कर रहने वाला हूँ ! आज कालेज में छुट्टी थी तो अपने लोकल दोस्त कि बाइक ले कर गाव घूमने निकल गया और भटक गया ! इस जगह को जानता भी नहीं ! जब बारिश शुरू हुई तो आपकी दूकान के सिवाय कुछ नहीं दिखा तो आ गया ! वैसे आपके पास मेरे नाप के कपडे कहाँ से आये ? आपका बेटा भी मेरे उम्र और कद काठी का है क्या ? ज़रा बुलाइये मैं मिलना चाहूंगा उनसे !

ये सुन कर दूसरे ड्राईवर भी कहने लगे : हाँ अम्मा , बाबा आप लो तो बताते हैं कि आपके बेटे को आपने १० साल से नहीं देखा तो फिर ये कपडे कैसे ?

अम्मा और बाबा बोले : बेटा हर साल हम किशोर के लिए दीवाली पर कपडे खरीद कर लाते हैं पास के हाट से ! हर साल एक ही दूकान से और उस दूकान के मालिक के बेटे कि उम्र हमारे किशोर जैसे ही है !

सब कि आँखे डबडबा गयीं ! बारिश ने भी रुक कर अपने शामिल होने का एहसास करवाया ! 

ठीक है अम्मा जी आते रविवार को मैं अपने सब दोस्तों के साथ आउंगा ! कालेज कि बस लेकर और आपकी चाय पियेंगे ! ये कपडे भी उसी दिन लौटा दूंगा !

अम्मा बाबा जसे बेफिक्री से मुस्कुरा रहे थे और केह रहे थे  - तुम आते जाते रहो हमें किशोर कि कमी नहीं लगेगी !

बाकि के ट्रक ड्राईवर , जीप वाले , बस वाले , कार वाले सब धीरे धीरे अपनी रह चल दिए ! पूरा दिन चहल पहल के बाद पूरी रात का सन्नाटा और खालीपन अपने आगोश में लेने ले लिए सड़क पर खड़ा हो गया था ! कब चूल्हा बुझे और वो छा जाए !

रात के कोई १० बज रहे थे !

बाबा को नींद में थे !

उनको लगा जैसे किसी ने दूकान के पास उनको पुकारा था !

धीरे धीरे दुकान के पास गए ! हाथों में टार्च लिए हुए !

बाहर घुप्प अँधेरा था ! कभी कभी दूर सड़क पर एक दो ट्रक आगे पीछे चले जाते थे !

बाबा ने टार्च कि रौशनी बहार खड़े लड़के पर डाली और पुछा ? कौन हो बेटा ?

पास ही खड़े दूसरे लड़के ने कहा बाबा आपने पहचाना नहीं ?

बाबा : नहीं बेटा , आँखे कमजोर हो गयी हैं ना ! बता दो !

बाबा मैं किशोर हूँ !! लड़का बोला !

अम्मा के कानो में जैसे १० पानी के जहाजों कि सीटियों कि आवाज़ें एक साथ गूंज गयी और बाबा को जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था ! बस टकटकी लगाये बेटे को निहारते जाते थी टार्च कि रौशनी में !

अदभुद समय ! असामान्य सयोंग ! अम्मा ने बैटरी से बल्ब जलाया ! दोपहर वाला लड़का उनके सामने खड़ा था अपने साथ किशोर को लिए ! दोनों साथ में ही पढ़ते थे एक कालेज में ! किशोर दिन में काम करता था और शाम को पढता था ! खूब पैसे कमाता था ! बड़े और पैसे वाले दोस्तों के बीच आपने माँ बाप को कमतर पाटा था इस लिए अपने घर का पता किसी को नहीं देता और न ही अपने घर किसी को ले जाता ! लेकिन आज एक बड़े कारोबारी के बेटे को जिस तरह से उसके माँ पिता जी ने सहायता करी बिलकुल अपने बेटे कि तरह वो अद्वितीय था ! कोई और कर ही नहीं सकता था ! अपने दोस्त कि आप बीती सुन कर उस से रहा नहीं गया और रात में ही आपने माँ बाप से मिलने चल दिया अपने दोस्त के साथ !

अम्मा ने पुछा : मिलने का मन नहीं करता तेरा हमसे ?

बाबा : अरे मन करा तभी तभी तो आया है !

किशोर : बाबा अब आप मेरे साथ शहर में रहेंगे ! हम कल ही जाएंगे !

अम्मा ने बाबा को और बाबा ने आम्मा को देखा और मुस्कुराते हुए बोले : और फिर कोई तेरे दोस्त जैसा बारिश में भीगता हुआ आया तो उसको कौन संभालेगा ?

किशोर : अब में कमाने लगा हूँ ! अपना मकान ले लिया है सब कुछ तो है फिर ये चाय कि दूकान क्यों ?

बाबा बोले : बेटा जितना आनंद सफ़र में है , वो मंजिल में नहीं !! तू मिलने आया वो भी सफ़र का हिस्सा है और हम तेरे फिर से आने का इंतज़ार करंगे !!

खुश रहिये , चलते रहिये , आनंदित रहिये !

                                                                                                 : by Manish Singh

Tuesday, October 29, 2013

एक कहानी : रूही और निशान्त !

           "निशान्त" अब तक तीन  बार उस कहानी को पढ़ चुका था ! बार बार वो उस कहानी में एक पात्र  रूप में खुद को और एक पात्र  रूप में "उसको" पाता था, और कल्पना के बहते झरने में डुबकियां लगाता हुआ अपने मन माफिक भविष्य के सपने देखता जाता  था !

