" आज अचानक किसी से कुछ बात करते हुए किशोरावस्था की कुछ बातें याद हो आई !! सही है की उन बातों का , उन वस्तुओं का , उन संपर्कों का आज के परिपेक्ष में चाहे उतना महत्त्व न हो किन्तु वो चीजें हर एक व्यक्ति के जीवन में नीव के पत्थरों का सा महत्त्व रखते हैं ....! "
बारह से चौदह वर्ष के बीच की उम्र रही होगी .... उन दिनों घर में गुल्लक में पैसे जमा करने का कुछ ज्यादा ही चलन था ....तो हम भी दुनिया से अलग थोड़े ही थे ...हम भी किया करते थे कुछ बचे हुए पैसे .....अच्छा यहाँ खुलासा करना ज़रूरी है की जब हम कुछ कमाते नहीं थे तो पैसे आते कहाँ से थे .....तो पढ़िए सोर्स ऑफ़ इनकम ..... मैं अपने मामा का घर रहता था ....कभी कभी सब्जी , कुछ अचानक ज़रुरत का सामान , कोई मेहमान आ गया तो उसके लिए बिस्किट , नमकीन इत्यादि लेन के लिए हमरी सेवाएँ ली जाती थी ...बस उस में से बचे कुछ खुले पैसे वापस कहाँ जाते थे ....वो तो गुल्लक के हवाले ! मेरे एक मौसा जी हैं वो बनारस में रहते हैं ...पान के शौक़ीन , बस उनका आना हुआ और हमारी गुल्लक की कमाई बढ़ जाती थी ....ये सब के साथ होता है ...हाँ किन्तु निम्न माध्यम वर्गीय घरों में अधिक ....!
नया नया क्लास नौमी में आया था ....ज्यामिति का विषय हमें बहुत प्यारा लगता है ....तो शौक हुआ की एक नया ज्यामिति बाक्स लेना चाहिए ....इक्चा नानी जी के सामने ज़ाहिर करी ....तो सुझाव मिला की देखो कही पुरानी चीजों में तुम्हारे छोटे मामा का पुराना ज्यामिति बाक्स रखा होगा ...उसी से काम चला लो ...दो सालों की ही तो बात है .....मेरा मन उदास .होगया ...फिर से पुरानी चीज़ से काम चलाना होगा .....सब दोस्त नए नए सामन ले का आयेंगे और में पुराने सामन से काम चलाऊंगा ....मेरा मन उदास हो गया ....सुबह के चाए नहीं ,पी ये कह कर की मन नहीं है ....नानी जी समझ गयी थीं .....!!
जब दोपहर को वापस आया तो देखा की नाना जी एक छोटे से बाक्स पर हरे रंग से पेंट कर रहे हैं .....उतावले मन से देखा तो वही पुराना सा मामा जी का ज्यामिति बाक्स था ....उसका सामन भी साफ़ कर के एक तरफ रखे हुए थे ...मैंने बुझे मन से उनको देखा और फिर हाथ पैर धो कर खाना खाने बैठ गया ..... !! खाने में उस दिन क्या पका था मुझे आज भी याद है ....क्यों की वो एक यादगार दिन था मेरे लिए ....सब को नसीब नहीं ....!!!! अरहर की दाल, आलू का चोखा , लाल भरवा मिर्च का अचार , चावल और एक विशेष सब्जी ......सीताफल ( कोहड़ा ) के पत्तों की भुजिया ....ये सब नानी जी ने पकाया था .....कोयले के चूल्हे पर ...घर पर गेस थी किन्तु नाना जी को चूल्हे का पका खाना अच्छा लगता है तो नानी जी ...उसी पर पकती थीं ....
