" चन्दन " ने ओक से पानी पीते हुए पानी पिलाने वाली बूढी माँ के चेहरे कि झुर्रियों से झांकते हुए तज़ुर्बे और आँखों कि उमीदों कि और देखा , जो " और पियोगे बेटा " पूछते हुए मुस्कुरा रहीं थी !
चन्दन , कितनी प्यास लगी है तुम्हे ? अब चलो भी !!
सरकारी गाड़ी में बैठी विभा ने अपने बेटे अनमोल को सँभालते हुए चन्दन को पुकारा !!
" नहीं माँ बस " कहते हुए चन्दन ने अपनी जेब से रुमाल निकालने कि असफल कोशिश कि , तभी बूढी माँ ने अपने आँचल को बढ़ाते हुए कहा - लो , इस से पोछ लो बेटा !
चन्दन ने हाथ पोछ कर " बूढी माँ " को एक बार फिर से देखा और ठन्डे पानी के जार को ले कर सरकारी कार कि तरफ मुड़ गया !
बार - बार पीछे देखता जाता था ! बूढी माँ हाथ हिला कर अभिनन्दन कर रही थी , फिर से आने का निमंत्रण देते हुए !!
सरकारी गाड़ी अपने पीछे धूल और सूखे पत्ते उड़ाती हुई आगे निकल गयी !!
लगभग बीस सालों बाद !
शहर के बड़े रिहाइशी इलाके में बने बड़े बंगले में सुबह कि चाय पीते हुए चन्दन ने अनमोल से पुछा ?
किस जगह पर कैम्प लगेगा ?
जंगल में " स्वर्णरेखा " नाम कि उसी के किनारे पापा , जगह मुझे नहीं पता ! शायद सर्कुलर में लिखा हो ! रुकिए देख कर बताता हूँ !
चन्दन ने अनमोल को रोकते हुए कहा - रहने दो , मैं जनता हूँ ! तुम जाने कि तैयारी करो !
अनमोल मुस्कुराया - आप जानते हैं , ठीक है फिर कहता हुआ मोबाईल पर आने वाली दूसरी तरफ कि आवाज़ को सुनता हुआ अपने कमरे कि तरफ बढ़ गया !
कितने दिन के लिए जा रहा है अनमोल ? चन्दन ने डायनिंग टेबल पर खाना परोसती हुई विभा से पुछा !
विभा ने कुछ नहीं कहा उसने प्लेट तैयार कर के चन्दन कि तरफ बढ़ा दी !
चन्दन ने फिर से वही बात पूछी ! विभा फिर चुप रही !
अजीब सा तनाव पसर गया था डायनिंग टेबल पर !
ख़ामोशी ने डिनर निगल लिया, लेकिन भूख अभी भी आस में थी !
विभा ने रात के दूध के गिलास के साथ चन्दन को दवा ये बताते हुए दी कि कल से तीन दिन अनमोल घर पर नहीं है !
चन्दन : अरे पिछले २ घंटों से ये पूछ रहा हूँ और तुम अब बता रही हो ?
विभा : हमारे क्या दर्जन भर बच्चे हैं जो एक एक कि खबर तुम्हे नहीं ? अनमोल एक ही एक बेटा है और उसकी किसी भी बात में तुम्हे कुछ गलत नहीं दिखता ! उसकी सब बातों में तुम्हारी हाँ है ! तीन दिन वो जंगल में रहेगा अपने दोस्तों के साथ ! २२ साल के लड़के को दुनियादारी कि कोई खबर नहीं उसको तुमने ३ दिन के लिए अकेले छोड़ दिया ! क्या रोक नहीं सकते थे ? लेकिन तुम्हे तो सब कुछ प्रेक्टिकल अप्प्रोच में करना होता है ना ? लो चाय पियो अब जो होगा ठीक है बेटा तुम्हारा है चाहे जो करो मैं कहाँ हूँ तुम दोनों के बींच में ना माँ और ना कुछ और !
कहती हुई विभा दरवाजे कि तरफ बढ़ गयी , नम आँखों से !
चाय कि प्याली हाथों में लिए चन्दन बिस्त्तर से उठ कर खिड़की से बहार बहते कोहरे को देखने लगा जिसके साथ गले में रुकी सघन घुटन आँखों के रस्ते बाहर टपकने लगी !
चाय ख़तम कर के चन्दन कुछ देर यू ही बाहर देखता रहा , दिशाहीन हवा और यादों के साथ !
विभा देर तक उसके पास नहीं आयी !
लंच अकेले ही किया चन्दन ने ये सोचते हुए कि दोष क्या है ?
दोष किसका है ?
उपाय क्या करू ? हमेशा ऐसे ही तनाव में रहना नियति है क्या मेरी ?
दोपहर को आँख नहीं लगी ! बिस्तर पर करवट बदलता रहा !
अनमोल ने भी एक कोई फ़ोन नहीं किया !
कैसा है !
ठीक से पंहुचा कि नहीं कोई खबर नहीं !