            निशान्त ३ सालों पहले भारतीय वायुसेना में तकनिकी विभाग में चयन होने के बाद एक साल कि ट्रैनिंग और फिर सुदूर दक्षिण में पहली पोस्टिंग के बाद अपने  छोटे से शहर रांची लौट रहा था !  घर में माँ और पिता जी के साथ उनकी देख रेख करने वाला उदय था ! जिसे पिताजी ४ साल पहले गाव से  लाये थे ! दसवीं के बाद उसको आई टी आई करने के लिए तयारी  कर रहा है !
           दूसरी गली में उसका भी घर है ! वो ही जिसके साथ निशान्त ने दसवीं में आते ही कुछ नए अनुभव किये ! किसी के लिए मन में ख्याल का भाव ! किसी के लिए उसकी ज़रूरतों को समझने कि समझ ! किसी के ना होने पर  जीवन में खालीपन ! किसी के कुछ समय अपने आस पास न होने पर सब ख़तम हो जाने जैसा लगना ! किसी के  बस अपने पास ही रहने कि ख्वाहिश ! स्कूल , कॉलेज का समय के जल्दी बीत जाने पर चिंता होना ! शाम के समय बार बार घर के आस पास सायकिल से जान बूझ कर दूकान से गरज़रूरी चीज़ों के खरीदने और फिर उसको वापस करने जाना ! बस एक उद्देश्य , किसी तरह से उसके आस पास रहूँ ! ऐसा अक्सर किया करता था निशान्त !
         स्कूल से , कॉलेज से यूनिवर्सिटी और फिर वायुसेना में चयन ! वो और निशान्त बचपन कि गलियों से शहरों कि सड़कों पर घूमने लगे थे ! दोनों के परिवारों को भी ये सब स्वीकार्य था ! वो घंटों एक दूसरे के साथ समय बिताते और घर आते ! सब ने भविष्य भी सोच लिया था ! उसकी एम् एस सी जो वो केमिस्ट्री से  थी के ख़तम होने के बाद जैसे ही निशान्त अपनी ट्रैनिंग से लौटेगा दोनों कि शादी कर दी जाएगी ! 

लेकिन , सब कुछ बदल चूका था अब !

भैय्या  चाय पियेंगे ?

दूसरी सीट पर बैठे एक लडके ने निशान्त तो एकटक ट्रैन से बहार देखते हुए पुछा !

निशांत के काल्पनिक झरने का जैसे सारा पानी एकदम से ख़तम हो गया और बोल पड़ा : कहाँ आ गए हैम ?

विपुल : बस चेन्नई के बाद एक स्टेशन ही निकला है !

निशान्त : ओके , ओके ! , तुम कहाँ जा रहे हो दोस्त ?

विपुल : विशखापट्टम् !

निशान्त : वहाँ क्या करते हो ?

विपुल : मैं वहाँ पढता हूँ , इंजीनिरिंग मैकेनिकल , थर्ड सेम है !

आप कहाँ जा रहे हैं : विपुल ने  निशान्त से पुछा !

निशान्त : मैं अपने घर जा रहा हूँ , रांची !

विपुल : आपके घर में कौन कौन है ?

निशान्त : माँ, पिता जी , भाई जैसा दोस्त उदय और........

निशान्त किसी एक और का नाम जोड़ते जोड़ते रुक गया !!

विपुल : और कौन भैय्या ?

निशान्त : कोई नहीं , वो तो बस मैं ऐसे ही केह गया !!

विपुल ने कुछ सोच कर उस समय बात पलट दी और निशान्त से पुछा : आज लंच में आप क्या आर्डर करने वाले हो भैय्या ?


निशान्त जैसे चाहता था कि विपुल उससे उस कौन के बारे मैं पूछे लेकिन विपुल ने बाद लंच के तरफ मोड़ दी थी !

निशान्त : मैं तो एग्ग बिरयानी खाऊंगा ! इस ट्रैन में पैक्ड मिलती है और लोकल लोग बना कर बेचते हैं ! केले के पत्ते में पैकिंग विथ प्रॉपर लोकल मसला एंड सॉस ! कई बार खाया है मैंने !

विपुल : तो आज मैं भी वो ही खाऊंगा !

निशान्त : एक एग्ग और एक हैदराबादी बिरयानी मंगवाते हैं शेयर कर के खाएंगे ! मैंने और उसने खूब किया है कॉलेज के दिनों में केंटीन में !

विपुल को मौका मिला और पूछ बैठा : किस के साथ ऐसा किया था आपने भैय्या कॊलेज में ?

निशान्त :  मेरी कॉलोनी कि ही एक लड़की है वो !
हमने ग्रैजुएशन साथ में किया ! साथ में ही रहे हमेशा दोस्त कि तरह पर अब नही हैं हम वैसे !

विपुल : क्यों ?

निशान्त : हमारे पेरेंट्स ने भी ये तय किया था कि मेरी ट्रैनिंग के बाद और पोस्टिंग से पहले हैम दोनों कि शादी करा दी जाएगी और मैं ट्रैनिंग पर चला गया !

विपुल : फिर क्या हुआ ?