मैंने खाना खाया और कुछ पढाई कर से सो गया ...! शाम को नाना जी ने मुझे वो हरे रंग का बाक्स दिया और कहा ये तुम्हारे मामा जी ने प्रोयोग किया था और आज तुम करो ...सब सामन अच्छा है ....! मैंने बिना उसको खोल कर देखे अपने बसते में रख लिए ....मन में ये उधेड़ बुन चल रही थी कि आज अगर मेरे माँ और पिता जी के घर पर में होता तो क्या वो लोग भी मुझे पुराणी चीज़ से काम चलने को कहते ....कभी नहीं ...नया सामान ला कर देते ....पर क्या करून कुछ नहीं कर सकता ........शाम का खाना खाया , कुछ पढ़ा और फिर ये सब सोचते सोचते सो गया ....सुबह .हुई ..सब कुछ वैसा ही ....मन में उत्साह नहीं ....पहला दिन था ज्यामिति बाक्स के इतेमाल का और मेरे पास पुरानी चीज़ें थीं .....अनमने मन से इस्कूल की और चल दिया ....रास्ते में रोहित अगरवाल के घर से उसको पुकार का बुलाया ...और उसके पूछने पर की ज्यामिति बाक्स है क्या ....कह दिया ...की पता नहीं देखना पड़ेगा ........! वो तो चेहेक कर बोला मेरे पापा ने मुझे कल ही नया बाक्स दिलाया है ....उसने उसी वक़्त अपना बाक्स निकाल कर दिखया ....कमलिन का था ...कितना .सुन्दर अन्दर से सब सामन चमचमाते हुए ....स्टील के .....वाह .....! ये सब देखते देखते स्कूल आ गया ....प्रार्थना हुई ...राष्टगान हुआ ...सब अपनी अपनी क्लास में चल दिए ....पहला घंटा हिंदी , दूसरा इंग्लिश , तीसरा गणित .....और अब बारी आई ज्यामिति बाक्स के इतेमाल की ....बस सब अपना अपना बाक्स खोल कर देखने दिखाने लगे ...किसी का " राजकमल " का था , किसी का " कैमिलिन " का था , किसी का स्थानीय किसी कंपनी का कोई लाया ही नहीं था ..
सब ने मेरा मुह देखा मनीष अपना बाक्स दिखाओ ....में कुछ बोलता अगरवाल ने मेरे बसते से हरे रंग का बाक्स निकाल लिया ....सबसे अलग रंग ...सब जोर से हंस दिए ....में झेप गया ....अब बारी अन्दर के सामान को देखने की थी ....उसने बाक्स खोला ...और अचानक माहौल बदल गया ...सब कुछ मेरे हक में होगया ......सब ने कहा कितने सुन्दर हैं ये सब .....और सब बारी बारी से देखने लगे ...30 से 40 लोग थे क्लास में ...और सब ने देखा ...और मुझे आ कर सलामी दी और कहा मनीष सब से अच्छा बाक्स और इंस्ट्रूमेंट तुम्हारे ही हैं .....काया कभी कभी हमें भी प्रयोग ले लिए दोगे .....में कुछ समझ नहीं पा रहा था ...अब ठीक से सामान को देखने की बारी मेरी थी ...और मेरे देखने के बाद मेरा मन भर आया ....नाना जी और नानी जी के प्रति श्रद्धा और बढ़ गयी .....क्या देखा मैंने .... उस बाक्स में सब सामान पीतल का था ...चम्चामता हुआ , एक एक सम्मान इतना भारी और सुन्दर की बस देखते रहने का मन करे ..... पीतल वैसे भी सुन्दर लगता है ...और सब बच्चों के तो सामान लगभग एक जैसे थे लेकिन मेरे सामान का तो कहना ही क्या ....
एकदम अलग ...सब से अलग ...मेरे नाना जी ने सब को कोयले की राख से चमकाया था मेरे लिए ...बरसों पहले मेरे मामा जी ने
कभी प्रयोग किया होगा ...अब में कर रहा हूँ !! सारी उदासी ख़तम , सब से अलग सामान के कारन में क्लास में लगभग राजा जैसा ....सब किसी न किसी तरह से मेरे पास आ कर उस बाक्स को छूने का प्रयास
कर रहे थे, मुझ से मिलने की कोशिश कर रहे थे ....काया दिन था वो।...पुरे दिन मन उल्हास और आत्मविश्वास से भरा रहा ....और जब घर आया तो नाना जी नानी जी को बताया की सब कैसा था तो वो बहुत खुश हुए ...इस लिए की मैंने पुरानी चीज़ को स्वीकार कर लिया ...में अपने मन में सोच रहा था की अगर मुझे नया मिलता तो शायद में भी आक क्लास में सामान्य ही रहता ...किन्तु इस के कारण विशेष हो गया हूँ !!.... आज मेरे नाना जी नहीं नानी जी नहीं हैं ...वो बाक्स भी जान से प्यारा था किन्तु मेरे टाटानगर छोड़ देने के बाद जाने कहाँ खो गया ....पर उसकी यादें हैं ...जो जीवन भर मेरे साथ रहेंगी ....!!
जब में दिल्ली से टाटानगर जा रहा था तो अपने साथ रेलवे लाइन के किनारे के पत्थर ले कर गया था ...और जब वहां से वापस आया तो अपने साथ ना जाने कितनी कितनी यादें लाया ...कुछ भी सपना नहीं था सब यथार्थ ....वस्तुएं और मानव .....हमेशा एक दुसरे से जुड़े रहते हैं ...किन्तु सामयिक घटित होने वाली घटनाये उनको विशेष और यादगार बना देते हैं ...जो जीवन भर साथ रहते हैं , आनंद और अवसाद दोनों ही समय...! छोटी छोटी चीजों को सहेजने का नाम भी जीवन है ....जो आप जीवति हैं तथा स्वयं से जुड़े हुए हैं ....प्रतिवेदित करता रहता है !!
