माँ , जिनके पास है उनके लिए और जिन्होंने इस उपहार को खो दिया है.....उन सब के लिए उस पुकार के बंधन के आनंद का विवरण मांग कर देखिये ....नहीं दे सकेंगे .....क्यों की इस एहसास के लिए शब्द बने ही नहीं है....ये तो बस महसूस किया जा सकता है.......बंधन ...जी हाँ इस बंधन का अपना आनंद है....जिसके होने के लिए हम दुनिया की किसी दोलत को भी न्योछावर कर सकते हैं.......... उस पुकार के लिए तरस रहे किसी से पूछिए जिस के पास कोई पुकारने वाला ना हो....तब इस पुकार के बंधन के आनंद का अंदाजा हो जायेगा ....!
हमारे जीवन मैं एक ना एक बार एसा समय ज़रूर आया होगा की किसी नवजात बच्चे के कोमल से हाथों मैं आप की एक अंगुली आई होगी....याद कीजिये उस रेशमी स्पर्श को जब बच्चे ने आप को छुआ और ओ पल स्वर्णिम बंधन के रूप में अपना वजूद कायम कर गया .....ये कहीं नही मिलेगा ...बस ओ पल ओ पल होता है ....जिसके बंधन का कोई सानी नहीं ...!!
जब हम जिम्मेदार होने का एहसास पाते हैं .....अपनी बहन के द्वारा आपकी कलाई पर रच्छा बंधन के दिन बंधे गए कच्चे धागे से ! कोई उस का स्थान नहीं ले सकता ....और कोई उस जिम्मेदारी को नहीं निभा सकता ....हमारे बिना ....और उस बंधन का अपना ही आनंद है....उनसे पूछियेगा ....जिन्हें बहन नहीं है ....तब आप तुलना कर सकेंगे की इस बंधन के होने और इस बंधन के ना होने मैं क्या फरक है !!
अंत मैं खुद से खुद को बाँधने का आनंद ! हम जब अपने को ही नियंत्रित करते हैं खुद से जो सही होता है...हाँ एसा मानते नहीं हैं ....इश्वर को इस का सारा क्रेडिट दे देते हैं....की सब भगवान् करता है....पर करते हम सब खुद हैं....! कोई किसी के लिए नहीं रुकता ...जीवन चलता रहता है !! आप समय से साथ नहीं चले या आपी साँस समय पर नहीं चली तो हम रुक जाते हैं....सब आगे निकल जाते हैं. ....प्रेम , स्नेह , परम्परा , परिवार और ना जाने क्या क्या नामे दिए हैं हमें अपने को बंधे रखने के लिए .....हम बंधे रहे हो ही हम हैं ....नहीं तो हम हम नहीं रह जायंगे ....मैं हो जायेंगे .....और जीवन सिर्फ मैं से नहीं चलता ....हाँ जीवन रहता ज़रूर है ...चलता नहीं ....चलता है हम से और हम होना हो तो बंधना होगा और उस के आनंद की गंगा मैं तृप्त हो जाना होगा !
आप आनंदित हो कर देखिये ...बांध कर देखिये खुद को , सोच मैं परिवर्तन ला कर देखिये सब अच्छा है ...आनंद देने वाला है...हम हो कर देखिये ...मैं को पिघलाकर देखिये ...मैं फ़ैल कर हम हो जायगा सब को समां लेने के लिए.
हम होने को आतुर आपका अपना ही - मनीष
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