निशान्त : मेरी ट्रैनिंग ६ महीने ही थी ! दो महीने बिताने के बाद मुझे माँ का फ़ोन आया कि उसकी शादी के लिए उसके घर लोग हमारे घर पर दबाव बना रहे हैं कि जल्दी कीजिये वर्ना एक अच्छा रिश्ता है सेना का ही , लड़का सेना में डाक्टर है और उसकी मामा कि तरफ से रिश्ता है ! माँ और पिता जी ने भी खूब समझाया कि ट्रैनिंग के बाद शादी होनी तो तय है तो फिर ये अचानक क्यों ? वो लोग नहीं माने और उसने भी मुझ से बात नहीं करी ! उसकी शादी उस सेना के डाक्टर से हो गयी !

बिरयानी देना भाई दो : एक एग और एक हैदराबादी ! विपुल ने सीरियस होते माहौल को हल्का करने कि कोशिश करी , बिरयानी से !

ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी ! चाय , केले के पकोड़े और दही के साथ दोनों ने बिरयानी का आनंद लिया ! फिर दोपहर के समय खाने के बाद कि नींद आने लगी दोनों को ! ट्रैन अगले ३ घंटो तक नहीं रुकने वाली थी ! ट्रैन के हौले हौले हिचकोले और दोपहर के नींद ऐसा मिलाप कि कुछ और न अच्छा लगे ! दोनों अपनी अपनी सीट पर सो गए !

चाय चाय !

निशान्त कि नीद इस सामान्य आवाज़ से खुली !

एक चाय ले कर अपनी साइड लोवर कि सीट पर बैठ गया !


                   फिर से उसी कहानी को पढने लगा जिसमे एक लड़की और लड़के बचपन से साथ होते हैं जवानी तक और फिर किसी कारण दोनों कि शादी नही होती ! सबकुछ भुलाकर लड़की अपने पति के साथ अपना जीवन बिताने लगती है ! परिवार सम्भालने लगती है ! एक दिन अचानक उसेक पति के साथ बचपन का वो ही साथ उसके घर आता है डिनर पर जो कि उसके पति का बॉस है ! दोनों एक दूसरे को न पहचाने कि हरकत करते हैं ! फिर दिन रात का मिलना शुरू होता है दोनों का उसके पति कि जानकारी के बिना ! क्यों कि उसका पति उसको ज़यादा टाइम नहीं दे पाता था अपने काम कि वज़ह से तो उसको भी अपने पुराने दोस्त में एक करीबी मिल गया और नए सिरे से ज़िन्दगी शुरू करने कि प्लानिंग करते हैं दोनों ! एक रात जब उसका पति अपनी माँ कि तबियत खराब होने के कारण घर नहीं आता ! दोनों ने एक दूसरे को शाम को फ़ोन किया आज रात को हैम भाग जाएंगे ! शाम हुई ! रात हुई ! फिर आधी रात हुई ! बॉस का फ़ोन नहीं आया ! वो परेशान हो कर इधर उधर घूमती रही ! अगर सुबह हो गयी और मेरा पति आ गया तो क्या होगा ? ऐसा सोच ही रही थी कि अचानक पंखे से किसी चीज़ के टकराकर गिरने कि आवाज़ आयी ! देख तो घोंसले के चिड़ा गलती दे बल्ब कि रौशनी को सुबह समझ कर घोंसले से बहार आ गया था और पंखे से टकरगया और मर गया ! उसने पंखा बंद किया ! और देखा कि पीछे पीछे चिड़िया भी उस मरे चिड़े के पास आयी और १० से १५ मिनट तक कभी उसकी चोंच में दाना , पानी डालने कि कोशिश करी रही और आखिर हार कर वो भी वहीँ मर गई ! बस इस घटना ने उस लड़की का मन बदल दिया ! बॉस का फ़ोन सुभा ४ बजे आया और वो बोला : डियर रात में पार्टी में देर हो गयी इस लिए फ़ोन नहीं कर सका , अभी आ रहा हूँ , तुम तय्यार हो ना ? उस लड़की ने सोचा एक चिड़िया अपने पति के लिए इतना प्यार दिखा सकती है तो मैं उस से भी गयी गुजारी हों हूँ ! अच्छा पति है , सब सुख सुविधाएँ हैं और मैं ये क्या करने चली थी ? उधर से फिर से बॉस ने पुछा ? आर यू रेडी ना बेबी ? उस लड़की ने भरी और गुस्से से जवाब दिया : सॉरी ये रॉन्ग नंबर है और फोन काट दिया !

निशान्त ने अपनी ट्रैनिंग के बाद अपने घर ना जाने का फैसला किया था !

अपनी पोस्टिंग में वो चेन्नई में था ! उसकी उस गर्ल फ्रेंड कि शादी को भी २. ५ साल बीत चुके थे ! 

उस दिन माँ के फोन के बाद उसने भी माँ से कभी  उसका ज़िक्र कभी नहीं किया और परिवार वालों ने भी उसकी भावनाओं का सम्मान करते हुए कभी भी उस को कुछ नहीं कहा और ना ही कुछ बताया !

विपुल : भैय्या अकेले अकेले चाय पी ली आपने ?

निशान्त के ध्यान को एक बार फिर से तोडा विपुल ने !

निशान्त : नहीं भाई तुम सो रहे थे और मेरी नीदं खुल गयी थी इस लिए पी ली ! फिर से ले लेते हैं !

विपुल : ठीक है आप चाय ले कर रखिये मैं फ्रेश हो कर आता हूँ ! केह कर विपुल भारतीय रेल आनंद एक और तरह से लेने को चल दिया ! स्लीपर बगल वाले अंकल जी कि ले कर ! इस मांग कर ट्रैन में टॉयलेट का अलग आनंद हैं !