बारह से चौदह वर्ष के बीच की उम्र रही होगी .... उन दिनों घर में गुल्लक में पैसे जमा करने का कुछ ज्यादा ही चलन था ....तो हम भी दुनिया से अलग थोड़े ही थे ...हम भी किया करते थे कुछ बचे हुए पैसे .....अच्छा यहाँ खुलासा करना ज़रूरी है की जब हम कुछ कमाते नहीं थे तो पैसे आते कहाँ से थे .....तो पढ़िए सोर्स ऑफ़ इनकम ..... मैं अपने मामा का घर रहता था ....कभी कभी सब्जी , कुछ अचानक ज़रुरत का सामान , कोई मेहमान आ गया तो उसके लिए बिस्किट , नमकीन इत्यादि लेन के लिए हमरी सेवाएँ ली जाती थी ...बस उस में से बचे कुछ खुले पैसे वापस कहाँ जाते थे ....वो तो गुल्लक के हवाले ! मेरे एक मौसा जी हैं वो बनारस में रहते हैं ...पान के शौक़ीन , बस उनका आना हुआ और हमारी गुल्लक की कमाई बढ़ जाती थी ....ये सब के साथ होता है ...हाँ किन्तु निम्न माध्यम वर्गीय घरों में अधिक ....!
नया नया क्लास नौमी में आया था ....ज्यामिति का विषय हमें बहुत प्यारा लगता है ....तो शौक हुआ की एक नया ज्यामिति बाक्स लेना चाहिए ....इक्चा नानी जी के सामने ज़ाहिर करी ....तो सुझाव मिला की देखो कही पुरानी चीजों में तुम्हारे छोटे मामा का पुराना ज्यामिति बाक्स रखा होगा ...उसी से काम चला लो ...दो सालों की ही तो बात है .....मेरा मन उदास .होगया ...फिर से पुरानी चीज़ से काम चलाना होगा .....सब दोस्त नए नए सामन ले का आयेंगे और में पुराने सामन से काम चलाऊंगा ....मेरा मन उदास हो गया ....सुबह के चाए नहीं ,पी ये कह कर की मन नहीं है ....नानी जी समझ गयी थीं .....!!
जब दोपहर को वापस आया तो देखा की नाना जी एक छोटे से बाक्स पर हरे रंग से पेंट कर रहे हैं .....उतावले मन से देखा तो वही पुराना सा मामा जी का ज्यामिति बाक्स था ....उसका सामन भी साफ़ कर के एक तरफ रखे हुए थे ...मैंने बुझे मन से उनको देखा और फिर हाथ पैर धो कर खाना खाने बैठ गया ..... !! खाने में उस दिन क्या पका था मुझे आज भी याद है ....क्यों की वो एक यादगार दिन था मेरे लिए ....सब को नसीब नहीं ....!!!! अरहर की दाल, आलू का चोखा , लाल भरवा मिर्च का अचार , चावल और एक विशेष सब्जी ......सीताफल ( कोहड़ा ) के पत्तों की भुजिया ....ये सब नानी जी ने पकाया था .....कोयले के चूल्हे पर ...घर पर गेस थी किन्तु नाना जी को चूल्हे का पका खाना अच्छा लगता है तो नानी जी ...उसी पर पकती थीं ....
मैंने खाना खाया और कुछ पढाई कर से सो गया ...! शाम को नाना जी ने मुझे वो हरे रंग का बाक्स दिया और कहा ये तुम्हारे मामा जी ने प्रोयोग किया था और आज तुम करो ...सब सामन अच्छा है ....! मैंने बिना उसको खोल कर देखे अपने बसते में रख लिए ....मन में ये उधेड़ बुन चल रही थी कि आज अगर मेरे माँ और पिता जी के घर पर में होता तो क्या वो लोग भी मुझे पुराणी चीज़ से काम चलने को कहते ....कभी नहीं ...नया सामान ला कर देते ....पर क्या करून कुछ नहीं कर सकता ........शाम का खाना खाया , कुछ पढ़ा और फिर ये सब सोचते सोचते सो गया ....सुबह .हुई ..सब कुछ वैसा ही ....मन में उत्साह नहीं ....पहला दिन था ज्यामिति बाक्स के इतेमाल का और मेरे पास पुरानी चीज़ें थीं .....अनमने मन से इस्कूल की और चल दिया ....रास्ते में रोहित अगरवाल के घर से उसको पुकार का बुलाया ...और उसके पूछने पर की ज्यामिति बाक्स है क्या ....कह दिया ...की पता नहीं देखना पड़ेगा ........! वो तो चेहेक कर बोला मेरे पापा ने मुझे कल ही नया बाक्स दिलाया है ....उसने उसी वक़्त अपना बाक्स निकाल कर दिखया ....कमलिन का था ...कितना .सुन्दर अन्दर से सब सामन चमचमाते हुए ....स्टील के .....वाह .....! ये सब देखते देखते स्कूल आ गया ....प्रार्थना हुई ...राष्टगान हुआ ...सब अपनी अपनी क्लास में चल दिए ....पहला घंटा हिंदी , दूसरा इंग्लिश , तीसरा गणित .....और अब बारी आई ज्यामिति बाक्स के इतेमाल की ....बस सब अपना अपना बाक्स खोल कर देखने दिखाने लगे ...किसी का " राजकमल " का था , किसी का " कैमिलिन " का था , किसी का स्थानीय किसी कंपनी का कोई लाया ही नहीं था ..
