Monday, February 14, 2011

अनाम रिश्ते , समर्पण और विश्वास !

         आज मैं अपने पुराने दिनों को याद कर रहा था ....तो याद आया की जिस रास्ते से मैं रोज़ स्कूल जाया करता था उस रास्ते मैं एक रेलवे का फाटक और कई दुकाने थीं ....जिनमें से एक नाइ की दुकान थी !
       रोज़ रोज़ उस समय एक ट्रेन गुजरती थे और इस वज़ह से फाटक बंद रहता था .....और जब खुलता तब सब जाते इस पार से उस पार या उस पार से इस पार...मैं भी अपनी साईकिल पर सब के साथ साथ जाता आता था. एक दिन मुंशी प्रेम चन्द की कहानी पढ़ाई गई नाम थामंत्र "....

        मैं सोचता रहा था की अगर उसने मंत्र का पाठ नहीं किया होता तो क्या होता ? पता नहीं किस तरह का रिश्ता बन गया था उनके साथ की उस अँधेरी रात मैं वो अपने घर से चल कर आया और मन्त्र पढ़ कर वापस चला गया. बस आज देखा की रेलवे का फाटक खुला हुआ है , सब लोग चले जा रहे हैं....मैं भी पार होगया ...फिर सोचा अगर गलती से फाटक खुला रह गया होगा और रेल आ जाती तो....? लेकिन एसा होता नहीं है ...
        अक्सर जब रेलवे फाटक बंद हो तो हम रुक जाते हैं पर यदि फाटक खुला है तो हम एक बार भी ये नहीं सोचते या देखते की रेल आ रही है या नहीं ..बस चलते चले जाते हैं ....ये रिश्ता अनाम होता है....जिस मैं समर्पण है पूरा का पूरा और हम करते हैं उन पर विश्वास ....!
        अब देखिये दुसरे मामले मैं जब हम नाइ के यहाँ पर शेविंग करवाने जाते हैं तो पूरी तरह से अपने को नाइ के हवाले दे देते हैं....हमारी गर्दन और नाइ का उस्तरा बस एक अनाम रिश्ते और हमारे समर्पण और विश्वास पर टिका होता है....एक बार नाइ का मन डोला और हमारा काम तमाम ....पर एसा होता नहीं है.....
         कुछ रिश्ते हम अपने जीवन मैं ऐसे ही बनाते है ...और उनका विशवास नहीं जाने देते और समर्पण कर देते हैं जिस से रिश्ते अनाम होते हुए भी गहरे हो जाते हैं ....पुरे जीवन के लिए !
         समर्पण की भावना विश्वास को बढाती है और रिश्तों को अनाम से नाम मैं बदलने के लिए आधार बनती हैं और नया जीवन पनपता है ...नयी पीढ़ी जनम लेती है ....नयी मुस्कान के विश्वास के साथ ...पूर्ण समर्पण के साथ फिर से अनाम रिश्ते बनाने की लिए .
                                                                                                        - मनीष सिंह


2 comments:

  1. Nice post !

    समर्पण की भावना विश्वास को बढाती है ! Very Nice Thought !

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