Sunday, February 13, 2011

Mall Culture In India and We !

            आज ही पता चला है की मुझे भी फ़ूड कपोंन मिलने वाले हैं....तनख्वाह कुछ इतने लिमिट को जा चुकी है.....!! मैं इन दिनों चिंतित हूँ की इस बात को ले कर !!

            कल तक ...नहीं नहीं आज तक मैं अपने घर का खाने पिने का सामान किरणे की दूकान से ले आता था पर अब कुछ सामान मुझे माल या बड़ी दुकान से लाना होगा ......फ़ूड कपोंन जो इस्तेमाल करने हैं..नहीं तो उनकी कीमत बेकार जाएगी.
            माल पता नहीं ...हम माल का मतलब कुछ और ही समझा करते थे ....तेरी माल , उनकी माल....या कभी किस्मत अच्छी निकली तो मेरी माल....पर आज कल तो हम सब का माल हो गया है..
एक छत के नीचे सब कुछ मिलेगा....हां सब कुछ ...जो चाहो.......पर वहां कीमत आप नहीं तय करेंगे वो सब तो फिक्स है...तमगा लगा है...सामान पर ...आपने अपनी जेब देखनी है और ..घर का बजट बस उठाइए ...खुबसूरत सी टोकरी मैं डालिए....और अगर कुछ भरी या ज्यादा सामान हो तो ट्राली ले लीजिये....और ताघ्राते हुए चलिए....इसी बहाने एअरपोर्ट पर चलने की फीलिंग का भी आनंद लीजिये......अब कौन जाने हवाई जहाज मैं कब बैठा जा सके ...किन्तु फील तो किया ही जा सकता है....
           चलिए पॉइंट पर आते हैं....हां जो सामान बनिए या किराने की दुकान पर १००/- रूपये का है ..माल मैं १२५/- का तमगा लगा आप को ताकता मिलेगा ....खूब सूरत पाकिंग मैं...हाँ भाई २५/- रूपये मैं क्या कुछ नहीं मिल रहा आपको...चलिए जोड़ते हैं ...
१. बड़े होने का एहसास ....
२. आप भी एअरपोर्ट पर चल रहे हैं....
३. पूरी दुकान वातानुकूलित हैं.....बनिया तो चाय ही पिलाता....यहाँ रेस्टोरेंट हैं...जो चाहे खा लो...सब के साथ पर अपने खर्चे पर.
४. वेरिटी ....एक सामन कई कई ब्रांड मैं......
५. बार कोड प्रिंटेड....पडोसी जब आपके घर के कूड़े मैं खाली पोली थींन  देखे तो आपके स्तर का अंदाजा लगा ले..की आप भी माल मैं जाते हैं....बनिया तो अखबार के लिफाफे मैं सामन दे देता था....सस्ता ज़रूर है पर आज कल की आईटी कंपनी वाले बच्चे जिन्हें १८ से २२ साल की उम्र मैं कम्पस सेलेक्टिओं से नौकरी मिल जाती है mote सलारी की .....बनिए को पसंद नहीं करते ...माल जाना पसंद करते हैं.....
    अब मुझ जैसा कोई ना जाना चाहे तो भी जाना पड़ेगा....नहीं तो ये कपोंन कहाँ प्रयोग हो सकेंगे ?
माल संस्कृति अच्छी है किन्तु समझदारी के साथ प्रयोग किया जाना चाहिए नहीं तो हम खोखले हो जायंगे क्रडिट कार्ड्स की पेमेंट करते रह जायेंगे.
जो दिखेगा वो ही बिकेगा ....ये ही सिद्धांत है माल और माल के सहयोगियों का....पैसा इंडिया मैं है...माल मैं सब दिखाओ ....क्रडिट कार्ड चलता है का वे दिखाओ...और सामान बेचो....
बड़े नाम वाली कंपनी का सामान घर मैं होना चाहिए......फिर उस सामान की ज़रुरत हो या नहीं ...बस चाहिए....
               हद इस बात की है की लड़के ये चाहते हैं की उनके अंडर गारमेंट्स मैं कुछ इस तरह का काम हो की ब्रांड काया पहना है दिखाई दे......कुछ तो बात होगी इस मैं.....और छोटे शेहर के बच्चे जब आई और UPTU के माध्यम से IT कंपनी मैं काम पा जाते हैं तो उनको अपने ही शहर मैं ये सब चाहिए होता है....नहीं तो पता कैसे चलेगा की स्तर उनंचा हो गया है....?
             इस मैं कुछ भी बुरा नहीं है......सब होना चाहिए...किन्तु दोहरे चेहरों के साथ नहीं ....आप दो जीवन ये एक से ज्यादा जीवन नहीं जी सकते ....अच्छा भी बना रहना और बुरा भी नहीं होना ......माल आपके ही प्रयोग किये जाने के बाद आगे बढे हैं ....और आप ही उसको बुरा नहीं कह सकते .......क्यों की आप भी , मैं भी चाहते हैं की हमें लोग जाने .....चाहे माध्यम कुछ भी हो...अंडर गारमेंट के ब्रांड नामे का ...१००/- रूपये का सामान बार कोड के साथ १२५/- रूपये मैं खरीदने का , माल के बहार से घर तक ऑटो या फिर टेक्सी से घर जाने पर पड़ोसियों मैं रौब ज़माने का भले बनिए की दुकान पर सामन सस्ता और रिक्शा से घर तक आया जा सकता हो...लेकिन क्या करैं IT कंपनी वाले बेटे ने जो कहा है...करना होगा....
           हमारे बिलकुल पड़ोस मैं एक दुकान थी कई सालों से ....३३साल तक तो मैंने देखि....अब बेटा बड़ा होगे ...दहेज़ मैं स्विफ्ट मिली है सो दुकान बंद है आज कल ....अंकल आंटी बाहर वाले चबूतरे पर खाली बैठे दिखाई देते हैं .....माल मैं जाते हैं सामन लेने...के लिए.
          अच्छा है ये सब ...कल तक जो कुछ आसानी से सब के लिए नहीं था आज उन सब के लिए हैं जिसके पास माल मैं जाने का हौंसला है...और जेब मैं रूपये हैं......और खास बात खरीदने के बाद तुलना नहीं करने का ज़ज्बा है......
बजट सब के लिए नहीं होता .....हाँ असर सब पर डालता है ....कोई जेब ढीली करता है कोई भर लेता है ....सरकार दोनों का मजा लेती है....खर्चा करने वाले से पूछती है आप पैसा लाये कहाँ से ...और सामान बेचने वाले से कहती है की आपने उत्पाद शुल्क , बिक्रीकर , सेवाकर सब का भुगतान सही से कर दिया हैं ना...नहीं तो हम आ रहे हैं आपके पास चाय पीने के लिए....! माल वाले माल बना कर बन रहे है ....भारत जिन की सरपरस्ती मैं आगे जा रहा है...उनको साधुवाद...और हमें धन्यवाद की हम आगे बढ़ रहे हैं..
माल रोड , माल - मेरी , तुम्हारी, उनकी .....सब बधाई के पात्र हैं...आप भी जो इस ब्लॉग को पढ़ रहे हैं....

                                 हम सब जानते हुए सब करते हैं ....ये ही हमारी खासियत है ....!
                                                                                                                      - मनीष






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