सब ने मेरा मुह देखा मनीष अपना बाक्स दिखाओ ....में कुछ बोलता अगरवाल ने मेरे बसते से हरे रंग का बाक्स निकाल लिया ....सबसे अलग रंग ...सब जोर से हंस दिए ....में झेप गया ....अब बारी अन्दर के सामान को देखने की थी ....उसने बाक्स खोला ...और अचानक माहौल बदल गया ...सब कुछ मेरे हक में होगया ......सब ने कहा कितने सुन्दर हैं ये सब .....और सब बारी बारी से देखने लगे ...30 से 40 लोग थे क्लास में ...और सब ने देखा ...और मुझे आ कर सलामी दी और कहा मनीष सब से अच्छा बाक्स और इंस्ट्रूमेंट तुम्हारे ही हैं .....काया कभी कभी हमें भी प्रयोग ले लिए दोगे .....में कुछ समझ नहीं पा रहा था ...अब ठीक से सामान को देखने की बारी मेरी थी ...और मेरे देखने के बाद मेरा मन भर आया ....नाना जी और नानी जी के प्रति श्रद्धा और बढ़ गयी .....क्या देखा मैंने .... उस बाक्स में सब सामान पीतल का था ...चम्चामता हुआ , एक एक सम्मान इतना भारी और सुन्दर की बस देखते रहने का मन करे ..... पीतल वैसे भी सुन्दर लगता है ...और सब बच्चों के तो सामान लगभग एक जैसे थे लेकिन मेरे सामान का तो कहना ही क्या ....
एकदम अलग ...सब से अलग ...मेरे नाना जी ने सब को कोयले की राख से चमकाया था मेरे लिए ...बरसों पहले मेरे मामा जी ने
कभी प्रयोग किया होगा ...अब में कर रहा हूँ !! सारी उदासी ख़तम , सब से अलग सामान के कारन में क्लास में लगभग राजा जैसा ....सब किसी न किसी तरह से मेरे पास आ कर उस बाक्स को छूने का प्रयास
कर रहे थे, मुझ से मिलने की कोशिश कर रहे थे ....काया दिन था वो।...पुरे दिन मन उल्हास और आत्मविश्वास से भरा रहा ....और जब घर आया तो नाना जी नानी जी को बताया की सब कैसा था तो वो बहुत खुश हुए ...इस लिए की मैंने पुरानी चीज़ को स्वीकार कर लिया ...में अपने मन में सोच रहा था की अगर मुझे नया मिलता तो शायद में भी आक क्लास में सामान्य ही रहता ...किन्तु इस के कारण विशेष हो गया हूँ !!.... आज मेरे नाना जी नहीं नानी जी नहीं हैं ...वो बाक्स भी जान से प्यारा था किन्तु मेरे टाटानगर छोड़ देने के बाद जाने कहाँ खो गया ....पर उसकी यादें हैं ...जो जीवन भर मेरे साथ रहेंगी ....!!
जब में दिल्ली से टाटानगर जा रहा था तो अपने साथ रेलवे लाइन के किनारे के पत्थर ले कर गया था ...और जब वहां से वापस आया तो अपने साथ ना जाने कितनी कितनी यादें लाया ...कुछ भी सपना नहीं था सब यथार्थ ....वस्तुएं और मानव .....हमेशा एक दुसरे से जुड़े रहते हैं ...किन्तु सामयिक घटित होने वाली घटनाये उनको विशेष और यादगार बना देते हैं ...जो जीवन भर साथ रहते हैं , आनंद और अवसाद दोनों ही समय...! छोटी छोटी चीजों को सहेजने का नाम भी जीवन है ....जो आप जीवति हैं तथा स्वयं से जुड़े हुए हैं ....प्रतिवेदित करता रहता है !!
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