   सुदूर सूरज समुद्र में डूब रहा था !  किनारे पर चलती गोलाकार घूमती ट्रैन से अगले से पिछले डब्बे को देख कर बच्चे खुश हो रहे थे मानो इंजन को देख कर ये पता कर लिया हो जैसे कि इस संसार को कौन चला रहा है का पता कर लिया हो !

विपुल ने चाय का कप हाथों में लेते हुए पुछा : भैय्या और कौन है आपके घर में माँ , पिता जी और उदय के सिवाय ?

निशान्त कि कल्पना कि पतंग ने फिर से उड़ान भरी और बोला ! फिलहाल तो कोई नहीं लेकिन वो ही मेरी बचपन कि दोस्त भी मेरे साथ हो जाये !

विपुल : वो कैसे होगी , उनको तो शादी हो चुकी है अभी अभी आपने बताया !!

निशान्त को काटो तो खून नहीं !

हाँ लेकिन भविष्य किसने देखा है ?

विपुल : फिर भी भैय्या मुझे ये कुछ समझ नहीं आ रहा ! शादी के बाद फिर वो कैसे ??

निशान्त के मन में बहुत कुछ चल रहा था उस कहानी जैसे शायद परिस्थिति बदल जायें और वो उसके पास आ जाए ! लेकिन साथ में ये भी सोच लेता था कि अगर कहानी कि तरह अंतिम समय में उसका मन बदल गया तो क्या होगा ?

निशान्त : हाँ ठीक है , जब मेरी शादी होगी ना मैं तुमको भी बुलावा दूंगा , आ जाना और कौन का पता लग जाएगा ! हा हा हा !

दोनों ने नंबर बदले और सो गए ! विपुल रात में ही विशखापट्टम् उतर गया और अगले दिन निशान्त सुबह सुबह राँची रेलवे स्टेशन पंहुचा !

वो ही खपरेल के घर !

पुरानी चाय कि दूकान !

सायकल पर इडली ,डोसा बेचते हाफ लुंगी डाले अन्ना !

पास के स्कूल में जाते वो ही सफेद शर्ट और खाकी नेकर में बच्चे !

निशान्त ने रिक्शा किया और चल दिया घर कि तरफ !

       रस्ते ने सोचता जाता था कि शायद वो दिख जाये क्यों कि सुना था उसका ससुराल रांची में ही है ! अपने स्कूल और कालेज के सामने से होता हुआ घर के करीब पंहुचा ! पहले उसकी बचपन कि दोस्त का मायका पड़ता है ! अनचाहे मन से ही उधर देख ही लिए ! उसकी दोस्त के पिता जी सबेरे कि चाय ले रहे थे ! उन्होंने निशान्त को पहचान  लिया  !

सोच के उलट उन्होंने ही पुकारा : अरे निशान्त बेटा !

निशान्त ने रिक्शे को रुकने का इशारा किया ! उतर कर उनके पैर छुए और घर कि कुशलता पूछी ?

वो उदास हो गए !

निशान्त : क्या हुआ चाचा जी ?

वो कुछ बोल पाते कि अंदर से रूही बहार आई ! सफ़ेद स्याह कपोड़ों में ! आँखे सूजी हुई ! कोई श्रृंगार नहीं !

निशान्त को देख कर ठिठक गयी !

निशान्त : कैसी हो ?

रूही बिना कुछ कहे उस से लिपट गयी !

रूही के पिता जी ने उन दोनों को अकेले छोड़ दिया और अंदर चले गए !

कुछ देर बाद निशान्त के माता पिता जी के साथ लौटे ! उदय निशान्त का सामान ले कर जा चूका था !

सब चुप थे !

उदय ने चुप्पी तोड़ी !

माँ , पिता जी : अब तो भैय्या दीदी कि शादी हो जाएगी ना ?

सब ने ज़ोर से कहा , हाँ आते सोमवार को ही है !

निशान्त ने रात में विपुल को फ़ोन किया : हेल्लो विपुल  , अगले सोमवार को मेरी शादी है और तुम आ रहे हो !

विपुल : अरे कोंग्रेट्स भैय्या ! किस के साथ है ?

निशान्त : उसी के साथ , बचपन कि दोस्त के साथ !

विपुल : ये गलत है भैय्या !

निशान्त : नहीं ये ही सही है !

विपुल : नहीं नहीं बिलकुल गलत है , आप अच्छा नहीं कर रहे हैं और मैं आप कि शादी में नहीं आ रहा हूँ !

निशान्त : अरे मेरी बात तो सुन भाई !

और निशान्त कहने लगा : रूही कि शादी के बाद वो अपने ससुराल चली गयी और में अपनी पोस्टिंग पर ! उसके पति को पोस्टिंग अरुणाचलप्रदेश में मिली ! वहाँ पर किसी घातक बीमारी के कारण उसको सेना कि नौकरी छोड़नी पड़ी और वो घर आ गया ! कुछ दिन बाद यहाँ उसकी डेथ हो गयी ! इस बात कि जानकारी मेरी माँ और पिता को थी लेकिन उन्होंने मुझे कभी नहीं बताया और उदय को भी मना कर दिया था बताने को ! आज जब मैं उसके घर के सामने से गुजर रहा था तो सब ने मुझे देखा और उदय ने भी ! जैसे सब के मन में एक चीज़ थी जो सब करना चाहते थे ! ईश्वर ने एक दाग तो रूही पर लगा दिया लेकिन एक मौका भी दिया और उदय ने सब को इक्ट्ठा किया और आधे घंटे में सब तय हो गया !

अब तो आएगा ना रूही कि शादी में ?

