आँचल की गांठे,
सारा परिवार,
बांधे रखती हैं,
एक समय तक!
जब समय स्वयं,
घुलता हैं,
तपिश में,
संबंधों की,
तात्कालिक,
प्रतिक्रिया स्वरूप,
तब माँ ,
हार जाती है !
बंधन शाब्दिक
रह जाते है,
भावनाए,
व्यापार करती हैं,
समय के बाज़ार में !
::: मनीष सिंह ::
सारा परिवार,
बांधे रखती हैं,
एक समय तक!
जब समय स्वयं,
घुलता हैं,
तपिश में,
संबंधों की,
तात्कालिक,
प्रतिक्रिया स्वरूप,
तब माँ ,
हार जाती है !
बंधन शाब्दिक
रह जाते है,
भावनाए,
व्यापार करती हैं,
समय के बाज़ार में !
::: मनीष सिंह ::
No comments:
Post a Comment