चन्दन ने खुद से सवाल किया : किस लिए ये सब खड़ा किया मैंने ? एक पत्नी और एक बेटे के लिए ? अपना बचपन खोया , अपने जीवन के स्वर्णिम समय को पैसा कमाने में लगाया ताकि बड़ा घर , पत्नी कि ज़रूरतें , बेटे को बड़े स्कूल में पढाई , हर छोटे बड़े खर्चे को समय से पूरा करना ! प्रोविडेंट फण्ड का पैसा रख रखा है बेटे कि पढाई के लिए ! फिर भी सब नाराज़ ! किसी को मेरे सम्मान कि परवाह नहीं ! अब, बेटा बड़ा हो गया है उसको उसके दोस्तों के साथ टूर पर जाने देने के लिए हाँ कहना गलत है ?? क्या गलत है इसमें मैं अब तक नहीं समझ सका !
लंच कर लो , विभा ने बेडरूम का दरवाज़ा धीरे से खोलते हुए कहा !
चन्दन को लगा जैसे कि उम्मीद कि सूखती गंगा में कटोरी भर पानी आ गिरा हो !
हाँ चलो आता हूँ ! चन्दन ने जवाब दिया !
विभा : क्या बुदबुदा रहे थे ?
चन्दन : तुमने सुना तो होगा ?
विभा : हाँ ?
चन्दन : तो फिर क्यों पूछ रही हो ?
विभा : इस लिए कि कुछ रह गया हो तो वो भी कह डालो , मैं सब सुन सकती हूँ , सेह सकती हूँ !
चन्दन : सेह सकती हूँ ? मतलब ?
विभा : मैं ५ साल तक माँ नहीं बन सकी तुमने क्या नहीं किया उसके लिए ! याद है वो जंगल वाली बूढी माँ , कब कब जाते थे तुम वहाँ , क्या मैं भूल सकती हूँ ! उनकी बेटी जिसका जिनकी बेटी का बेटा है हमारा अनमोल उसके लिए क्या नहीं किया तुमने कानूनी और सामाजिक रूप में ! आज तक किसी को नहीं मालूम कि अनमोल मेरा बियोलॉजिकल बच्चा नही है !
विभा बोलती जा रही थी : सब किया तुमने ! बस एक बात को छोड़ कर !
चन्दन : क्या ?
विभा : पिता नहीं बने तुम ना ही मुझे माँ बनने दिया अनमोल का !
चन्दन : ओह्ह !! कैसे ?
विभा : तुम हमेशा दया भाव में क्यों रहे कि उन बूढी माँ ने तुम पर दया करी जब कि तुम सब कर चुके उनके लिए ज़रुरत से ज़यादा ! फिर क्यों डरे रहते हो ? क्यों अपने बेटे को पिता कि तरह से नहीं देखते ? क्यों नहीं डरता वो तुमसे एक बेटे कि तरह ? क्यों हर उसकी बात तुमको उसकी आज्ञा लगती है ? क्यों उसकी किसी बात को माना नहीं करते और तुम्हारा बेटा क्यों उसको नहीं मानता और जब बेटा को पिता का समर्थन हो तो माँ कहाँ रह जाती है इसमें ?
चन्दन सिर्फ सुन रहा था , डबडबी आँखों से बस सुन रहा था , सुनता ही जा रहा था !
वो विभा को पूरा बह जाने देना चाहता था ! आज कह डाले सब जो मन में है ! पिघले तो सही अंतस कि कुंठा ! क्या होगा , कह लेगी मन हल्का कर लेगी मेरे साथ !
अभी दो लोग आपस कि दूरियां ख़तम करने का प्रयास कर ही रहे थे कि अचानक पड़ोस में बैटमिंटन खेल रहे बच्चों ने जोर से आवाज लगायी ? अनमोल भैया हमारी कॉर्क दे दीजिये ?
विभा ने अंदर से जवाब दिया : अनमोल नहीं है बेटा , रुको मैं देती हूँ !
माँ आप और पापा बातें कजिये , मैं ही दे देता हूँ ! अनमोल कि आवाज़ आयी बाहर से !
विभा और चन्दन लगभग दौड़ते हुए बाहर आये , देखा अनमोल दीवार से लगे सोफे पर बैठा उनकी बातें सुन रहा था !
विभा और चन्दन - निःशब्द , अवाक् खड़े खड़े के खड़े रेह गए !
चन्दन ने अनमोल के चहरे को अपने दोनों हाथों से अपनी छाती से चिपक लिया ! विभा दोनों से लिपट गयी !
फिर बह निकली अशब्द गंगा ६ आँखों से !
बाकि कुछ नहीं रहा !
सब ने सब कुछ कह डाला !
अनाम रिश्तों का यज्ञोपवीत संस्कार हुआ बरसों बाद !!
चन्दन ने ड्राईवर से कहा : गाड़ी निकालिये जंगल चलना है ,हवन में अंतिम आहूति के लिए !
चन्दन और विभा बेटे से मिलने वाले थे और अनमोल उन दोनों से !
एक कहानी : अंतिम आहूति !!
No comments:
Post a Comment