विपुल ने उधर से रुंधे गले से हाँ कहा !

          समुद्र के किनारे कि रेत ज़यादा देर तक अपने उस आकार में नहीं रहती जो चले गए लोगो के पांव से बनते हैं बल्कि ज़यादा देर तक वो खुशबुएं चारो तरफ रहती हैं जो चले गए मुसाफिर अपने साथ लाये थे !

            अथाह समुद्र से अधिक फैलाव हवा का है !

आनंद सिर्फ अंकित होने में नहीं , आनंद चिन्हित होने में भी है !!

Saturday, October 26, 2013

अंधेरों में !!

उजाले और अँधेरे,
अनंत रास्तों पर,
समुद्र किनारे,
रेत घुले पानी में,
हौले हौले बतियाते हैं,
छण भर को ही !!

सब कुछ भूल कर,
जैसे मिलते हैं,
दोस्त और दुश्मन,
छणिक,
उजाले खोजते,
अंधेरों में,
मधुशाला के !

Sunday, October 20, 2013

अक्सर तो नहीं !!

अक्सर तो नहीं,
लेकिन होता ये,
कभी कभार,
जुड़ने की कोशिशें,
खाई पटाने के प्रयास,
अपनत्व तलाशते  मन,
दबडबी आँखें लिए ,
सो  जाते हैं  !!

रिश्तों की,
अप्रत्याशित चुभन भरे,
बिस्तर पर ,
शेष बची साँसों से ,
उम्मीदों और जीवन को  
जोड़ कर दूरियां ,
कम करने की ,
कोशिश में !!
अथक , अनंत,
 क्योकि,
साथ नहीं मिलता ,
और,
अकेले कुछ नहीं होता ,
ना हारना और ना जीतना !!

Wednesday, October 16, 2013

भीड़ और एंकाकीपन !

रास्ते , पड़ाव,

भीड़ और एंकाकीपन,

रंगमंच, सूनापन,

सब ,हमसे ही तो है,

वैसे ही,

जैसे समुद्र का,

लहर खता पानी,

झील में सुना,

रहता है और,

नदियों , नेहरों में,

अटखेलियाँ लेता,

अनगिनत भावों में,

रचनाएँ रचता हुआ,

फिर समुद्र

में जा मिलता है,

फिर से कुछ

कर गुजरने को ,
भाप होकर !!

Sunday, October 13, 2013

उलझे - उलझे फिरते हैं हम, पूरे साल झमेलों में !!

उलझे - उलझे फिरते हैं हम,
पूरे साल झमेलों में !
कंधे - कंधे टकराते हैं,
सडकों - सड़को ,रेलों में !

नुक्कड़ - नुक्कड़ मिलकर बैठें,
सुलझी - सुलझी बात करें ,
माथे -माथे, चन्दन - चन्दन,
हाथों -हाथों स्नेह मलें,

झूठ ,कपट के रावण फूकें,
आओ , शहर के मेले मैं !!

                                           दशहरे और विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएं !!



                                                                     by : Manish Singh

Friday, October 11, 2013

युक्तियों का केक्टस, हथिलियों पर !!


पानी सी, 

सरक जाती हैं !
जीवन की ,
अंजुली से !

सम्वेंदनाएं,
भावनाएं तथा ,
संबंधों की कलियाँ,
फूल होने तक , 
तब, 
जब ,
आकार लेता है ,
युक्तियों का केक्टस,
हथिलियों पर !!


                                      : मनीष सिंह  

Monday, October 7, 2013

व्यवस्थाएं , आकाशगंगा सी !!


व्यवस्थाएं,
और हम,
तलाशते है ,
एक दुसरे को,
सतत जीवन की,
पहचान यात्रा में,
सांसों की डोर ,
के थमने तक !

परिधि,
सरकारी,
सामाजिक,
पारिवारिक,
व्यवस्थाओं की,
बढती ही जाती है,
आकाशगंगा सी,
खोज यात्रा में,
इन सब की !

Monday, September 30, 2013

घोंसले खाली हैं !


घोंसले खाली हैं !

टिकटघर,
डाकघर,
प्लेटफोर्म,
बारातघर,
क्लासरूम,
सिनेमा घर ! 
यहाँ , 
घोंसले खाली हैं! 

आज भी,
रेलें दौड़ती हैं,
पत्र आते हैं,
डेस्क कुर्सियां,
भरी रहती हैं !
रोज़, छुट्टी तक !

किन्तु यहाँ ,
घोंसले खाली हैं !
नहीं चेहचहाते,
नन्हे बच्चे !
विकास से 
विकसित दूरियां ,
अस्तित्व से,
प्रतिउत्तर की आस में,
रोज़ पूछती हैं,
क्यों खाली 
हो रहे हैं,
घोंसलों सरीखे हम !!!!!


Wednesday, September 18, 2013

हाथ खाली हैं !!

हाथ खाली हैं !

चन्दन मिट गया,
अक्षत बिखर गए ,
दूब सूख गयी,
धूप धुआँ हुई,
फूल मुरझा गए,
आहूति के शब्द ,
अब नहीं गूंजते, 
 हवन कुंड की ,
अग्नि शांत है !

आस में,
अपेक्षित है,
अनंत समृधि, 
असीम वस्तुएँ ,
भविष्य के लिए !

किन्तु , 
आज की सत्यता,
स्वीकृत हो,
की , हाथ खाली हैं !  

भविष्य ,
कौन देखता है ,
ये सब ,
कौन भोगेगा !
आज दिखता है,
की हाथ , खाली हैं !

