Wednesday, September 19, 2012

..... हम सब एक सफ़र पर ही तो हैं !! ....यात्रा और मेरी भावनात्मक उपलब्धि !!

               हम सब ....जी हाँ ...हम सब अपनी अपनी सभी भौतिक उपलब्धियों के विषय में जब भी मौका मिलता है ज़रूर अपने अपनों के साथ चर्चा करते हैं !!

                  आइये में आज अपनी भवनात्मक और स्नेहात्मक उपलब्धि के विषय में आपसे बातें करता हूँ ......!! ये कोई 8 दिनों पहले की बात है ...दोपहर के कोई सवा तीन बजे का वक़्त हो रहा था मैं और मेरे एक सहयोगी अधिकारिक कार्य से कलकत्ता जाने की तय्यारी में थे ...वो ग्रेटर नॉएडा से और में गाज़ियाबाद से दिल्ली के इंदिरा गाँधी अन्तरराष्ट्रीये हवाई अड्डे पर पहुचे ! अपने उड़नखटोले में पहुचने तक जो भी नियमावली के अनुसार काम करना होता है हमने किया और लाइन लगा कर अपने उड़नखटोले में सवार हो गए ! 
               उड़ान थी इंडिगो की 6इ - 365 और हमारी सीट थे 2बी और 2सी , मैं किनारे वाली सीट पर बैठ गया ! एक एक कर के हमारे साथ कलकत्ता के लिए उड़ने वाले लोग आ रहे थे और अपने अपने नियत स्थान पर विराज रहे थे ! कितना अनोखा और नित नवीन नज़ारा होता है वो ....मैं तो हमेशा पूरी यात्रा का बस वो समय ही जीता हूँ जब मैं अपनी सीट पर बैठ कर आने वाले सब लोगो को देखता हूँ ....सच में अनोखा अनुभव होता है ! विभिन्नं प्रकार के पोषकों में , विभिन्न तरह के केश सवारे हुए , हर एक के चहरे पर अलग अलग तरह की भावनाए और गरिमा का मिश्रित तेज़ ....होता है ... वायुयान में सफ़र करना कम से कम भारत में तो अभी 2012 तक का सबसे महंगा सार्वजनिक सफ़र है ....इस लिए भी ...किन्तु जब आगंतुक दरवाज़े पर आ कर देखता है की उस से पहले से कई लोग वहां बैठे हैं तो वो नवीनता
और अपने को विशेष स्तर का समझने का भाव गुल होजाता है और चहरे पर कुछ मिश्रित भाव निर्मित होते हैं !!

            में अपनी सीट आर बैठ कर सब को देख रहा था की अचानक मुझे लगा की ये चेहरा मैंने पहले भी कभी देखा है .....मैं सोच में पड़ गया .....एक साधारण सी महिला ...सफ़ेद बालों की लम्बी चोटी बनाये हुए , माथे पर चन्दन का तिलक , हाथ में सोने का कंगन , और दुसरे हाथ में सुनहरी घडी , मुह में पान .... खाते हुए धीरे धीरे मेरी और बढ़ी ...और मेरे से अगली सीट पर बैठ गयीं ....उनके हाथ में एक पर्स भी था ...क्रीम रंग का ! उनके साथ एक और युवती थीं !
             मैं इस उधेड़बुन में लग गया की इनको कहाँ देखा है और मुझे वो याद क्यों नहीं आ रहा ...की अचानक याद आया ...मैंने अपने साथी से कहा ...ये मशहूर शाश्त्रीय गाइका श्रध्ये गिरिजा देवी जी हैं और में उनका आशीर्वाद लेना चाहता हूँ ...! मैं अपने को रोक नहीं सक रहा था ! मैंने उनके साथ की युवती से आखिरकार पूछ ही लिया ...ये वो ही हैं ना ? उन्होंने मुस्कुराते हुए हां में अपना सर हिला दिया ....बस फिर क्या था ....मैंने  गिरिजा जी के चरण स्पर्श किये और आग्रह किया की उनके साथ एक चित्र लेना चाहता हूँ ....उन्होंने अनुमति दे दी ...और मैं उनके चरणों में बैठ गया ...और उस युवती से ही चित्र लेने को कहा ...और बस हो गया !! वो चित्र आपके लिए संलंग्न है इस ब्लॉग के साथ !! गिरिजा जी के विषये में बहुत सी जानकारियां नेट पर उपलब्ध हैं ! एक लिंक आप के लिए !  Girija Devi - Wikipedia, the free encyclopedia

           फिर वो 2.30 घंटो का सफ़र इतना उर्जा भरा रहा की ...थकान काफूर हो गयी और हैं उत्साहित होते गए ...गिरिजा जी का सानिध्य पा कर ! एक गरिमावान एवं आदरणीयों का साथ अपनों भी सही दिशा की और अग्रसर करता है , जैसे जो कुछ गंधी दे नहीं हो हूँ बास सू बास !! खुशबू रखने वाले का साथ भर हो तो भी आप स्वयं को खुशबू के वातावरण में ही पाते हैं !!

        ये मेरी भावनात्मक उपलब्धि थी !! यात्रा संस्मरण लिखता रहूँगा और यात्राएं करता रहूँगा .......हम सब एक सफ़र पर ही तो हैं !!
                                                                    -- ::  आपका मनीष

1 comment:

  1. .......हम सब एक सफ़र पर ही तो हैं !!

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