Saturday, September 7, 2013

आशाएं , भ्रमित रखती हैं !!

आशाएँ, 
आकांक्षाएँ,
अभिलाषाएँ , 
रोके रहती हैं,
अनगिनत,
सिन्धु एवं गंगाएं,
पलकों पर !

निर्बाध,
बह निकलती हैं,
आँसू बन,
अवसरों पर, 
दोनों के , 
पूरा होने ,
और, ना होने पर भी  !

आशाएं , 
भ्रमित रखती हैं !
सिन्धु ,
रुके रहते हैं,
निरंतर,
अचेत , होने तक ,
बहने के लिए !

Friday, September 6, 2013

एक कहानी : रिश्ते - जाने अन्जाने !!

          श्रीकांत शिमला की मॉल रोड पर शाम की नारंगी मलमली धूप में टहल रहा था ! हलकी ठण्ड और होठो पर सुर्खी लाने वाली हवाएं इस कोने से उस कोने पर घूम रही थीं, जिनके सहारे वातावरण में खुशबुएं फ़ैल जाती थीं !

     पास के गिरिजाघर में शाम की प्रार्थना की घंटी बजी ! श्रीकांत तेज क़दमों से गिरिजाघर की और बढ़ गया ! 

          स्कूल के दिनों से ही वो गिरिजाघर में प्रार्थना करता आया था ! माँ और पिता के चले जाने के बाद , गाँव में जब कोई सहारा नहीं रहा तो पंचों ने उसे शहर के ही एक मिशनरी स्कूल में दाखिल कर दिया था ! वहां ही उसकी पूरी पढाई हुई और जीवन में कुछ बन जाने की दिशा मिली ! स्कूल में सिस्टर नेंसी के ज्यादा करीब था वो ! सिस्टर नेंसी यहीं शिमला से १५ किलोमीटर दूर के एक गाँव की ही रहने वाली हैं ! काम से रिटायर होने के बाद आजकल सिस्टर नेंसी अपने एक रिश्तेदार के पास यहीं पर ही रह रही हैं ! स्वस्थ नहीं हैं ! उन्ही से मिलने के लिए वो अक्सर अपने काम से छुट्टी ले कर शिमला आता रहता है ! 

        प्रार्थना ख़तम हुई !  सब एक दुसरे के साथ हाल - चाल पूछने लगे ! 

       श्रीकांत चुपचाप गिरिजाघर की सजावट को निहार रहा था ! सुन्दर काँच के रंबिरंगे झरोखे ! शीशम और साल की लकड़ियों से बने ऊंचे ऊंचे दरवाज़े ! मोमबत्तियों को जलाने के लिए सोबर मजबूत स्टैंड ! प्रार्थना के लिए खड़े होने और बैठने के लिए सालों पुरानी सीटें और बेंच ! अदभुद और अनोखा शांत वातावरण ! सब तो था यहाँ ! कमी क्या थी ! एक कमी थी - कोई साथी नहीं जिस से वो अपनी जिंदगी की बातें कहे ! उसपर सलाह ले या कैसे आगे की ज़िन्दगी को जिया जाये , के बारे में सोचे !  

सबकुछ तो मिल गया था उसको , सिर्फ ३० साल की उम्र में ! 

       अच्छी पढाई , जो उसने विदेश में ली , १२वीं के बाद मिशनरी के माध्यम से , मेडिकल की पढ़ाई ! ३ साल आस्ट्रेलिया में बिताने के बाद वापस भारत आया अपनी मिशनरी में , शहर में एक सुन्दर बड़ा सा मकान और पास में ही अपना क्लिनिक ! जिसमे  लोग विशवास के साथ आते हैं और श्रीकांत की ख्याति दूर दूर तक फैल रही है !  सब था , बस कोई भी अपना साथी नहीं था ! आज गिरिजाघर में भी इतने लोगों के बीच वो किसी का हाल ना तो पूछ पा रहा था और ना ही कोई उसकी तरफ बढ़ा , उसका दिल समझने के लिए !  भीड़ के बीच अकेला - अकेला सा बैठा था ! 

 धीरे धीरे गिरिजाघर के सभी आगंतुक चले गए !

श्रीकांत अब भी  बैठा था ! गिरिजाघर के पादरी और सेवादार अपना अपना काम करने में लगे थे !

रात हो चली थी !

भगवान् का घर भी बंद करना होता है रात में ! 

      एक १० से ११ साल का सुन्दर सा बच्चा अपने हाथों में सफ़ेद कपड़ा लिए सभी कुर्सियों , बेंचों को बारी बारी से साफ़ करता हुआ श्रीकांत की कुर्सी की तरफ बढ़ रहा था !  मन में सोचते हुए की श्रीकांत खुद उठ जाएँ अपनी कुर्सी से तो अच्छा हो  ! आखिर उस बच्चे के आने तक श्रीकांत नहीं उठा ! 

बच्चा : सर, आप इस वाली कुर्सी पर बैठ जाइये , मुझे वो कुर्सी साफ़ करनी है !

श्रीकांत के ध्यान टूटा और SURE बोलते हुए दूसरी कुर्सी पर जा बैठा ! बच्चा पुरे मन से सभी कुर्सियों को एक एक कर के साफ़ करता हुआ आखिरी कुर्सी तक जा पंहुचा , तब श्रीकांत ने आवाज लगाईं !

HELLO FRIEND !!

बच्चा : यस सर , कहिये ?

श्रीकांत : कुछ देर मेरे पास बैठो , दोस्त !

बच्चा : बस , २ मिनट सर !

कुछ देर बाद वो बच्चा श्रीकांत के पास की कुर्सी पर बैठ गया !

श्रीकांत : कहाँ रहते हो ? तुम्हारा नाम क्या है ?

बच्चा : पास के ही स्कूल में मैं पढता हूँ ,  वहीँ रहता हूँ  और मेरा नाम " समीर " है !

श्रीकांत : समीर , बहुत ही अच्छा नाम है ! किसने रखा !

समीर : माँ ने !!

श्रीकांत : माँ कहाँ रहती हैं ?

समीर : उसी स्कूल में जहाँ में पढता हूँ , वहीँ हो भी काम करती हैं ! वही के स्टाफ क्वाटर में हम रहते हैं !

श्रीकांत : और तुम्हारे पापा ?

समीर : मुझे नहीं पता , वो कोन हैं और कहाँ हैं !!

श्रीकांत ने विषय बदल कर पुछा : किस क्लास में पढ़ते हो ?

समीर :  8th में !

श्रीकांत : अच्छा , यहाँ पर रोज़ आते हो ?

समीर : हाँ जी , रोज़ शाम को आता हूँ !

श्रीकांत : क्यों ?

समीर : बस अच्छा लगता है ! मेरी स्कूल में कोई फीस नहीं जाती ! ड्रेस भी मुझे स्कूल से ही मिलती है ! खाना भी वहीँ  खा लेता हूँ ! ये सब इनकी ( ईसामसीह की की तरफ इशारा करते हुए ) ही दया से हो रहा है ! इस लिए अपनी तरफ से मैं इनकी सेवा इस तरह से करता हूँ !

        श्रीकांत इतने छोटे समीर के ये सब बातें सुन कर स्त्भ्द था ! हालाँकि उसने भी मिशनरी स्कूल में ही पढ़ाई करी और सहयोग के सहारे यहाँ पहुँच है , लेकिन समीर जैसा सेवा का कदम उसको कभी याद नहीं की किया हो !

कहाँ खो गए सर ? श्रीकांत की चुप्पी को तोड़ते हुए समीर ने पुछा !

श्रीकांत : कहीं नहीं , बस कुछ सोचने लगा था !

श्रीकांत ने अपनी दीवार की बड़ी घडी की तरफ देखा , रात के साढ़े सात बजने को थे ! 

समीर ने चलने के लिए अपने जुटे के फीते कसे और कमीज को अपनी नेकर में खोसते हुए श्रीकांत की और अपना हाथ मिलाने के लिए बढ़ा दिया !

श्रीकांत : अरे भाई , मैं भी चलूँगा ज़रा रुको !

समीर : नहीं सर , आज माँ ने खीर बनाई होगी और मुझे कहा है की समय से आने के लिए ! अब मैं चलता हूँ !

श्रीकांत : अच्छा ठीक है !

समीर : ओ के बाय ,सर ! फिर मुलाकात होगी !

श्रीकांत : बाय दोस्त !

समीर अपनी राह हो लिया !

श्रीकांत समीर को जाते देखता रहा !

         कुछ ही मिनटों की लिए ही सही समीर का साथ श्रीकांत के लिए ऐसा था ,जैसे सुर्ख सर्द हवाओं में नरम मुलायम रुई की रजाई ! ठण्ड से कपकपाते हाथों में इलायची वाली गरम चाय का प्याला , जिसे खूब कस कर पकड़ कर देर तक  अपने करीब रखने का मन करे , आखिरी घूँट तक !

        खालीपन मन में होता है जिसकी उपस्थिति को हम भीड़ के बीच महसूस करते हैं , अन्यथा चिठ्ठियाँ लिखने के लिए एड्रेस / पतों से भरी डायरी , फ़ोन करने के लिए लम्बी लिस्ट मोबाइल फ़ोन में और मोहल्ले में हर सामाजिक काम में दिए जाने वाले चंदे की पर्ची में तो आपका नाम रहता है , फिर भी आप अकेले ! आपका खालीपन भीड़ बताती है - जब आपके पास कोई ऐसा ना हो जो हर बात पर आपसे बात करे ! बड़ी बातें तो हो ही जाती हैं , छोटी बातों को बड़ा बनाने के लिए भावनाओं के करीबी सांचों की ज़रुरत आपके अपने ही पूरा करते हैं , जो गर्माहट दे कर ठंड से ठंडी होती सोच को , समर्पित रहने के लिए !

         श्रीकांत कुर्सी से उठा और गिरजाघर से अपने होटल की तरफ बढ़ने लगा ! गिरिजाघर की बाहरी दीवार के सहारे से श्रीकांत खड़ा हो कर , सड़क की कम होती चहल पहल को देखने लगा ! रंगीन बल्बों में चमकता पूरा ,बाज़ार  इतने सारे लोग सब अपनों अपनों में व्यस्त !

         श्रीकांत अपने होटल की तरफ बढ़ने लगा ! सड़क के किनारे किनारे दुकानों में रखे सामानों को निहारता हुआ ! हिमाचली टोपियाँ , ऊनी जेकेट , चूड़ीदार पारंपरिक पायजामे , हिमाचल के ही पारंपरिक सजावट के सामान ! चटक रंगों से बने , अनगिनत कपड़ों के स्टाल सब था ! पूरा हिमाचल माल रोड पर था ! जो चाहे ले लीजिये !

          मौसम बदलने लगा था ! हलकी बारिश होने लगी थी ! सर्दी बढ़ गयी थी ! हवाओं ने चलना मुश्किल कर दिया था सैलानियों का ! सब इधर उधर किनारे की दुकानों के अन्दर जाने लगे थे ! श्रीकांत ने भी एक चाय वाले के पास एक चाय का  आर्डर किया और पास पड़ी बेंच पर बैठने लगा की अचानक एक आठ साल के बच्चे ने उसे रोक दिया !

बच्चा : बस एक मिनट सर  ज़रा बारिश का पानी साफ़ कर देता हूँ नहीं तो आपकी महंगी पेंट खराब हो  जाएगी  !

श्रीकांत अवाक हो कर खड़ा रह गया , अँधेरे में बेंच पर पड़ा पानी उसको  नहीं दिखाई दिया था !

बच्चा : अब बैठिये सैर, मैंने साफ़ कर दी !

श्रीकांत : क्या करते हो ?

बच्चा कुछ नहीं बोला !

चायवाला बोला : सर , आपकी चाय !

श्रीकांत ने चाय पकड़ते हुए फिर से पुछा : ये बच्चा आपका है ?

चायवाला : नहीं सर , मुझे तो ये यहीं बस अड्डे पर मिला था २ साल पहले , अकेले , तभी से मेरे पास है ! मैं और ये दोनों मिल कर दूकान चलाते हैं !

श्रीकांत : आपने कभी इसके घर वालों की तलाश नहीं करी ?

चायवाला : करी थी सर, लेकिन अब काम छोड़ कर कितना ढूंढ सकता हूँ ! पास के सरकारी स्कूल में भेजता हूँ ! पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखा दी है , कोई आयगा तो ले जाएगा !

श्रीकांत ने दो पल कुछ सोचा और बोला : अगर मैं इसको अपने साथ ले जाना चाहूँ तो ?

चायवाला : सर , एक बार आप थाने में बात कर लीजिये !

श्रीकांत : नहीं , थाने से पहले मैं इस बच्चे से बात करेंगे !

बच्चे ने हामी में सर हिल दिया !

         बारिश थम चुकी थी ! ठंडक और कोहरे ने चाय की दूकान को घेर लिया था !  भीड़ बढ़ गयी थी चाय की दूकान के आस पास ! चर्चा थी ! कोई शहर का डाक्टर विष्णु को ले जा रहा है ! थाने में बात करी ! श्रीकांत ने सब सरकारी कागजात और ज़रूरात पूरी करीं ! और विष्णु को अपने साथ ले जाने लगा !

तभी विष्णु ने श्रीकांत का हाथ छुड़ा कर चाय की दूकान की तरफ भागा और एक छोटी से हाथ से बनाई हुई टोकरी सी ले आया !

श्रीकांत : ये क्या है ?

चायवाला : सर , बस ये ही एक चीज़ थी उस दिन इस के पास जब ये मुझे २ साल पहले मिला था ! इसे "कांगड़ी" कहते हैं ! इस में गर्म कोयले रख कर कश्मीरी लोग अपने कोट के अन्दर रखते हैं और हाथ तापते रहते हैं !

विष्णु : मैं इसे अपने साथ ले चलूँगा आपके घर !

श्रीकांत ने विष्णु को अपनी गोद में उठा लिया और विष्णु ने अपने अपनी कांगड़ी को !

       खालीपन और सहारे की खोज में एक दुसरे का सहारा बने दो लोग चल पड़े शिमला की माल रोड से होते हुए शांत और भीड़ से दूर गाँव में जहाँ मिशनरी के स्कूल में विष्णु अपन पढ़ने जाता है , लेकिन शाम को वो श्रीकांत के पास ही आता है , अपने घर पर !

                अजनबी , किन्तु एक ही प्रष्टभूमि के लोग खालीपन दूर कर के साथ साथ रहते हैं !

                                                    विष्णु , श्रीकांत और कांगड़ी !!

                                                                                                          :: मनीष सिंह ::

Tuesday, September 3, 2013

बच्चों की हथेलियों में !!

बचपन ,
चला गया,
जैसे हरश्रिंगार,
बिखर जाता है ,
ओस संग,
धरती पर !

महक रह जाती है,
देर तक ,
स्कूल जाते,
बच्चों की हथेलियों में !

वो रास्ते पर,
खड़ा पेड़,
याद रहता है,
दिन बा दिन,
वयस्क होते हुए !

Saturday, August 24, 2013

... संबंधों की सीपियाँ !!

घंटों ,दिनों 
महीनो में,
निरंतर ,
घटता जा रहा हूँ ,मैं,
 और शायद,
तुम भी !

वर्ष दर वर्ष,
जन्मदिवस,
सालगिरह,
याद रखते हैं,
हमारी इस ,
गतिशीलता को !

जैसे 
संबंधों की सीपियाँ,
सहेजती हैं,
नवजीवन,
स्वयं को,
घटाते हुए,
खुल कर,
 बिखर जाने तक !!

                                                                                                             :: मनीष सिंह 

Thursday, August 15, 2013

उधार पर लिए, तिरंगे बेच कर !

आज के लिए,
वो कल,
जल्दी सोया,
भूखा ही !

विकास पथ पर,
लाल बत्ती पर,
चौक के,
फास्ट फ़ूड के पास !
हम सब ने,
उसे देखा,
अनदेखा ,
करते हुए !

उधार पर लिए,
तिरंगे बेच कर,
जीवित रखने के लिए
स्वतंत्रता को ,
प्रयासरत !

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं !

: मनीष सिंह